जागरेब ओपन से हटने के बाद देश के जाने-माने पहलवान अब रैंकिंग सीरीज के इब्राहिम मुस्तफा टूर्नामेंट में भी भाग नहीं ले रहे
पिछले कुछ सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब इन पहलवानों ने लगातार दो आयोजनों में भाग नहीं लेने का फैसला किया है
ओलम्पिक पदक विजेता रवि दहिया और बजरंग पूनिया के अलावा विनेश फोगाट, दीपक पूनिया, अंशु मलिक, संगीता फोगाट, संगीता मोर और कुछ अन्य प्रमुख पहलवानों का हटना खतरे की घंटी माना जा रहा है
राजेंद्र सजवान
देश के जाने-माने शीर्ष पहलवानों ने एक और बड़े आयोजन से दूर रहने का फैसला किया है। पहले जागरेब ओपन से यह कह कर हट गए थे कि वे प्रतियोगिता के लिए तैयार नहीं हैं। और अब वे रैंकिंग सीरीज के इब्राहिम मुस्तफा टूर्नामेंट में भी भाग नहीं ले रहे।
हालांकि भारतीय कुश्ती महासंघ का कामकाज देख रही एमसी मैरीकॉम के नेतृत्व वाली समिति ने 27 सदस्यीय पहलवानों के दल को स्वीकृति दी है, लेकिन इस दल में ज्यादातर बड़े पहलवान शामिल नहीं हैं जो कि चिंता का विषय माना जा रहा है क्योंकि मिस्र में 23 फरवरी से आयोजित होने वाला यह टूर्नामेंट एशियाई और विश्व चैम्पियनशिप में वरीयता अंक हासिल करने का मौका है।
पिछले कुछ सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश के जाने-माने और बड़े कद के पहलवानों ने लगातार दो आयोजनों में भाग नहीं लेने का फैसला किया है। ओलम्पिक पदक विजेता रवि दहिया और बजरंग पूनिया के अलावा विनेश फोगाट, दीपक पूनिया, अंशु मलिक, संगीता फोगाट, संगीता मोर और कुछ अन्य पहली कतार के पहलवानों का हटना खतरे की घंटी माना जा रहा है और यदि इसी प्रकार प्रमुख पहलवान हटते कटते रहे तो भारतीय कुश्ती के मान सम्मान और पहचान पर गहरी चोट पहुंच सकती है।
माना यह जा रहा है कि जंतर मंतर पर पहलवानों के धरना प्रदर्शन से उपजा संकट अब कुश्ती को अंदर से खोखला करने लगा है। बेशक, फसाद की जड़ में फेडरेशन अध्यक्ष ब्रज भूषण रहे हैं, जिन पर महिला पहलवानों ने गंभीर आरोप लगाए हैं। हालांकि जांच पड़ताल चल रही है लेकिन पहलवानों का प्रमुख आयोजनों से हटना कुश्ती के लिए अशुभ संकेत माना जा रहा है।
एशियाई खेल और ओलम्पिक के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। दुनियाभर के पहलवान तैयारियों में जुटे हैं लेकिन भारतीय पहलवान लगातार अरुचि दिखा रहे हैं जिसके दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं। बेशक, पहलवान फेडरेशन से खफा हैं और न्याय चाहते हैं, जो कि मिलता नजर नहीं आ रहा। जानकारों का कहना है कि कुश्ती में राजनीति की घुसपैठ ने नाराज पहलवानों की तादाद बढ़ रही है।
ऐसा पहली बार हुआ है जब ओलम्पिक पदक विजेता और विश्व ख्याति प्राप्त खिलाड़ियों ने अपनी फेडरेशन से टक्कर ली है और शायद पहली बार किसी अध्यक्ष पर चारित्रिक पतन के गंभीर आरोप लगे हैं, जिसका सच शायद ही सामने आए। कुछ पहलवानों के अनुसार जांच के लिए कमेटी का गठन महज नाटक है और दोषियों को बचाया जा रहा है। दूसरी तरफ आरोप लगाने वालों से प्रमाण मांगा जा रहा है।
कुल मिलाकर भारतीय कुश्ती एक ऐसे भंवर में फंस गई है जहां से निकलना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। यदि आरोप प्रत्यारोपों और बायकॉट का दौर यूं ही चलता रहा तो भारतीय कुश्ती को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है, जिसकी भरपाई फिर ना हो पाएगी।