भारतीय कुश्ती महासंघ चुनाव में जीते कोई भी, कमान नेताजी संभालेंगे

  • ऐसा माना जा रहा था कि यौन शोषण के आरोपों के चलते बृजभूषण का कुश्ती से नाता पूरी तरह टूट जाएगा
  • लेकिन बृजभूषण शरण सिंह पूरे दमखम के साथ कुश्ती फेडरेशन के चुनावों की रणनीतिकार हैं
  • भारतीय कुश्ती फेडरेशन के चुनाव में 12 अगस्त को वही अध्यक्ष चुना जाएगा जिसके सिर पर नेताजी का हाथ होगा
  • खेल मंत्रालय और आईओए उनके सामने हाथ बांधे नजर आ रहे हैं और शायद गिड़गिड़ा रहे हैं

राजेंद्र सजवान 

हालांकि खेल संघों के चुनावों में दलगत राजनीति, गुटबाजी और सदस्य इकाइयों द्वारा की जाने वाली ब्लैकमेलिंग वर्षों से चली आ रही है लेकिन इस बार के भारतीय कुश्ती महासंघ चुनाव कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं। यह संयोग है कि चुनाव से कुछ माह पहले फेडरेशन के मुखिया पर गंभीर आरोप लगे और उसके विरुद्ध देश व्यापी आंदोलन चला। कुछ दिन पहले तक जिस बृजभूषण शरण सिंह का राजनीतिक करियर खतरे में नजर आ रहा था आज वह पूरे दमखम के साथ कुश्ती फेडरेशन के चुनावों की रणनीतिकार हैं। भले ही नेताजी चुनाव नहीं लड़ रहे लेकिन जो लड़ रहे हैं उनमें से अस्सी फीसदी उनके साथ हैं।

 

  चूंकि बृजभूषण तीन कार्यकाल पूरे कर चुके हैं और नियमानुसार अब और आगे चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन आने वाले सालों में भी यदि भारतीय कुश्ती उनके इशारों पर चले तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। भले ही उनके बेटे, दामाद और अन्य नाते रिश्तेदार उम्मीदवार नहीं हैं। कोई भी जीते हारे लेकिन पहली बार यह देखने में आ रहा है कि जिसे हारा हुआ मान लिया गया था अप्रत्यक्ष रूप से जीत उसी की होने जा रही है। यौन शोषण के आरोपों के चलते यह मान लिया गया था कि बृजभूषण का कुश्ती से नाता पूरी तरह टूट जाएगा। लेकिन चंद दिनों में घटनाक्रम तेजी से बदला है। उल्टे आंदोलनकारियों की टूट से बृजभूषण मजबूत हुए और आलम यह है कि आज भारतीय कुश्ती फेडरेशन के चुनाव उनके रहमो करम पर हैं।

12 अगस्त को जो भी अध्यक्ष चुना जाएगा उसके सिर पर नेताजी का हाथ होगा। भले ही पार्टी के नेताओं ने बृज भूषण का कद छोटा करने के भरसक प्रयास किए लेकिन आज आलम यह है कि खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण के शीर्ष पदों पर बैठे लोग हैरान परेशान हैं। कई एक ने बृजभूषण को बांधने का भरसक प्रयास किया लेकिन आज ऊंट करवट बदल चुका है। मंत्रालय और आईओए उनके सामने हाथ बांधे नजर आ रहे हैं और शायद गिड़गिड़ा रहे हैं। यहां तक पता चला है कि फेडरेशन चुनावों में सभी 15 सीटें जीतने का दावा करने वाले बृजभूषण का कद देश के बड़े नेताओं को भी परेशान कर रहा है।

 

  उधर, दूसरी तरफ यौन शोषण के आरोप कोर्ट-कचहरी तक सिमट कर रह गए हैं। खाप, किसान, मजदूर और पहलवान शायद अपने अपने काम पर लौट गए हैं। एशियाड में भाग लेने के लिए ट्रायल देने और नहीं देने की धड़ेबाजी में उलझ कर जो विवाद उठ खड़ा हुआ उसने चंद पहलवानों को पूरी बिरादरी का दुश्मन बना दिया है। यह भी कहा जा रहा है कि बृजभूषण की टीम जीत कर आई तो कुछ पहलवानों का जीना हराम हो सकता है। हो सकता है उन पर ट्रायल में भाग लेने के लिए दबाव बने।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *