- कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना यानि हाल की सफलता कंपाउंड इवेंट में मिली है, जो कि ओलंपिक का हिस्सा नहीं है
- ओलम्पिक में कुछ कर गुजारना है तो रीकर्व तीरंदाजी में बेहतर करना होगा लेकिन खराब प्रदर्शन के चलते एक भी भारतीय अब तक पेरिस ओलम्पिक का कोटा अर्जित नहीं कर पाया है
- राम, अर्जुन और एकलव्य जैसे धनुर्धरों की भूमि कब कोई ओलम्पिक चैंपियन तीरंदाज पैदा कर पाएगी कहना मुश्किल है
- भारतीय तीरंदाजी संघ और उसके कोचों के पास खेल का सिस्टम सुधारने की कोई प्लानिंग भी नहीं है
राजेंद्र सजवान
भारतीय तीरंदाजों के धमाकेदार प्रदर्शन से उत्साहित खेल प्रेमी अक्सर यह सवाल पूछते हैं कि हमारे तीरंदाज अब तक कोई ओलम्पिक पदक क्यों नहीं जीत पाए? राम, अर्जुन और एकलव्य जैसे धनुर्धरों की भूमि कब कोई ओलम्पिक चैंपियन तीरंदाज पैदा कर पाएगी कहना मुश्किल है। पेरिस में संपन्न वर्ल्ड कप में भारत ने पुरुष और महिला वर्ग के टीम खिताब जीत कर भले ही भविष्य में बेहतर करने की उम्मीद जगाई है लेकिन यह प्रदर्शन इसलिए ओलंपिक पदक की गारंटी नहीं है क्योंकि हाल की सफलता कंपाउंड इवेंट में मिली है, जो कि ओलम्पिक का हिस्सा नहीं है।
बेशक, इस साल भारतीय तीरंदाजों ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन यह प्रदर्शन एशियाड और कॉमनवेल्थ तक ही मान्य हो सकता है। ओलम्पिक में कुछ कर गुजारना है तो रीकर्व तीरंदाजी में बेहतर करना होगा। जाहिर है कंपाउंड में मिली कामयाबी पर जीत का जश्न मनाने वालों को कुछ हट कर सोचना पड़ेगा।
सच्चाई यह है कि तीरंदाजी को अपने देश ने कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। भारतीय तीरंदाजी संघ और उसके कोचों के पास खेल का सिस्टम सुधारने की कोई प्लानिंग भी नहीं है। नतीजन सालों से बस तीर तुक्के चलाए जा रहे हैं। कभी लिम्बा राम का नाम लेकर तो कभी दीपा कुमारी और अतानु दास तो कभी तरुण दीप राय आदि के प्रदर्शन पर तीरंदाजी की शीर्ष संस्था का अस्तित्व कायम रहा है।
पिछले 40 सालों से भारतीय तीर निशाने चूकते रहे, नामी खिलाड़ियों पर करोड़ों लुटाए गए लेकिन विश्वविख्यात धनुर्धरों के देश ने एक भी ओलम्पिक चैम्पियन पैदा नहीं किया। रिकर्व में खराब प्रदर्शन के चलते एक भी भारतीय अब तक पेरिस ओलम्पिक का कोटा अर्जित नहीं कर पाया है। ऐसे में बेहतर यह होगा कि कंपाउंड में जीत का जश्न मनाने वाले रिकर्व इवेंट के बारे में गंभीरता से सोचें।
पिछले कुछ सालों में दीपिका कुमारी ने भारतीय महिलाओं में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन वह तीन ओलम्पिक खेलकर एक कांसे का पदक तक नहीं जीत पाई। हां, इस वर्ल्ड चैम्पियन और नंबर एक रैंकिंग की खिलाड़ी के नाम एशियाई खेलों में एक कांस्य जरूर दर्ज है। अतानु दास दो ओलम्पिक और इतने ही एशियाड खेल कर खाली हाथ है। तरुण दीप राय तीन ओलम्पिक में खेलने के बाद भी पदक नहीं जीत पाए। अन्य का प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं रहा है, जिनमें डोला बनर्जी, अभिषेक वर्मा, बोंबायला देवी, जयंत तालुकदार जैसे नाम भी शामिल हैं।
सरकार करोड़ों खर्च करती आ रही है। लेकिन भारतीय तीरंदाजी के श्रेष्ठ लिम्बा राम की सुध लेने वाला कोई नहीं है। वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। उसकी पत्नी जेनी मीडिया और सोशल मीडिया पर लिम्बा का दुखड़ा रोती है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। यह ना भूलें कि भारतीय तीरंदाजी का एकलव्य 1992 के बार्सिलोना ओलम्पिक की 70 मीटर स्पर्धा में मात्र एक अंक से ओलम्पिक पदक चूक गया था।