June 15, 2025

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भारतीय फुटबॉल: अपने या विदेशी कोच, किसी एक को चुने

  • पिछले पचास सालों में भारतीय फुटबॉल आकाओं ने हर दांव आजमा कर देख लिया  और तमाम प्रयोग करके देख लिये लेकिन हमारी फुटबॉल सुधरने का नाम नहीं ले रही है
  • गर्त में धंसती जा रही भारतीय फुटबॉल के लिए फिलहाल फीफा वर्ल्ड कप खेलने की संभावना जीरो के बराबर ही है
  • कुछ पूर्व खिलाड़ी और फुटबॉल जानकार अब यहां तक कहने लगे हैं कि या तो एक बार फिर से देसी और अपने कोचों को राष्ट्रीय टीम का दायित्व सौंपा जाए या फिर विदेशी कोचों को ग्रासरूट स्तर से नियुक्त किया जाए

राजेंद्र सजवान

भारतीय फुटबॉल आज उस मोड़ पर खड़ी है जहां से कोई भी रास्ता फीफा वर्ल्ड कप की तरफ नहीं जाता। बात अटपटी सी जरूर है लेकिन फिलहाल भारत के फीफा वर्ल्ड कप खेलने की संभावना जीरो के बराबर ही है। ऐसा किसी दुर्भावना से नहीं कहा जा रहा है लेकिन पिछले पचास सालों में भारतीय फुटबॉल आकाओं ने हर दांव आजमा कर देख लिया। तमाम प्रयोग करके देख लिये लेकिन फुटबॉल है कि सुधरने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों हमारी फुटबॉल गर्त में धंसती जा रही है?

   तमाम कोशिशें बेकार साबित हुई हैं, सरकार और फेडरेशन (एआईएफएफ) के प्रयास विफल रहे हैं। ऐसे में कुछ पूर्व खिलाड़ी और फुटबॉल जानकार यहां तक कहने लगे हैं कि या तो एक बार फिर से देसी और अपने कोचों को राष्ट्रीय टीम का दायित्व सौंपा जाए या फिर विदेशी कोचों को ग्रासरूट स्तर से नियुक्त किया जाए। हाल ही में भारतीय फुटबॉल टीम को बांग्लादेश ने गोल शून्य (0-0) बराबरी पर रोककर यह दर्शाया है कि भारत फुटबॉल में दुनिया के सबसे फिसड्डी देशों में है। नेपाल, म्यांमार, अफगानिस्तान और कई अन्य एशियाई देश भारत को जब-तब पीट रहे हैं।

गुमनामी में जी रहे पूर्व खिलाड़ी कह रहे हैं कि अपने कोचों और पूर्व खिलाड़ियों को भुलाने की सजा भुगत रही है भारतीय फुटबॉल। उनके अनुसार, बहुत प्रयोग हो गए हैं, सुधार के नाम पर देशवासियों के खून-पसीने की कमाई बहाई जा रही है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, या तो भारतीय फुटबॉल अपने कोचों पर फिर से विश्वास करे और उन्हें विदेशों में ट्रेनिंग के लिए भेजे या ग्रास रूट के लिए विदेशी कोचों की सेवाएं ली जाए। सीनियर टीम को विदेशी कोचों के हवाले करने से सुधार नहीं होने वाला। ऐज फ्रॉड से सीनियर राष्ट्रीय टीम तक पहुंचने वाले खिलाड़ियों से बहुत अधिक की उम्मीद करना समझदारी कदापि नहीं हो सकती है।

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