- एआईएफएफ के अध्यक्ष कल्याण चौबे के अनुसार, यदि सरकार का सपोर्ट मिले तो भारत एशियन कप 2031 की मेजबानी के लिए प्रबल दावेदार है
- सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार भी भारतीय बिड के समर्थन में है
- देश के खेलमंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि देश में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने के लिए एएफसी कप जैसे आयोजन जरूरी हैं
- कुछ पूर्व खिलाड़ियों की राय में भारतीय फुटबॉल को एएफसी कप और वर्ल्ड कप आयोजन का ख्वाब छोड़ ग्रास रूट फुटबॉल पर ध्यान देने की जरूरत है
- फीफा रैंकिंग में भारत 127वें स्थान पर है, जबकि एएफसी रैंकिंग 22वें नंबर की है
राजेंद्र सजवान
‘भारत एशियन कप 2031 की मेजबानी के लिए प्रबल दावेदार है, यदि सरकार का सपोर्ट मिले तो,’ ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) के अध्यक्ष कल्याण चौबे का ऐसा मानना है। सूत्रों की माने तो सरकार भी भारतीय बिड के समर्थन में है। देश के खेलमंत्री मनसुख मांडविया ने तो बकायदा एक बयान में यह भी कह दिया है कि देश में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने के लिए एएफसी कप जैसे आयोजन जरूरी हैं। खेल मंत्री के बयान से फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे प्रफुल्लित हैं और सरकारी समर्थन को भारतीय फुटबॉल के लिए टॉनिक मान रहे हैं। लेकिन देश में फुटबॉल का हित चाहने वाले कुछ और सोच रहे हैं। उन्हें इस बात की हैरानी है कि देश के मान-सम्मान को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाने वाले फुटबॉल को क्यों सिर चढ़ाया जा रहा है।
सरकारी प्रतिनिधि और फुटबॉल फेडरेशन के अध्यक्ष की नीयत के बारे में जब कुछ पूर्व खिलाड़ियों से बात की गई तो अधिकांश की राय में भारतीय फुटबॉल को एएफसी कप और वर्ल्ड कप आयोजन का ख्वाब छोड़ ग्रास रूट फुटबॉल पर ध्यान देने की जरूरत है। उनको लगता है फेडरेशन के विवादास्पद अध्यक्ष और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच जो कुछ चल रहा है, उससे खेल का भला कदापि नहीं होने वाला। फीफा रैंकिंग में भारत 127वें स्थान पर है, जबकि एएफसी रैंकिंग 22वें नंबर की है।
फुटबॉल समीक्षकों के अनुसार, जपान, ईरान, दक्षिण कोरिया, उज्बेकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, कतर, सऊदी अरब, यूएई, जॉर्डन, ओमान आदि देश भारत से कहीं ऊपर है, जबकि भारतीय टीम बांग्लादेश, नेपाल, अफगानिस्तान जैसे फिसड्डियों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है। जानकारों की राय में भारतीय फुटबॉल अपने सबसे बुरे और शर्मनाक दौर से गुजर रही है और अगले कई सालों तक भी सुधार की कोई सूरत नजर नहीं आती है। ऐसे में एएफसी और वर्ल्ड कप आयोजन पैसे की बरबादी और जग हंसाई ही हो सकते हैं। फुटबॉल पर करोड़ों बर्बाद करने वाली सरकारें यदि हाथ पीछे खींच ले तो बेहतर रहेगा।