भारतीय फुटबॉल: सौ साल पीछे, सौ साल बाद भी नहीं!

  • भारतीय फुटबॉल के कर्णधार, खासकर फेडरेशन अध्यक्ष महोदय कल्याण चौबे को मानना लेना चाहिए कि भारतीय फुटबॉल अभी तक अपनी शैशवावस्था से आगे नहीं बढ़ पाई है और दिन पर दिन, सप्ताह दर सप्ताह भारतीय फुटबॉल शेष विश्व की तुलना में पिछड़ती जा रही है
  • वर्तमान में जारी यूरो कप पर सरसरी नजर डालें तो यूरोप के देश अन्य महाद्वीप के देशों की तुलना में लगातार आगे बढ़ रहे हैं
  • लैटिन अमेरिकी देशों ब्राजील और अर्जेंटीना को छोड़ दें तो अफ्रीकी और एशियाई देश यूरोप का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं
  • यूरो कप में भाग ले रहे कई ऐसे देश हैं, जिनकी आबादी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के आस-पास है लेकिन फुटबॉल के हुनर में बहुत आगे हैं

राजेंद्र सजवान

आम भारतीय को इस बात का गर्व है कि हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। हमें दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश का श्रेय प्राप्त है। ये उपलब्धियां हमें घमंडी बनाती हैं। सबसे ज्यादा युवा होने पर हम फूले नहीं समाते लेकिन जब पूछा जाता है कि 140 से 150 करोड़ की आबादी वाले देश की युवा शक्ति तब कहां जाती है जब विश्व स्तरीय खेल आयोजन होते हैं? ओलम्पिक और विश्व स्तर पर हम 100 साल से भी सौ कदम आगे नहीं बढ़ पाए। ऐसा क्यों है? कमी कहां है, हमारे युवा कहां कमजोर पड़ रहे हैं और क्यों टीम खेलों में हमारा प्रदर्शन लगातार गिर रहा है। खासकर, दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल में जगत गुरु और महान योद्धाओं के देश के खिलाड़ी क्यों लगातार पिछड़ रहे हैं?

   फुटबॉल के पिछड़ेपन पर भारतीय फुटबॉल के कर्णधार, फेडरेशन अधिकारी और खासकर अध्यक्ष महोदय कल्याण चौबे भले ही कुछ भी बोलें, फेंकें या अकड़-धकड़ दिखाएं लेकिन इस सच को उन्हें मानना पड़ेगा कि भारतीय फुटबॉल अभी तक अपनी शैशवावस्था से आगे नहीं बढ़ पाई है। उन्हें यह भी मान लेना चाहिए कि दिन पर दिन, सप्ताह दर सप्ताह भारतीय फुटबॉल शेष विश्व की तुलना में पिछड़ती जा रही है। हाल फिलहाल खेले जा रहे यूरो कप पर सरसरी नजर डालें तो यूरोप के देश अन्य महाद्वीप के देशों की तुलना में लगातार आगे बढ़ रहे हैं।

लैटिन अमेरिकी देशों ब्राजील और अर्जेंटीना को छोड़ दें तो अफ्रीकी और एशियाई देश यूरोप का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। बेशक, एशियाई देशों में भारत सबसे फिसड्डी नहीं है। यूरो कप में कई ऐसे देश भी भाग ले रहे हैं, जिनकी आबादी चालीस-पचास लाख से भी कम है। डेनमार्क, क्रोएशिया, नॉर्वे, आइसलैंड और दर्जनों अन्य देश कुछ एक लाख की आबादी वाले हैं तो सात करोड़ से भी कम आबादी वाले फ्रांस, इंग्लैंड, स्पेन फुटबॉल जगत में छाए हुए हैं। इटली, टर्की, जर्मनी, पोलैंड, पुर्तगाल आदि देशों की आबादी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के आस-पास है लेकिन फुटबॉल के हुनर में बहुत आगे हैं।

   विश्व कप, यूरो कप और ओलम्पिक जीतने वाले देशों की कुल आबादी अपने देश के किसी राज्य की आबादी से भी कम है। तारीफ की बात यह है कि यूरो कप में भाग लेने वाले 24 देशों की कुल जनसंख्या भारत के आधे से भी कम है। क्योंकि यूरोप की कुल आबादी 75 करोड़ से कमतर है। अर्थात् भारत आसानी से सौ टीमें तैयार कर सकता है लेकिन यह काम अगले सौ सालों में भी शायद ही पूरा हो!

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