क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय महिला हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन के बाद भारतीय हॉकी एक्सपर्ट्स और हॉकी इंडिया के जी हुजूरों ने जैसा माहौल बनाया था उसे देखते हुए तो यही लग रहा था कि महिला टीम को रोक पाना अब किसी के बूते की बात नहीं है। भले ही हार-जीत खेल का हिस्सा हैं लेकिन जिस टीम का दिन रात स्तुतिगान चल रहा था उसने असल परीक्षा में हथियार डाल दिए। लिहाजा, भारतीय महिला टीम एफआईएच विश्व कप में न सिर्फ क्वार्टर फाइनल की दौड़ से बहार हो गई, ब्लकि उसने एक भी मैच नहीं जीता।
विश्व कप में केवल भारतीय टीम पदक की दौड़ से बाहर हुई बल्कि तमाम एशियाई देशों की भी पोल खुली है। क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली टीमों में एक भी एशियाई देश शामिल नहीं है। जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड, स्पेन, अर्जेंटीना और न्यूजीलैंड ने अंतिम आठ में स्थान बनाया। हॉकी जानकारों की राय में इस नतीजे से एशियाई हॉकी का पतन साफ़ नजर आता है, जो कि विश्व हॉकी के लिए शुभ लक्षण कदापि नहीं है। भले ही एशियाई हॉकी के कर्णधार सच्चाई से मुंह छिपाएं लेकिन यह संकेत गंभीरता से सोच विचार की तरफ इशारा करता है।
टोक्यो ओलम्पिक गेम्स में चौथा स्थान पाने वाली भारतीय टीम का स्वदेश लौटने पर चैम्पियनों की तरह स्वागत सत्कार हुआ था। तब कुछ तथाकथित एक्सपर्ट्स कह रहे थे कि हमारी महिला खिलाड़ी अब रुकने वाली नहीं हैं। लेकिन जिस टीम को एक-एक गोल के लाले पड़ जाएं और जो टीम जीतना भूल गई हो भला उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। यह सही है कि हमारी लड़कियों ने इंग्लैंड और चीन से ड्रा खेला लेकिन न्यूजीलैंड से पराजित हुईं और अति महत्वपूर्ण मैच में स्पेन से हारना बेहद दुखद रहा।
चीन के विरुद्ध जिस किसी ने मैच देखा उसे भारतीय प्रदर्शन पर तरस आया। भले ही हमारे चाटुकार मीडिया का आकलन एकतरफा रहा लेकिन सही मायने में चीनी लड़कियों ने खेल के हर क्षेत्र में हमारी खिलाडियों को नचा कर रख दिया था। चीन के दमदार प्रदर्शन का राज यह है कि उसने स्थगित हुए एशियाई खेलों के लिए जोरदार तैयारी की है, जो कि उसकी मेजबानी में होने हैं। वैसे भी महाद्वीप में जापान, कोरिया, चीन और मलेशिया भारतीय महिला हॉकी के लिए हमेशा से खतरे रहे हैं।
देखा जाए तो देश के हॉकी आकाओं ने भारतीय हॉकी टीम को टोक्यो से लौटने के बाद कुछ ज्यादा ही सर चढ़ा दिया था, जिसका नतीजा सामने आ रहा है। हॉकी के शीर्ष अधिकारियों के साथ-साथ खिलाड़ियों की आँख में लगे जाले अगर जल्दी नहीं हटे तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं। यह न भूलें कि कॉमनवेल्थ खेल, एशियाड और ओलम्पिक ज्यादा दूर नहीं हैं। बेहतर होगा हॉकी चाटुकार अपने खिलाड़ियों के स्तुतिगान को छोड़ उन्हें बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करें।
अच्छी बात यह है कि खिलाड़ियों को हर प्रकार की सुविधाएं मिल रही हैं। उनके लिए विदेशों में प्रशिक्षण लेने की हर सुविधा उपलब्ध है। देशवासियों की खून पसीने की कमाई उन पर खर्च की जा रही है। देश सम्मान जनक नतीजे की उम्मीद करता है जो कि गलत नहीं है।
भारतीय टीम ने अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन 1978 के पहले विश्व कप में किया था। तब भारत चौथे स्थान पर रहा था लेकिन इस बार हमारी तमाम सुविधा संपन्न टीम पीठ दिखा कर लौट रही है।