भारतीय हॉकी के 100 साल पूरे होने पर मिलेगा दद्दा को भारत रत्न?
- जाने-माने ओलंपियन और हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने कहा कि वे इस बार ध्यानचंद जी को भारत रत्न देने की मांग जोर-शोर से उठाने जा रहे हैं
- महासचिव राय भोला नाथ सिंह ने कहा कि यही मौका है कि हम इस विषय पर गंभीरता से बात करें और उस व्यक्ति को सम्मान दिलाने के लिए एकराय बनाएंगे जिसका नाम भारतीय हॉकी की पहचान के साथ सालों से जुड़ा हुआ है
- ध्यानचंद जी के सुपुत्र अशोक कुमार ने कहा कि सालों से हॉकी प्रेमी और खिलाड़ी दद्दा के लिए भारत रत्न की मांग कर रहे हैं लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया
- जफर इकबाल और जगबीर सिंह मानते हैं कि भारतीय हॉकी को असली पहचान देने वाले ध्यानचंद ही थे
राजेंद्र सजवान
भारतीय हॉकी (हॉकी इंडिया) अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने पर उत्साहित और रोमांचित है। इन सौ सालों में क्या पाया और क्या खोया जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सोमवार को राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में खेल मंत्री मनसुख मांडविया, हॉकी इंडिया के अध्यक्ष ओलंपियन दिलीप टिर्की, महासचिव भोलानाथ सिंह और पूर्व ओलंपियनों अशोक ध्यान चंद, जफर इफबाल, जगबीर सिंह ने एक राय से कहा कि भारतीय हॉकी सही दिशा में बढ़ रही है। ऐसे में सौ साल पूरे करने का जश्न धूम-धाम से मनाया जाना चाहिए। लेकिन क्या भारतीय हॉकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद के लिए भारत रत्न की मांग करने का सही समय आ गया है?

इस सवाल का जवाब सभी चैंपियन खिलाड़ियों और हॉकी इंडिया के पदाधिकारियों ने अपने-अपने अंदाज में दिया लेकिन जाने-माने ओलंपियन और हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने विषय की गंभीरता को समझते हुए कहा कि वे इस बार ध्यानचंद जी को भारत रत्न देने की मांग जोर-शोर से उठाने जा रहे हैं। कुछ इसी प्रकार की राय भोला नाथ सिंह ने व्यक्त की और कहा कि यही मौका है कि हम इस विषय पर गंभीरता से बात करें और उस व्यक्ति को सम्मान दिलाने के लिए एकराय बनाएंगे जिसका नाम भारतीय हॉकी की पहचान के साथ सालों से जुड़ा हुआ है। अर्थात हॉकी इंडिया के शीर्ष पदाधिकारी इस बार गंभीर हैं और पूरे जोर-शोर से सालों से विचाराधीन पड़े मुद्दे पर चर्चा करने जा रहे हैं।

इस बारे में जब ध्यानचंद जी के सुपुत्र अशोक कुमार से पूछा गया तो उन्होंने इतना ही कहा कि सालों से हॉकी प्रेमी और खिलाड़ी दद्दा के लिए भारत रत्न की मांग कर रहे हैं लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यदि सरकार और हॉकी इंडिया चाहें तो सौवां साल बाऊ जी के नाम हो सकता है जिसके वे असली हकदार भी हैं। जफर इकबाल और जगबीर सिंह मानते हैं कि भारतीय हॉकी को असली पहचान देने वाले ध्यानचंद ही थे, जिसे बाद के खिलाड़ियों ने बखूबी आगे बढ़ाया। उन्हें लगता है कि कुछ सालों के खराब दौर के बाद भारत फिर से ट्रैक पर लौट आया है लेकिन बैक टु बैक दो ओलम्पिक कांस्य जीतने का यह मतलब कदापि नहीं कि हमारी हॉकी जग जीतने के लिए तैयार है। यह ना भूलें कि वर्ल्ड कप जीते पचास साल और ओलम्पिक जीत को 45 साल बीत गए हैं। तत्पश्चात भारतीय हॉकी अपने चमकदार इतिहास के करीब नहीं पहुंच पाई है। ऐसा संभव है लेकिन ध्यान चंद, रूप सिंह, बलबीर सीनियर और दर्जनों अन्य महान खिलाड़ियों के योगदान को याद रखना और उन्हें सम्मान देना जरूरी है।

