मां के संघर्ष ने दी सीमा को नई ‘उड़ान’
- हिमाचल की धाविका ने वेदांता दिल्ली हाफ मैराथन में अपने पहले ही प्रयास में अपना सर्वश्रेष्ठ समय (1:11:23) निकालकर भारतीय महिला एलीट कैटेगरी का खिताब जीता
अजय नैथानी
अपनी मां के संघर्ष, त्याग और जुझारूपन की वजह से आज भारतीय धाविका सीमा एथलेटिक्स में ऊंचाइयां छू रही है। आज यह लॉन्ग डिस्टेंस (5,000 व 10,000 मीटर) रनर इस लायक बन गई कि वो कहती हैं, उसे पूरा करके दिखाती है। ऐसा ही कुछ वेदांता दिल्ली हाफ मैराथन में हुआ, जब हिमाचल प्रदेश की इस धाविका ने इस प्रतिष्ठित मैराथन से पहले कहा था कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके वर्ल्ड एथलेटिक्स (आईएएएफ) से गोल्ड लेबल रोड रेस की मान्यता प्राप्त इस प्रतिस्पर्धा में धमाकेदार शुरुआत करेंगी, और उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में भारतीय महिला एलीट कैटेगरी का खिताब जीतकर अपनी बात को साबित कर दिखाया, वो भी अपना बेस्ट समय निकालकर।
- प्रसन्न हूं लेकिन कोर्स रिकॉर्ड से दूर रहने की कसक रह गई
सीमा ने अपनी पहली दिल्ली हाफ मैराथन में एक घंटा 11 मिनट 23 सेकेंड का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय भारतीय एलीट महिला वर्ग का जीता। इस जीत के बावजूद सीमा के मन में कसक साफ नजर आई। उनका कहना था, “मैं यहां पहली बार दौड़ी हूं और अपने पहले ही प्रयास में अपना पर्सनल बेस्ट टाइम निकालने में सफल हुई। लेकिन मुझे इस बात की कसक है कि मैं वेदांता दिल्ली हाफ मैराथन में कोर्स रिकॉर्ड को बेहद नजदीकी अंतर से नहीं तोड़ा पाई।”
- पिता के स्वर्गवास के बाद मां का भरपूर समर्थन मिला
हिमाचल प्रदेश के चंबा स्थित रेटा गांव की रहने वाली सीमा के पिता का स्वर्गवास 2012 हो गया था, जिसके बाद उनको इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी मां की सबसे बड़ी भूमिका रही। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों से लड़कर समाज के खिलाफ जाकर सीमा को खेल जगत में कदम बढ़ाने के लिए संघर्ष और त्याग किया। इस बारे में यह एथलीट बताती है, “मेरे पिताजी 2012 में चल बसे थे। उसके बाद से ही सारी जिम्मेदारी मेरी मां ने उठाई। उन्होंने मुझे स्पोर्ट्स में आगे बढ़ाने के लिए समाज के तमाम ताने सहे और संघर्ष किया, क्योंकि तब हमारे गांव व आस-पास के इलाके में लड़कियों को बाहर नहीं निकले दिया जाता था, स्पोर्ट्स तो दूरी की बात थी। मां ने तमाम बाधाओं के बावजूद मुझे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।”
- लंबी ट्रेनिंग से और भी बेहतर परिणाम हासिल सकते हैं
सीमा का मानना है कि अगर भारतीय एथलीटों को दिल्ली हाफ मैराथन की ट्रेनिंग के लिए छह महीने का समय मिल जाए तो हम बहुत बेहतर सकते हैं। बकौल सीमा, “आप लोग जानते होंगे कि मैं ट्रैक एंड फील्ड रनर हूं। मेरा ट्रैक एंड फील्ड सत्र कुछ समय पहले ही खत्म हुआ है। लिहाजा, मुझे तैयारी के लिए केवल 15-20 दिन ही मिले। दूसरी ओर, यहां जो भी विदेशी रनर दौड़ने आता है, वो छह महीने हाफ मैराथन की ट्रेनिंग करके आता है। लिहाजा, वे लोग बेहतर तैयारी के साथ दिल्ली में दौड़ते हैं जबकि हम भारतीय के साथ ऐसा नहीं हो पाता है। फिर भी आपने देखा होगा कि मैंने दो-तीन विदेशी रनर्स के साथ अपनी दौड़ पूरी की। अगर मुझे छह महीने की तैयारी का समय मिले, तो मैं दिल्ली हाफ मैराथन में और बेहतर परिणाम निकाल सकती हूं।”
- युवाओं को क्लीन स्पोर्ट्स का दिया संदेश
यहां अपनी पहली मैराथन जीतने के बाद सीमा ने युवा एथलीटों को डोपिंग से दूर रहने का संदेश दिया। लंबी दूरी की धाविका कहती हैं, “जैसा कि आपने देखा होगा कि डोपिंग की वजह से पूरी दुनिया में हमारे देश की बदनामी हो रही है। लिहाजा, मैं युवा खिलाड़ियों को संदेश देना चाहूंगी कि वे क्लीन स्पोर्ट्स खेलें और डोपिंग से दूर रहे। जो भी कड़ी मेहनत करेगा उसका परिणाम जरूर मिलेगा। लॉन्ग डिस्टेंस रनिंग में कड़े परिश्रम के बिना कामयाबी नहीं मिल सकती है।”

वरिष्ठ पत्रकार