मीडिया और दिल्ली फुटबॉल के बीच की कड़ी नरेन्द्र भाटिया नहीं रहे
- वह पचास साल से भी अधिक समय तक डीएसए के सचिव, उपाध्यक्ष और अनेक विभिन्न पदों पर रहे और कई चुनौतियों का सामना किया
- भाटिया जी दिल्ली और देश के मीडिया में बेहद चर्चित नाम थे, क्योंकि हर समाचार पत्र-पत्रिका के चपरासी से लेकर मुख्य संपादक तक उन्हें जानते पहचानते थे
- इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली की फुटबॉल में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा
राजेंद्र सजवान
दिल्ली की फुटबॉल को दिल, दिमाग और कर्म से समर्पित, दिल्ली की फुटबॉल के सच्चे सपूत और मीडिया और फुटबॉल के बीच की मजबूत कड़ी अंततः टूट कर बिखर गई, क्योंकि नरेन्द्र भाटिया अब हमारे बीच नहीं रहे। पिछले कुछ महीनों से मौत उनके साथ आंख मिचौली खेल रही थी लेकिन वे डटे हुए थे और हार मानने के लिए कदापि तैयार नहीं थे। अंततः उन्होंने सदा के लिए आंख मूंद ली। इस प्रकार दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) ने अपने सबसे ईमानदार और जुझारू सेवक को खो दिया है। अर्थात उनके जाने से फुटबॉल और मीडिया के बीच का पुल ढह गया है।
नरेन्द्र भाटिया, जिन्हें उनके दोस्त ‘स्वीटी’ नाम से बुलाते थे सचमुच बेहद स्वीट इंसान थे, जिन्हें गुस्सा कभी आता ही नहीं था। पचास साल से भी अधिक समय तक डीएसए के विभिन्न पदों पर रहे, कई चुनौतियों का सामना किया। इस बीच अनेक राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों का भार अपने मजबूत कंधों पर उठाया और डीएसए के कद को बढ़ाया। राज्य इकाई के सचिव, उपाध्यक्ष और अनेक दायित्व निभाने वाले भाटिया जी दिल्ली और देश के मीडिया में बेहद चर्चित नाम थे। इसलिए क्योंकि हर समाचार पत्र पत्रिका के चपरासी से लेकर मुख्य संपादक तक उन्हें जानते पहचानते थे। यही कारण है कि स्कूटर से कार पर खबर बांटने वाले इस फुटबॉल योद्धा को दिल्ली और देश के तमाम फुटबॉलर और फुटबॉल प्रेमी बखूबी जानते थे। उनके एक्टिव रहते बड़े छोटे समाचार पत्रों, रेडियो, दूरदर्शन और टीवी चैनलों के पत्रकार और संपादक उनसे बखूबी परिचित थे। उनके साथ मधुर संबंधों का ही नतीजा था कि राजधानी की फुटबॉल की छोटी-बड़ी खबर बड़े-बड़े दैनिक अखबारों के खेल और मुख्य पृष्ठ पर छपी। लेकिन बीमारी के चलते जैसे ही सुस्त हुए, दिल्ली की फुटबॉल की खबर लेने वालों ने भी किनारा कर लिया।
सच तो यह है कि दिल्ली की फुटबॉल की पहचान नरेन्द्र भाटिया और उनकी अखबारों से लदी कार बन कर रह गई थी। स्वर्गीय केवल कौशिक, सुशील जैन, रोशन सेठी, सुरेश कौशिक, नोवी कपाड़िया उन्नी कृष्णन, राजेश राय, राकेश थपलियाल, विजय कुमार और खुद यह पत्रकार और दर्जनों अन्य उनके परम मित्रों में थे। लेकिन उन्होंने खुद को हमेशा प्रचार से दूर रखा और खेल-खिलाड़ियों को मीडिया में उचित स्थान दिलाने पर जोर दिया। प्रियरंजन दासमुंशी से लेकर, प्रफुल पटेल और दिल्ली के नामी पदाधिकारियों, जीएल जुनेजा, उमेश सूद, नासिर अली, मगन सिंह पटवाल, शंकर लाल, हेम चंद, शाजी प्रभाकरन आदि के साथ उनके सम्बन्ध मधुर रहे। बेशक़, फुटबॉल के लिए उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। दिल्ली ने अपनी फुटबॉल का ऐसा सच्चा सपूत खोया है, जिसकी भरपाई शायद ही हो पाए।