- यूरो कप 2024 में खेले गए मैचों पर सरसरी नजर डाले तो फुटबॉल का खेल रफ-टफ और जटिल होने के साथ-साथ और ज्यादा रोमांचक भी होता जा रहा है
- खेल और खिलाड़ियों की सोच में बदलाव को लेकर भारतीय फुटबॉल के बारे में राय बनाई जाए तो यह मानना पड़ेगा कि उसके लिए आने वाला वक्त और मुश्किल हो सकता है
- हमारे खिलाड़ी ग्रासरूट पर कमजोर ढांचे और उम्र के फर्जीवाड़े से निकल कर राष्ट्रीय टीम तक पहुंचते हैं और ऐसे हालात के कारण भारतीय खिलाड़ी यूरोप के देशों की तुलना में बहुत पीछे छूट जाते हैं
- यूरो कप के मुकाबलों को देखकर भारतीय फुटबॉल का तुलनात्मक अध्ययन करें तो साफ नजर आता है कि आने वाले कई दशकों तक हम उन्हें नहीं छू सकते
- भारतीय फुटबॉल के कर्णधार समझ गए होंगे कि फुटबॉल पूरी तरह टीम खेल है, जिसमें उम्र की धोखाधड़ी, बहानेबाजी और गंदी राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है
राजेंद्र सजवान
यूरो कप 2024 की विजेता ट्रॉफी स्पेन की यात्रा पर निकल गई है। इस महाद्वीप की 24 अव्वल टीमों के बीच हुए विराट संघर्ष के दौरान जहां एक ओर ऊंची रैंकिंग और बड़े नाम वाली टीमों का पतन देखा गया तो खिताब की सही हकदार की जीत हुई। चैम्पियन स्पेन, उप-विजेता इंग्लैंड, विश्व विजेता फ्रांस और नीदरलैंड्स का अंतिम चार दौर में पहुंचना अपेक्षित परिणाम कहा जा सकता है, लेकिन अल्बानिया, स्लोवेनिया, सर्बिया, स्लोवाकिया, यूक्रेन, जॉर्जिया आदि टीमों का हैरान करने वाला प्रदर्शन और बड़ी टीमों जीत दर्ज करना, बराबरी पर खेलना या फिर नजदीकी अंतर से हारना यह दर्शाता है कि विश्व फुटबॉल में समीकरण बदल रहे हैं। कुछ एक लाख की आबादी वाले देश पूर्व में चैम्पियन रहे और करोड़ों की आबादी वाले देशों पर भारी पड़ रहे हैं।
यूरो कप 2024 में खेले गए मैचों पर सरसरी नजर डाले तो फुटबॉल का खेल रफ-टफ और जटिल होने के साथ-साथ और ज्यादा रोमांचक भी होता जा रहा है। कुछ एक अवसरों पर यह भी देखने को मिला कि खिलाड़ी कलात्मक खेल के साथ-साथ रग्बी और कुश्ती जैसा खेल रहे हैं। बेशक, खेल रफ-टफ हुआ है। नतीजन रेफरी और उसके सहायक का काम बढ़ गया है।
खेल और खिलाड़ियों की सोच में बदलाव को लेकर भारतीय फुटबॉल के बारे में राय बनाई जाए तो यह मानना पड़ेगा कि भारतीय फुटबॉल के लिए आने वाला वक्त और मुश्किल हो सकता है। बेशक, यूरोप के खिलाड़ी हमारे खिलाड़ियों की तुलना में कद-काठी से बेहतर हैं। उन्हें अपेक्षाकृत छोटी उम्र से ट्रेनिंग मिलती है। उनका खान-पान भी अच्छा है। हमारे खिलाड़ी ग्रासरूट पर कमजोर ढांचे और उम्र के फर्जीवाड़े से निकल कर राष्ट्रीय टीम तक पहुंचते हैं। ऐसे हालात के कारण भारतीय खिलाड़ी यूरोप के देशों की तुलना में बहुत पीछे छूट जाते हैं।
यूरो कप के मुकाबलों को देखकर भारतीय फुटबॉल का तुलनात्मक अध्ययन करें तो साफ नजर आता है कि आने वाले कई दशकों तक हम उन्हें नहीं छू सकते। भले ही यूरो कप में भाग लेने वाले देशों की कुल आबादी के बराबर भारतीय फुटबॉल प्रेमियों ने रात-रात जाग कर फुटबॉल महारथियों को निहारा लेकिन क्या कोई सबक सीखा? शायद अब तो भारतीय फुटबॉल के कर्णधार समझ गए होंगे कि फुटबॉल सिर्फ एक खिलाड़ी पर निर्भर रहने वाला खेल नहीं है। यह पूरी तरह टीम खेल है, जिसमें उम्र की धोखाधड़ी, बहानेबाजी और गंदी राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।