रेल का खेल, बेरोजगार खिलाड़ी रेलम पेल!
राजेंद्र सजवान
भारत ओलम्पिक खेलों के आयोजन का सपना देख रहा है। साथ ही देश को खेल महाशक्ति बनाने के हसीन सपने भी देखे जा रहे हैं। यह भी सही है कि कुछ खेलों के राष्ट्रीय खेल आयोजनों में हमारे खिलाड़ी रेल से ऊपर उठ कर जहाज से यात्रा कर रहे हैं। लेकिन पिक्चर का दूसरा हिस्सा बेहद शर्मनाक, दर्दनाक और उभरते खेल भारत की असल तस्वीर पेश करता है। लाखों खिलाड़ी चतुर्थ श्रेणी की रेल सेवा और अंतिम श्रेणी की नौकरियों के लिए तरस तड़प रहे हैं।
देश के जिम्मेदार नेता सभा समारोहों में अक्सर पिछली सरकारों को गालियां देते और गरियाते नजर आते हैं। आरोप लगाया जाता है कि खिलाडियों को किसी भी प्रकार की जरुरी सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई गईं। बेशक, हमारी पीढ़ी ने वह जमाना भी देखा है जब जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजनों में खिलाड़ी बिना आरक्षण के, बिना टिकट शौचालय के बाहर लेट बैठ कर यात्रा करते थे। लेकिन तब खिलाड़ी, उसके क्लब और टीम को रेल किराये में रियायत प्राप्त थी। भले ही आरक्षण नहीं मिलता था लेकिन खिलाड़ियों के लिए ना सिर्फ किराये में छूट थी, खेल कोटे की नौकरियों की भी भरमार थी।
वक्त बदल गया है। खेल आयोजन बढ़ने की बजाय कम हुए हैं और सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि मार्च 2020 से हमारी खेल प्रेमी सरकार ने खिलाड़ियों से किराए में छूट का लाभ भी छीन लिया है। यह तोहफा उस सरकार ने दिया जो कि देश को खेल महाशक्ति बनाने का दम भर रही है। यह उस सरकार का फैसला है जिसके रेल और खेल विभाग (मंत्रालयों) में कहीं कोई तालमेल नहीं बैठ रहा, ऐसा देश के हजारों लाखों खिलाड़ी कह रहे हैं। रेल का टिकट महंगा हुआ है तो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी सस्ते हो गए हैं। डिपार्टमेंटल टीमों के गठन का चलन अब नहीं रहा। दूर-दूर तक नज़र डालें तो अधिकतर सरकारी, गैर- सरकारी और प्राइवेट संस्थानो की टीमें अस्तित्व में नहीं रही। क्योंकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी बेरोजगार घूम रहे हैं। उनकी कोई सुनवाई नहीं है। फिलहाल देश के अधिकतर खेल महासंघों ने खेल मंत्री और प्रधानमंत्री तक अपनी फरियाद भेजी है। रेल किराये में कमसे कम 50 फीसदी की छूट और प्रतिभावन खिलाड़ियों को रोजगार देने की मांग की गई है।