- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अपने तमाम स्टार खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट को गंभीरता से लेने का फरमान जारी कर दिया है और रणजी ट्रॉफी समेत बोर्ड के अन्य घरेलू आयोजनों में भाग लेने को कहा है
- बीसीसीआई के घरेलू क्रिकेट को बचाने के लिए फैसले की चौतरफा तारीफ हो रही है, लगभग सभी पूर्व खिलाड़ियों ने इस कदम की जोरदार शब्दों में प्रशंसा की है
- उनकी राय में स्टार खिलाड़ी अपने संबंधित राज्यों के लिए खेलेंगे, तो उभरते युवाओं को प्रेरणा मिलेगी
- दूसरी ओर, हॉकी इंडिया और फुटबॉल फेडरेशन की अकड़ देखो कि उनके स्टार खिलाड़ी घरेलू आयोजनों में भाग नहीं लेते या उन्हें अपने चाहने वालों के सामने खेलने से रोका जाता है
- हॉकी इंडिया और एआईएफएफ को भी अपनी राष्ट्रीय प्रतियोगिता एवं अन्य घरेलू आयोजनों से कोई लेना-देना नहीं रह गया है और भ्रष्टाचार व गुटबाजी इन खेलों का चरित्र बन गया है
राजेंद्र सजवान
भले ही बाकी खेल क्रिकेट को भला-बुरा कहें, क्रिकेट से चिढ़ें और जलें-कुढ़ें लेकिन हाल के एक फैसले ने हॉकी, फुटबॉल सहित तमाम ओलम्पिक खेलों को हैसियत का आईना दिखा दिया है। जैसा कि विदित है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अपने तमाम स्टार खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट को गंभीरता से लेने का फरमान जारी कर दिया है। बोर्ड के अनुसार, बड़े-छोटे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खुद को स्थापित करने के बाद घरेलू क्रिकेट में हिस्सा नहीं लेते। अंतरराष्ट्रीय मुकाबले और आईपीएल उनकी प्राथमिकता रह जाते हैं और रणजी ट्रॉफी एवं बोर्ड के अन्य घरेलू आयोजनो को भुला दिया जाता है।
बीसीसीआई ने घरेलू क्रिकेट को बचाने के लिए जो फैसला लिया है उसकी चौतरफा तारीफ हो रही है। लगभग सभी पूर्व खिलाड़ियों ने इस कदम की जोरदार शब्दों में प्रशंसा की है। उनकी राय में रणजी ट्रॉफी और अन्य प्रथम श्रेणी घरेलू आयोजनों को बोर्ड के फैसले के बाद बल मिलेगा। खिलाड़ी अपने संबंधित राज्यों के लिए खेलेंगे, तो उभरते युवाओं को प्रेरणा मिलेगी।
अब जरा अन्य खेलों की बात कर ली जाए। टीम खेलों में हॉकी और फुटबॉल देश के लोकप्रिय खेलों में शामिल हैं। जब इन खेलों के पतन की बात होती है तो प्राय: साधन सुविधाओं का रोना रोया जाता है। हालांकि पिछले कुछ सालों से खिलाड़ियों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। भले ही उनका प्रदर्शन लगातार गिरा है लेकिन हॉकी इंडिया और फुटबॉल फेडरेशन की अकड़ देखो कि उनके स्टार खिलाड़ी घरेलू आयोजनों में भाग नहीं लेते या उन्हें अपने चाहने वालों के सामने खेलने से रोका जाता है।
कुछ साल पहले तक फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप पहली प्राथमिकता होती थी। इसी प्रकार रंगास्वामी राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में भाग लेना प्रत्येक खिलाड़ी का पहला सपना था। यहीं से देश की टीम का चयन किया जाता था। लेकिन हॉकी ने जब से “हॉकी इंडिया” और फुटबॉल ने “आईएसएल” का गीदड़ पट्टा धारण किया है, स्तरीय खिलाड़ी राष्ट्रीय आयोजनों से भाग रहे हैं। हॉकी इंडिया और एआईएफएफ को भी अपनी राष्ट्रीय प्रतियोगिता और अन्य घरेलू आयोजनों से कोई लेना-देना नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार और गुटबाजी इन खेलों का चरित्र बन गया है। पूर्व हॉकी और फुटबॉल खिलाड़ी तथा इन खेलों से जुड़े खेल प्रेमी क्रिकेट की वाह-वाह कर कर रहे हैं। उनकी राय में अन्य खेलों को भी भारतीय क्रिकेट बोर्ड और उसकी इकाइयों से सबक लेना चाहिए।