इस बार नोएडा सिटी फुटबॉल क्लब ने दिल्ली फुटबॉल लीग बी डिवीजन का खिताब जीता है
राजेंद्र सजवान
नोएडा सिटी फुटबॉल क्लब ने दिल्ली फुटबॉल लीग (बी डिवीजन) का खिताब जीत लिया है। यह खबर चौंकाने वाली जरूर है क्योंकि बहुत से लोग जानना चाह रहे हैं कि नोएडा तो यूपी में पड़ता है फिर भला यूपी का क्लब दिल्ली का चैम्पियन कैसे बन सकता है? अब इसे दिल्ली सॉकर एसोसिएशन की दरियादिली कहें या कुछ और लेकिन दिल्ली की फुटबॉल में ऐसा बहुत कुछ होता रहा है, जिसका स्पष्टीकरण देने में खुद डीएसए असहाय है। हाल फिलहाल डीएसए ने पुरुष खिलाडियों से सजी टीमों के नामकरण महिला शब्द जोड़कर किए और जमकर जगहंसाई हुई, जिसे बमुश्किल सुधारा गया है।
जहां तक दिल्ली की फुटबॉल को संचालित करने वाली पितृ संस्था की बात है तो डीएसए सालों से विवादों में रही है लेकिन पिछले कुछ सालों में डीएसए को ‘फुटबॉल दिल्ली’ नाम की अपनी ही इकाई के दबदबे का भय सत्ता रहा है। यह उल्लेख इसलिए किया जा रहा है क्योंकि लीग मुकाबलों के चलते दोनों इकाइयां सौतनों की तरह लड़ती भिड़ती रहीं, जिसका असर पुरस्कार वितरण समारोह तक साफ नजर आया। हैरानी वाली बात यह है कि फाइनल दिवस पर एक दो नहीं आठ से दस चीफ गेस्ट को आमंत्रित किया गया और समारोह की शोभा बिगाड़ी गई।
खैर, मौका आंसू बहाने और एक-दूसरे को कोसने का नहीं है। लीग का समापन शानदार रहा और विजेता वही बना जो कि ट्रॉफी जीतने का हकदार था। यह भी मानना पड़ेगा कि नोएडा सिटी डीएसए का अपना क्लब है, जिसमें दिल्ली और देशभर के पंजीकृत खिलाड़ी खेल रहे हैं, यही आधुनिक फुटबॉल का चलन है जिसे अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन की मान्यता प्राप्त है। नोएडा, गढ़वाल, उत्तराखंड, पंजाब, बंगाल या कुछ भी नाम के साथ जोड़ने से क्लब की पहचान करना ठीक नहीं है।
जहां तक नोएडा सिटी की खिताबी जीत की बात है तो इस क्लब की बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने खिताब के प्रबल दावेदार जुबा संघा और कॉलेजियन को बहादुरी के साथ बाहर का रास्ता दिखाया। विजेता टीम के टीम प्रबंधन, कोच और खिलाड़ी साधुवाद के पात्र हैं| बेशक, दिल्ली की फुटबॉल के साथ एक ऐसा पेशेवर क्लब जुड़ गया है, जिसमें दूर आगे बढ़ने की हिम्मत और ताकत साफ नजर आती है। प्रीमियर लीग में दिल्ली एफसी, वाटिका, गढ़वाल एफसी और सुदेवा आदि क्लब अपनी अलग पहचान इसलिए रखते हैं क्योंकि इन क्लबों ने अपने लिए अलग तरह का माहौल बनाया है।
इनके पास उच्च स्तरीय खिलाड़ियों के साथ-साथ सैकड़ों समर्थक और सपोर्टर भी हैं। यही आज की फुटबॉल की सबसे बड़ी जरूरत भी है। इस कसौटी पर पहले ही प्रवेश में लीग खिताब जीतने वाली नोएडा सिटी भी खरी नजर आती है। लेकिन चैम्पियन को अभी लम्बा सफर तय करना है और कई सीढ़ियां चढ़ना बाकी है। हो सकता है उसका पाला कई विवादों से भी पड़े।