विशेषज्ञों ने माना: ‘एज फ्रॉड’ भारतीय खेलों का कैंसर!

  • दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र व सबसे बड़ी आबादी वाले भारत खेलों में क्यों पिछड़ रहा है और क्यों हमारे यूरोपीय और एशिया के प्रमुख देशों की तरह तेजी से प्रगति नहीं कर पा रहा है? ऐसे कई सवाल है जिनको आज तक डी-कोड नहीं किया जा सका है
  • जाने-माने खिलाड़ी और खेल पत्रकारों को लगता है कि ‘एज फ्रॉड (उम्र की धोखाधड़ी)’ भारतीय खेलों की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण है
  • जाने-माने ओलम्पियनों, खेल प्रशासकों, नामी कोचों, बड़े-छोटे खिलाड़ियों और अभिभावकों से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि जब तक देश में बच्चों की सही उम्र दर्ज नहीं होगी, खेलों में प्रगति नहीं होगी
  • सभी स्वीकार करते हैं कि विभिन्न खेलों में खिलाड़ियों की उम्र में दो से चार साल तक की धोखाधड़ी की जाती रही है और अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं के बावजूद भी यह गोरखधंधा चलता जा रहा है
  • केंद्र व प्रदेश की सरकारें अपनी नाक के नीचे चल रहे इस नंगे नाच को रोकने में पूरी तरह से विफल रही हैं
  • ज्यादातर विशेषज्ञों को देश में स्कूली खेलों की शीर्ष संस्था स्कूल गेम्स फेडरेशन सबसे बड़ी गुनहगार नजर आती है, जिसने ‘एज फ्रॉड’ रोकने की बजाय उसे बढ़ावा दिया

राजेंद्र सजवान

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत खेलों में क्यों पिछड़ रहा है? क्यों हमारे खिलाड़ी यूरोपीय और एशिया के प्रमुख देशों की तरह तेजी से प्रगति नहीं कर पा रहे हैं? क्यों हम पिछले सौ सालों में मात्र दो व्यक्तिगत और आठ टीम स्वर्ण पदक ही जीत पाए हैं? कमी कहां है और उसे दूर क्यों नहीं किया जा रहा? इन सवालों को अकसर खेल विशेषज्ञों, विद्वानों, खेल आकाओं और भारतीय खेलों के नीति निर्माताओं द्वारा पूछा जाता है।

   हालांकि अलग-अलग प्लेफॉर्म पर अलग-अलग एजेंसियों द्वारा कई कारण बताए जाते हैं। कोई साधन सुविधाओं का रोना रोता है तो किसी को लगता है कि भारत अभी खेल विज्ञान और तकनीकी स्तर पर अन्य अग्रणी राष्ट्रों से बहुत पीछे चल रहा है। अच्छे कोच, अच्छी खुराक और खानपान की कमी और कई अन्य कारण खिलाड़ियों की प्रगति में बाधक बताए जाते हैं। लेकिन जाने-माने खिलाड़ी और खेल पत्रकारों को लगता है कि ‘एज फ्रॉड (उम्र की धोखाधड़ी)’ भारतीय खेलों की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण है। देश के जाने-माने ओलम्पियनों, खेल प्रशासकों, नामी कोचों, बड़े-छोटे खिलाड़ियों और अभिभावकों से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि जब तक देश में बच्चों की सही उम्र दर्ज नहीं होगी, खेलों में प्रगति बाधित होगी। ऐसा तब ही संभव है जब देश के शिक्षण संस्थान और स्कूल-कॉलेज खिलाड़ियों की सही उम्र दर्ज करेंगे।

 

  लगभग चार दशकों तक राष्ट्रीय स्कूल खेल और छोटी आयु वर्ग के विभिन्न, आयोजनों कवर करने वाले पत्रकारों और आयोजन समितियों को यह भी स्वीकार करना पड़ा है कि विभिन्न खेलों में खिलाड़ियों की उम्र में दो से चार साल तक की धोखाधड़ी की जाती रही है। हैरानी वाली बात यह है कि अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं के बावजूद भी यह गोरखधंधा बढ़ता चला जा रहा है। हैरान करने वाली बात यह भी है कि देश-प्रदेश की सरकारें अपनी नाक के नीचे चल रहे इस नंगे नाच को रोकने में पूरी तरह से विफल रही हैं। ज्यादातर को देश में स्कूली खेलों की शीर्ष संस्था स्कूल गेम्स फेडरेशन सबसे बड़ी गुनहगार नजर आती है, जिसने ‘एज फ्रॉड’ रोकने की बजाय उसे बढ़ावा दिया। यह भी देखने में आया है कि स्कूली खेलों में कॉलेज में पढ़ने वाले, नौकरीशुदा और अन्य बड़ी उम्र के अवसरवादी भी खेल जाते हैं। तो फिर भारतीय खेल कैसे तरक्की करेंगे? कैसे प्रतिभावान खिलाड़ी आगे बढ़ सकते हैं?

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