कुश्ती के जानी-मानी हस्ती द्रोणाचार्य व अवार्डी कुश्ती अकादमी के चीफ कोच की राय में खिलाड़ी, कोच, अभिभावक और अकादमी से जुड़े लोग जब तक समर्पित नहीं होंगे, कोई भी खेल अच्छे रिजल्ट नहीं दे सकता है खासकर, माता-पिता को गंभीर होने की जरूरत है
राजेंद्र सजवान
भोपाल स्थित तात्या टोपे खेल परिसर में कुश्ती, कबड्डी, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, तलवारबाजी, फुटबॉल, एथलेटिक्स, निशानेबाजी, घुड़सवारी, वाटर स्पोर्ट्स सहित 17-18 खेलों की राज्य अकादमियां चल रही हैं। फिर भी पिछले तीन-चार सालों में मध्यप्रदेश खासकर भोपाल के खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान क्यों नहीं बना पाए? प्रदेश की विभिन्न अकादमियों को करीब से देखने-परखने के बाद इस संवाददाता ने कुश्ती के जानी-मानी हस्ती द्रोणाचार्य व अवार्डी कुश्ती अकादमी के चीफ कोच महासिंह राव से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने दो टूक जवाब देते हुए कहा, “समर्पण की कमी है। मां-बाप और पहलवान शायद पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वाहन नहीं कर रहे हैं।”
महासिंह राव देश के जाने-माने कोच हैं और भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को लंबे समय तक सेवाएं देने के बाद अब मध्यप्रदेश की भोपाल स्थित अकादमी में महिला और पुरुष पहलवानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राव साहब विश्व विख्यात गुरु हनुमान अखाड़े के प्रशिक्षक भी हैं, जिसने देश को कई दर्जन अंतरराष्ट्रीय पहलवान दिए हैं। महासिंह की राय में खिलाड़ी, कोच, अभिभावक और अकादमी से जुड़े लोग जब तक समर्पित नहीं होंगे, कोई भी खेल अच्छे रिजल्ट नहीं दे सकता है। खासकर, माता-पिता को गंभीर होने की जरूरत है।
महासिंह राव ने मध्यप्रदेश सरकार के खेल प्रेम की जमकर सराहना की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार तमाम खेलों को बढ़ावा दे रही है। सैकड़ों-हजारों खिलाड़ी अत्याधुनिक सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। उन पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन खिलाड़ी और उनके माता-पिता पूरी तरह से समर्पित नजर नहीं आते हैं। अच्छी खुराक, जेब खर्च, जिम सोना बाथ सबकुछ उपलब्ध है लेकिन प्रदेश के खिलाड़ियों में वो बात नहीं है, जैसा कि दिल्ली, हरियाणा और देश भर के अखाड़ों में नजर आती है। मां-बाप बच्चों के लिए मीलों की यात्रा करते हैं। उनकी प्रगति के बारे में जानकारी लेते हैं लेकिन ऐसा जुनून यहां दिखाई देता। नतीजन खिलाड़ी भी ज्यादा गंभीर नहीं है। कुछ एक समर्पित हैं और आगे बढ़ रहे हैं। बाकी सिर्फ सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।