सर डूरंड की आत्मा को दुखाया
- भारत के सबसे पुराने और सेना की देखरेख में आयोजित किए जाने वाले टूर्नामेंट के स्तर और लोकप्रियता में साल दर साल भारी कमी आई है और 1888 में शुरू हुआ एक नामी और प्रतिष्ठित आयोजन आज दर-दर भटक रहा है
- साल 2018 तक दिल्ली के डॉ. बीआर अंबेडकर स्टेडियम और कभी कभार नेशनल स्टेडियम में खेला जाने वाले डूरंड कप की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग बद से बदतर होती चली गई है, जिसका बड़ा श्रेय एआईएफएफ, सेना बोर्ड और डूरंड कमेटी को जाता है
- एक दौर वो भी था जब डूरंड कप में खेलना किसी फुटबॉलर का सपना होता था (संयोग से लेखक भी गढ़वाल हीरोज के लिए डूरंड कप खेल चुका है)
राजेंद्र सजवान
कुछ साल पहले तक देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित किया जाने वाला डूरंड कप अब पांच राज्यों में आयोजित किया जाएगा। 22 जुलाई से 23 अगस्त 2025 खेले जाने वाले दुनिया के तीसरे सबसे पुराने टूर्नामेंट के मुकाबले पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर, मेघालय और झारखंड आयोजित करेंगे। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि भारत के सबसे पुराने और सेना की देखरेख में आयोजित किए जाने वाले टूर्नामेंट का कद बढ़ गया है या फुटबॉल जगत की दिग्गज टीमें इस आयोजन में भाग लेने आ रही है।
दरअसल साल दर साल इस टूर्नामेंट के स्तर और लोकप्रियता में भारी कमी आई है। वर्ना क्या कारण है कि 1888 में शुरू हुआ एक नामी और प्रतिष्ठित आयोजन आज दर-दर भटक रहा है? 2018 तक दिल्ली के डॉ. बीआर अंबेडकर स्टेडियम और कभी कभार नेशनल स्टेडियम में खेला जाने वाला टूर्नामेंट भले ही भारतीय सेना के अनुशासित हाथों में रहा लेकिन साल दर साल डूरंड कप की लोकप्रियता और खेल का स्तर बुरी तरह गिर गया। आज आलम यह है कि इस आयोजन की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग बद से बदतर होती चली गई है, जिसका बड़ा श्रेय ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ), सेना बोर्ड और डूरंड कमेटी को जाता है।
एक दौर वो भी था जब डूरंड कप में खेलना किसी फुटबॉलर का सपना होता था (संयोग से लेखक भी गढ़वाल हीरोज के लिए डूरंड कप खेल चुका है।) लेकिन साल दर साल गिरते स्तर के चलते डूरंड और डीसीएम कप जैसे कई टूर्नामेंट दम तोड़ते चले गए। बार-बार आयोजन स्थान बदलना और प्रमुख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टीमों की घटती भागीदारी ने डूरंड कप को महज खानापूरी बना दिया है। कारण, अब क्रमश: 17 और 16 बार के चैम्पियन मोहन बागान और ईस्ट बंगाल, मोहम्मडन स्पोर्टिंग, लीडर्स क्लब, मफतलाल, गोरखा ब्रिगेड, राजस्थान पुलिस, जेसीटी, केरला पुलिस और दर्जनों अन्य टीमों जैसा खेल देखने को नहीं मिलता। कभी डॉ. अंबेडकर खचाखच भरा होता था लेकिन अब आईएसएल और आई-लीग जैसे बेतुके आयोजनों ने भारतीय फुटबॉल को बर्बाद कर दिया है जिसका डूरंड कप पर भी पड़ा है। बेशक ‘सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड की आत्मा भारतीय फुटबॉल और उसके कर्णधारों को जरूर कोसती होगी।’