- अडानी और जिंदल स्टील जैसी बड़ी कंपनियों ने क्रिकेट की दिल्ली प्रीमियर लीग को प्रमोट किया और करोड़ों रुपये के नकद पुरस्कार दिए गए
- फुटबॉल की तीसरी दिल्ली प्रीमियर लीग अब तक आधा सफर ही पूरा कर पाई है और डॉ. भीम राव अंबेडकर स्टेडियम समेत तमाम मैदान को अनुपलब्धता के कारण लंबी खिंच रही है
- यदि आईपीएल के अलावा कोई लीग लगातार बिना किसी व्यवधान के चल रही है तो वह शुरुआत 2014 में हुई प्रो-कबड्डी है, जबकि अन्य खेलों की लीग साल दो साल में दम तोड़ देती हैं
- नेशनल फुटबॉल लीग देश में फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए 1994 की गई थी जो कि एआईएफएफ द्वारा इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की भेंट चढ़ा दी गई
- टॉप 50 क्रिकेटरों को करोड़ों रुपये मिल रहे हैं लेकिन बाकी खेलों के ओलम्पिक पदक विजेता और अन्य अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को 5-10 लाख या अधिक से अधिक 50 लाख से 3-4 करोड़ रुपये मिल पाते हैं
- खेल प्रेमी जानते ही हैं कि श्रषभ पंत को नीलामी में 27 करोड़ रुपये मिले जबकि अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ी इतनी धनराशि आजीवन नहीं कमा पाते हैं
राजेंद्र सजवान
पिछले दिनों राजधानी के फिरोजशाह कोटला मैदान पर दिल्ली प्रीमियर लीग का आयोजन किया गया, जिसमें कई नामी क्रिकेटरों ने भी भाग लिया। अडानी और जिंदल स्टील जैसी बड़ी कंपनियों ने डीपीएल को प्रमोट किया और करोड़ों रुपये के नकद पुरस्कार दिए गए। बगल में सटे हुए डॉ. भीम राव अंबेडकर स्टेडियम में इसी दौरान फुटबॉल की तीसरी दिल्ली प्रीमियर लीग का आयोजन शुरू हुआ, अब तक आधा सफर ही पूरा कर पाई है। स्थानीय लीग से ऊपर बढ़े तो क्रिकेट की आईपीएल कई सौ करोड़ का खेल है, जिसमें खिलाड़ियों के हिस्से भी मोटी धनराशि आती है। खेल प्रेमी जानते ही हैं कि श्रषभ पंत को नीलामी में 27 करोड़ रुपये मिले। अर्थात अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ी इतनी धनराशि आजीवन नहीं कमा पाते हैं। इतना ही नहीं क्रिकेट खिलाड़ियों को रणजी ट्रॉफी, टेस्ट, वनडे और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में खेलने के लिए भी लाखों दिए जाते हैं।
क्रिकेट के अलावा भारत में हॉकी, फुटबॉल, कबड्डी, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, बास्केटबॉल, कुश्ती, टेनिस, बैडमिंटन आदि खेलों की लीग भी आयोजित की जाती है। लेकिन कुछ एक खेलों के लीग मुकाबले ही एक-दो साल से आगे बढ़ पाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, पंत, विराट कोहली और कुछ अन्य टॉप क्रिकेटरों को मिलने वाली फीस इतनी अधिक है जिसमें बाकी खेलों की पूरी लीग आसानी से आयोजित की जा सकती है। आईपीएल के बाद डब्लूपीएल भी तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है। दूसरी तरफ बाकी लीग एक-दो में ही दम तोड़ती नजर आती है।
हॉकी इंडिया लीग एक बार फिर चर्चा में है। पहली बार यह लीग 2013 में अस्तित्व में आई थी लेकिन तीन साल में ही हॉकी इंडिया का जोश जवाब दे गया। यदि कोई लीग लगातार बिना किसी व्यवधान के चल रही है तो वह प्रो-कबड्डी है, जिसकी शुरुआत 2014 में हुई और अब तक जारी है और गांव-देहात में खासी पसंद की जाती है। हैंडबॉल, रग्बी, टेनिस, कुश्ती, मुक्केबाजी आदि खेलों के लीग आयोजन भी शुरू किए गए और बिना किसी शोर-शराबे के निपट भी गए। क्रिकेट के आईपीएल की तर्ज पर शुरू हुई नेशनल फुटबॉल लीग (एनएफएल) देश में फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए 1994 की गई थी जो कि एआईएफएफ द्वारा इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की भेंट चढ़ा दी गई। लिहाजा, एआईएफएफ भारतीय फुटबॉल को बचा पाने में नाकाम रही है। हैरानी वाली बात यह है कि टॉप पचास क्रिकेटरों को करोड़ों रुपये मिल रहे है लेकिन बाकी खेलों के ओलम्पिक पदक विजेता और अन्य अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को 5-10 लाख या अधिक से अधिक 50 लाख से 3-4 करोड़ रुपये मिल पाते हैं। यही कारण है कि देश के युवा क्रिकेट की तरफ भाग रहे हैं और बाकी खेल उनकी प्राथमिकता में शामिल नहीं रह गए हैं।