- भारतीय खेलों को सेवाएं देने और कमाने-खाने के लिए आने वाले तमाम विदेशी कोचों की पहली प्राथमिकता स्टार खिलाड़ियों को अपनी ‘गुडबुक्स’ रखने की होती है और टीम के प्रमुख खिलाड़ियों से दोस्ती बनाए रखकर जब तक चाहे लाखों रुपये जेब में डालते रहने की होती है
- चूंकि अब सुनील छेत्री ने संन्यास की घोषणा कर दी है इसलिए हेड कोच इगोर स्टीमक भी ज्यादा दिन तक अपने पद पर नहीं टिकना चाहेंगे और शायद वे अपने अनुबंध के आखिरी दिन का इंतजार जरूर कर रहे होंगे
- पेले, माराडोना, मेस्सी, क्रिस्टियानो रोनाल्डो और तमाम खिलाड़ियों के उत्तराधिकारी उनके देश तैयार करते रहे हैं लेकिन भारतीय फुटबॉल में ऐसा कहीं नजर नहीं आता
- कतर के खिलाफ कोलकाता के युवा भारती क्रीड़ांगन में खेले गए वर्ल्ड कप क्वालीफायर मैच में ड्रा परिणाम के दौरान अपना एक भी खिलाड़ी ऐसा नहीं मिला, जो सुनील छेत्री का विकल्प कहा जा सके
- जो लोग सुनील छेत्री के संन्यास के बाद भारतीय फुटबॉल के भविष्य का रोना रो रहे हैं, उन्हें रोने-धोने की बजाय भविष्य की टीम के गठन पर जुट जाना चाहिए
राजेंद्र सजवान
भारतीय फुटबॉल के पूर्व कप्तान सुनील छेत्री आधिकारिक तौर पर फुटबॉल अलविदा कह चुके हैं। इसके साथ ही कोच इगोर स्टीमक के हेड कोच पद पर बने रहने की बड़ी वजह भी जाती रही है। पढ़ने-सुनने में अजब जरूर लगेगा लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय खेलों को सेवाएं देने और कमाने-खाने के लिए आने वाले तमाम विदेशी कोचों की पहली प्राथमिकता स्टार खिलाड़ियों को अपनी ‘गुडबुक्स’ रखने की होती है। बड़े और टीम के प्रमुख खिलाड़ियों से दोस्ती बनाए रखो और जब तक चाहे लाखों रुपये जेब में डालते रहो। चूंकि अब सुनील छेत्री ने संन्यास की घोषणा कर दी है इसलिए स्टीमक भी ज्यादा दिन तक अपने पद पर नहीं टिकना चाहेंगे। शायद वे अपने अनुबंध के आखिरी दिन का इंतजार जरूर कर रहे होंगे।
लेकिन छेत्री के बाद कौन? इस सवाल का जवाब शायद स्टीमक भी नहीं दे सकते। कारण कोई है ही नहीं। यह अलग बात है कि पेले, माराडोना, मेस्सी, क्रिस्टियानो रोनाल्डो और तमाम खिलाड़ियों के उत्तराधिकारी उनके देश तैयार करते रहे हैं। लेकिन भारतीय फुटबॉल में ऐसा कहीं नजर नहीं आता। सुनील छेत्री कतर के खिलाफ कोलकाता स्थित युवा भारती क्रीड़ांगन स्टेडियम और देश भर के प्रचार माध्यमों में भले ही छाए रहे लेकिन मैदान में कहीं नजर नहीं आए। यही हाल बाकी खिलाड़ियों का भी रहा। बेचारे स्टीमक बात-बात पर रेफरी-लाइनमैन को कोसते रहे, माथा पीटते रहे। भले ही मुकाबला ड्रा रहा लेकिन मेहमान खिलाड़ियों ने कहीं बेहतर प्रदर्शन किया।
जहां तक अपनों की बात है तो एक भी खिलाड़ी ऐसा नहीं मिला, जो कि सुनील छेत्री का विकल्प कहा जा सके। सुनील छेत्री ने एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए साक्षात्कार में साफ-साफ कहा कि भारत को वर्ल्ड कप खेलने का सपना देखने से पहले एशिया के शीर्ष दस फुटबॉल राष्ट्रों में स्थान बनाना होगा, जो कि फिलहाल संभव नहीं लगता, क्योंकि भारतीय फुटबॉल का ग्राफ निरंतर गिर रहा है। भले ही कुछ चाटुकार पत्रकार फुटबॉल का अधकचरा ज्ञान रखने वाले और फुटबॉल फेडरेशन के तलवे चाटने वाले एआईएफएफ के अंधभक्त बने हुए हैं।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि देश में फुटबॉल की वापसी के लिए कुछ भी प्रशंसनीय नहीं हो रहा है। जो लोग सुनील छेत्री के संन्यास के बाद भारतीय फुटबॉल के भविष्य का रोना रो रहे हैं, उन्हें रोने-धोने की बजाय भविष्य की टीम के गठन पर जुट जाना चाहिए। वरना, वो दिन दूर नहीं जब भारत सैफ देशों में भी फिसड्डी बन जाएगा।