सुनील श्रेष्ठ, सर्वश्रेष्ठ कदापि नहीं!

  • पिछले बीस-पच्चीस सालों के भारतीय फुटबॉल के इतिहास पर सरसरी नजर डालें तो विजयन, भूटिया और छेत्री अपने समकालीन खिलाड़ियों में श्रेष्ठ रहे
  • लेकिन यह कहना कि उनमें से कोई भी एशियाड विजेता, ओलम्पिक में भाग लेने वाले, या बड़े आयोजनों में जलवा बिखेरने वाले पूर्व खिलाड़ियों से श्रेष्ठ रहा है, सरासर गलत है
  • छेत्री 14-15 साल का था अद्वितीय था लेकिन आर्मी पब्लिक स्कूल धौला कुआं से शुरू हुई उसकी फुटबॉल यात्रा, विकासपुरी के ममता मॉडर्न स्कूल होते हुए आगे बढ़ती चली गई
  • इसमें दो राय नहीं कि छोटी कद काठी के बावजूद भी उसने बड़े करिश्मे किए क्योंकि गोल के लिए भारतीय टीम हमेशा उस पर निर्भर रही और जब जरूरत पड़ी उसने गोल दागे
  • 19 साल के करियर में 150 मैच और 94 अंतरराष्ट्रीय गोल उसकी महानता को दर्शाते हैं लेकिन मेसी और रोनाल्डो से उसकी तुलना कदापि नहीं हो सकती है

राजेंद्र सजवान

सुनील छेत्री के संन्यास की घोषणा से क्रिकेट का पिछलग्गू और सोया हुआ भारतीय मीडिया यकायक जाग गया है। बेशक, सुनील एक अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी रहे हैं और जब कभी देश को जरूरत पड़ी उसने अपना श्रेष्ठ दिया। जरूरत पड़ने पर उसने हाथ जोड़कर फुटबॉल प्रेमियों से मैदान और स्टेडियम में लौटने की फरियाद भी की। पता नहीं उसकी फरियाद का कोई असर हुआ या नहीं लेकिन भारतीय फुटबॉल का आलम यह है कि चाहे जिला स्तर का आयोजन हो, संतोष ट्रॉफी, आई-लीग और आईएसएल या कोई भी छोटा-बड़ा आयोजन भारतीय फुटबॉल प्रेमी सुनील की विदाई से बहुत पहले फुटबॉल को टाटा बॉय-बॉय कर चुके थे।

   पिछले बीस-पच्चीस सालों के भारतीय फुटबॉल के इतिहास पर सरसरी नजर डालें तो विजयन, भूटिया और छेत्री अपने समकालीन खिलाड़ियों में श्रेष्ठ रहे। लेकिन यह कहना कि उनमें से कोई भी एशियाड विजेता, ओलम्पिक में भाग लेने वाले, या बड़े आयोजनों में जलवा बिखेरने वाले पूर्व खिलाड़ियों से श्रेष्ठ रहा है, सरासर गलत है। संयोग से इन तीनों चैम्पियनों को बहुत करीब से देखने समझने का मौका मिला। ऐसा इसलिए क्योंकि फुटबॉल मेरा भी खेल रहा है। खासकर, छेत्री को स्कूली जीवन से देखा-परखा और जब वह 14-15 साल का था अद्वितीय था। हालांकि छेत्री को अब शायद ही याद हो लेकिन आर्मी पब्लिक स्कूल धौला कुआं से शुरू हुई उसकी फुटबॉल यात्रा, विकासपुरी के ममता मॉडर्न स्कूल और फिर आगे और आगे बढ़ती चली गई।

   इसमें दो राय नहीं कि छोटी कद काठी के बावजूद भी उसने बड़े करिश्मे किए। गोल के लिए भारतीय टीम हमेशा उस पर निर्भर रही। जब जरूरत पड़ी उसने गोल दागे। 19 साल के करियर में 150 मैच और 94 अंतरराष्ट्रीय गोल उसकी महानता को दर्शाते हैं। लेकिन मेसी और रोनाल्डो से उसकी तुलना कदापि नहीं हो सकती है। फुटबॉल जगत के महान देशों, बड़े क्लबों पर गोल दागने वाले दोनों दिग्गज एकदम हटके रहे हैं। लेकिन जिस देश की फुटबॉल साल दर साल नीचे लुढ़कती चली गई उसके स्टार खिलाड़ी द्वारा बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, अफगानिस्तान, कतर और कुछ अन्य फिसड्डियों पर गोल दागना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी खबर नहीं हो सकती है।

   बेशक, सुनील जब तक मैदान पर रहा, उसने अपना कद उन्नत किया लेकिन भारतीय फुटबॉल का कद घटता चला गया। आज भारतीय फुटबॉल वहां खड़ी है, जहां से कोई सुनील जैसा खिलाड़ी या उसके जैसे कुछ एक प्रतिभावान खिलाड़ी ही राह बना सकते हैं। फिलहाल भारतीय फुटबॉल को अगले सुनील की तलाश है, जो कि फिलहाल नजर नहीं आता।

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