June 16, 2025

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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के खाते में अनफिट खिलाड़ियों की भरमार

कभी एसबीआई का भी नाम दिल्ली की फुटबॉल में था लेकिन भर्ती नहीं होने के कारण खिलाड़ियों की कमी से जूझ रही है

एसबीआई फुटबॉल टीम कभी प्रीमियर, सीनियर और ए डिवीजन लीग खेला करती थी लेकिन आज लुढ़कते-लुढ़कते डीएसए की चौथे नंबर की ‘बी’ डिवीजन लीग में खेलती है

एक समय में स्टेट बैंक की फुटबॉल और हॉकी टीमों का खासा नाम था और कुछ एक खिलाड़ी राज्य और देश के लिए भी खेले

राजेंद्र सजवान

जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में फुटबॉल दिल्ली बी डिवीजन फुटबाल लीग के एक मैच में भारतीय स्टेट बैंक को द ड्रीम टीम फुटबॉल क्लब ने 11 गोलों से रौंद डाला तो कुछ पूर्व खिलाड़ी बैंक टीम की बदहाली पर बतियाते देखे गए। उन्हें उस युग की याद हो आई जब हरेंद्र भंडारी (हीरू), अशोक मधोक, श्री प्रसाद, प्यारे लाल, राजगोपाल, रॉबर्ट सैमुएल, दिनेश सूरी, पंकज चक्रवर्ती जैसे नामी खिलाड़ी बैंक टीम में शामिल थे। उस दौर में स्टेट बैंक की फुटबॉल और हॉकी टीमों का खासा नाम था और कुछ एक खिलाड़ी राज्य और देश के लिए भी खेले।

 

  बैंक ने अस्सी के दशक में कुछ और खिलाड़ियों को भर्ती किया और फुटबॉल में गिरती साख को बचाने का भरसक प्रयास किया। धनेंद्र रावत, तरुण राय, गोपाल, अनादि बरुआ, दयानंद, अभिजोय बासू जैसे खिलाड़ियों को बैंक ने स्पोर्ट्स कोटे की तहत भर्ती किया लेकिन गिरावट का क्रम रोके नहीं रुक पाया। शुरुआती वर्षों में डीएसए लीग में कुछ एक अच्छे प्रदर्शन किए लेकिन धीरे-धीरे एसबीआई फुटबॉल टीम की हवा निकलती चली गई और अब आलम यह है कि बैंक टीम  प्रीमियर, सीनियर और ए डिवीजन के बाद चौथे नंबर की ‘बी’ डिवीजन लीग में खेलती है। लेकिन किसलिए, इसका जवाब न अधिकारियों के पास है और न ही खिलाड़ी कुछ कहने की स्थिति में हैं।

 

  लगभग पचास साल पहले दिल्ली की फुटबॉल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एक बड़ा नाम हुआ करता था। डीएसए लीग में बैंक टीम एक अच्छे क्लब की हैसियत से भाग लेती थी। तब राजधानी के प्रमुख क्लबों में सिटी, यंगमैन, शिमला यंग्स, मुगल्स, एनडी हीरोज आदि का दबदबा था। उनके बीच बैंक का भी नाम था। लेकिन पिछले तीन दशकों में खिलाड़ियों की भर्ती शायद ही हुई हो। मजबूरन पुराने और अनफिट खिलाड़ियों से काम चलाना पड़ रहा है। ऐसे खिलाड़ी आज भी मैदान में उतर रहे हैं जिनसे अपना वजन संभालता नहीं और फुटबॉल पर लात मारने से पहले गिर पड़ते हैं। स्टेट बैंक के बैनर तले खेल रहे इस खिलाड़ियों को कोई गंभीर चोट लग जाए तो जिम्मेदार कौन होगा?

   कुछ एक अवसरों पर देखने में आया है कि सात खिलाड़ी मैदान में उतरते हैं। कुछ समय बाद एक खिलाड़ी चोट का बहाना कर लेट जाता है और रेफरी लंबी सीटी बजा कर मैच समाप्त कर देता है। एसबीआई पिछले कई सालों से सिर्फ खानापूरी कर रहा है। उसके खाते में अनफिट खिलाड़ी ही बचे हैं जो कि बैंक का नाम खराब कर रहे हैं।

   सवाल यह पैदा होता है कि एसबीआई की फुटबॉल टीम को डीएसए लीग से बाहर क्यों नहीं किया जा रहा? बेशक उसका पिछला रिकॉर्ड शानदार रहा है। लेकिन कब तक? आखिर डीएसए की मजबूरी क्या है?

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