October 17, 2025

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हो गया भारतीय फुटबॉल का ‘कल्याण’!

  • सच तो यह है कि भारतीय फुटबॉल आज वहां पहुंच गई है जहां से वापसी में सौ साल भी लग सकते हैं
  • एशियन चैंपियनशिप के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद अपनी फुटबॉल को लतियाने और गरियाने का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह थमने का नाम नहीं ले रहा
  • पूर्व फुटबॉलर, कोच, राज्य इकइयों के पदाधिकारी और फुटबॉल की गहरी समझ रखने वाले इस कदर खफा हैं कि अध्यक्ष कल्याण चौबे को निकाल बाहर करने की मांग की जाने लगी है

राजेंद्र सजवान

“अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय प्रिय रंजन दास मुंशी और प्रफुल पटेल फुटबॉलर नहीं थे लेकिन उनके पद पर रहते भारत की फुटबॉल इतनी नहीं गिरी थी, जितना पतन फुटबॉलर रहे कल्याण चौबे के राज-काज में हुआ है। हालांकि चौबे कभी भी बड़े नाम वाले खिलाड़ी नहीं रहे लेकिन अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल को बहुत बड़ी लानत के रूप में याद किया जाएगा”, एक पूर्व खिलाड़ी की इस टिप्पणी के इसलिए मायने रखती है क्योंकि सबसे ज्यादा आबादी बढ़ाने वाला देश फुटबॉल जगत में एक्सपोज़ हो गया है। सच तो यह है कि भारतीय फुटबॉल आज वहां पहुंच गई है जहां से वापसी में सौ साल भी लग सकते हैं।

   एशियन चैंपियनशिप के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद अपनी फुटबॉल को लतियाने और गरियाने का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह थमने का नाम नहीं ले रहा।  पूर्व फुटबॉलर, कोच, राज्य इकइयों के पदाधिकारी और फुटबॉल की गहरी समझ रखने वाले इस कदर खफा हैं कि अध्यक्ष कल्याण चौबे को निकाल बाहर करने की मांग की जाने लगी है। राज्य इकइयों में सालों से जमे बैठे पदाधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है। हरियाणा, हिमाचल, यूपी, एमपी, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, उड़ीसा, बंगाल, महाराष्ट्र, मेघालय, मणिपुर, गुजरात, बिहार और लगभग सभी स्टेट फुटबॉल एसोसिएशन से जुड़े क्लब और खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के प्रदर्शन से नाखुश हैं, जिसके लिए राज्य इकइयों में चल रहे लूट के खेल को दोषी माना जा रहा है। लगभग बीस राज्यों ने अपने स्टेट एसोसिएशन पर खिलाड़ियों के चयन में धांधली,  उम्र की धोखाधड़ी और पैसे के दुरुपयोग के आरोप लगाए हैं। यहां तक आरोप है कि उच्च अधिकारी एसोसिएशन का पैसा अपनी निजी अकादमियों पर खर्च कर रहे हैं।

   भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के एक सेवानिवृत कोच और चयन समिति के सदस्य (नाम गुप्त रखने में भलाई है), कुछ पूर्व खिलाड़ियों और पदाधिकारियों के अनुसार, भारतीय फुटबॉल की बर्बादी के मुख्य कारण हैं – 1- उम्र की धोखाधड़ी, 2- चयन में धांधली, 3- चयन समितियों में भ्रष्ट लोगों का दबदबा, 4- कुछ खिलाड़ियों को उनकी काबलियत से अधिक पैसा देना, 5- प्रतिभावानों को अंडर एस्टीमेट करना, 6- कुछ खास प्रदेशों का दबदबा, 7- अपने कोचों का तिरस्कार और ऐसे विदेशियों को महत्व देना जो कि शीर्ष खिलाड़ियों से मिलीभगत कर खेल को नुक्सान पहुंचाते हैं, 8- फेडरेशन और स्टेट इकइयों में भ्रष्ट लोगों की भर्ती  बेहद खतरनाक, 9- जुगाडू कोच बढ़ रहे हैं, 10- भारतीय खेल प्राधिकरण का लचर रवैया, 11- अत्याधुनिक तकनीक में निपट कोरे,  12 क्लब फुटबॉल को राष्ट्रीय दाइत्व से ऊपर आंकना और आईएसएल क्लबों की दादागिरी, 13- सच तो यह है कि ज्यादातर खिलाड़ी फुटबॉल का पहला पाठ भी ढंग से नहीं सीख पाते। फिर भला फुटबॉल का कल्याण कैसे हो सकता है चौबे जी।

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