- नए खेल मंत्री मनसुख मांडविया को विभाग संभालते ही सबसे पहले भारतीय खिलाड़ियों की तैयारी, मंत्रालय और साई के कामकाज और ओलम्पिक संभावनाओं की समीक्षा जरूर करनी होगी
- पिछले कुछ सालों में भारतीय खिलाड़ी के डोप में पकड़े जाने के मामले लगातार बढ़े हैं और अधिकारियों, कोचों आदि की उदासीनता के चलते भारत खेल जगत में सर्वाधिक नशाखोर खेल राष्ट्र बनता जा रहा है
- उनके सामने दूसरी बड़ी चुनौती महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण की समस्या और उनके प्रति कोचों और खेल संघों के पदाधिकारियों का घृणित रवैया से निपटने की होगी
- खेल नीति का महत्वपूर्ण मसला जस का तस खड़ा है तो खेल संघ मनमानी करते आ रहे हैं लिहाजा साई और मंत्रालय के ढीले रवैये के चलते बहुत से खेल दम तोड़ने के कगार पर हैं
- राष्ट्रीय खेल दिवस पर खेल अवार्डों की बंदर बांट को लेकर आम खिलाड़ी और कोच नाराज हैं
राजेंद्र सजवान
किसान परिवार में जन्मे और विद्यार्थी परिषद का बैकग्राउंड रखने वाले मनसुख मांडविया को मोदी कैबिनेट में अन्य विभागों के साथ-साथ खेल मंत्री भी बनाया गया है। अर्थात् वह अनुराग ठाकुर की जगह देश के खेल मंत्री बनाए गए हैं। वह 2002 में गुजरात विधानसभा चुनाव में सबसे कम उम्र के एमएलए बने थे और दस साल बाद 2012 में राज्यसभा सांसद चुने गए थे। अर्थात् छोटी उम्र में बड़ी उपलब्धियां पाने वाले मंत्री हैं। देश के खिलाड़ियों को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। देखना यह होगा कि वह भारतीय खेलों की कसौटी पर कहां तक खरे उतरते हैं।
नए खेल मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में पेरिस ओलम्पिक गेम्स गज भर की दूरी पर खड़ा है। हालांकि ओलम्पिक 2024 में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन का उनकी सेहत पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है। वह उस वक्त खेल मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे हैं, जब ओलम्पिक की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है और 26 जुलाई को ओलम्पिक खेल शुरू होने जा रहे हैं।
पूर्व खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने पिछले साल कुछ संबोधनों में कहा था कि भारत खेल के मैदान पर बड़ी ताकत बनने जा रहा है और पेरिस ओलम्पिक भारतीय खिलाड़ियों की योग्यता और क्षमता का गवाह बनेगा। ऐसे में नए खेल मंत्री को विभाग संभालते ही सबसे पहले भारतीय खिलाड़ियों की तैयारी, मंत्रालय और साई के कामकाज और ओलम्पिक संभावनाओं की समीक्षा जरूर करनी होगी।
पिछले कुछ सालों में भारतीय खिलाड़ियों के डोप में पकड़े जाने के मामले लगातार बढ़े हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि भारतीय खेल डोप की गिरफ्त में हैं और अधिकारियों, कोचों आदि की उदासीनता के चलते भारत खेल जगत में सर्वाधिक नशाखोर खेल राष्ट्र बनता जा रहा है। दूसरी बड़ी समस्या महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण और उनके प्रति कोचों और खेल संघों के पदाधिकारियों का घृणित रवैया रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि खेलों पर खर्च बढ़ रहा है लेकिन बड़ा हिस्सा अधिकारी और विदेशी कोचों की जेब में चला जाता है।
खेल नीति का महत्वपूर्ण मसला जस का तस खड़ा है तो खेल संघ मनमानी करते आ रहे हैं। साई और मंत्रालय के ढीले रवैये के चलते बहुत से खेल दम तोड़ने के कगार पर हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस पर खेल अवार्डों की बंदर बांट को लेकर आम खिलाड़ी और कोच नाराज हैं। बहुत से मसले हैं जिन पर नए खेल मंत्री जरूर ध्यान देंगे। ऐसा देश के खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों को भरोसा है।