खेल पत्रकारिता का मसखरा नहीं रहा!

  • खिलाड़ियों, खेल प्रशासकों, अधिकारियों और खेल पत्रकारों के सर्वप्रिय और हमेशा हंसमुख रहने वाले जाने-माने खेल पत्रकार हरपाल सिंह बेदी भगवान के प्यारे हो गए हैं
  • जिस इंसान ने पूरे जीवन हंसी, मजाक और जिंदादिली से जिया उसका यूं चले जाने न सिर्फ पत्रकारों के लिए दुखद हैं अपितु भारतीय खेल बिरादरी में एक सूनापन सा आ गया है
  • यूनीवार्ता के दिग्गज पत्रकार ने चार दशकों तक देश-विदेश के खिलाड़ियों को कवर किया, उनके उत्थान-पतन को बहुत करीब से देखा-परखा और उन्हें जमीन से उठाकर आसमान तक पहुंचाने का काम किया
  • मुझे इस बात का फक्र हैं कि लगभग 30 साल तक उनके साथ कुछ राष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन कवर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
  • वह मैच कवर करने की बजाय पत्रकारों और आयोजकों के साथ हंसी मजाक में व्यस्त रहते थे और मैच खत्म होने पर पूछते “यार कौन जीता, स्कोर क्या रहा?” उनकी यह अदा सबको भाती थी लेकिन अगले दिन सुबह तमाम अखबारों में यूएनआई की खबर सब पर छा जाती थी

राजेंद्र सजवान

खिलाड़ियों, खेल प्रशासकों, अधिकारियों और खेल पत्रकारों के सर्वप्रिय और हमेशा हंसमुख रहने वाले जाने-माने खेल पत्रकार हरपाल सिंह बेदी अब हमारे बीच नहीं रहे। जाहिर है कि अब खेल मैदानों, स्टेडियमों और सभा-समारोहों में वो पहले सी रौनक दिखाई-सुनाई नहीं पड़ेगी। इसलिए क्योंकि अब हरपाल बेदी भगवान के प्यारे हो गए हैं।

   जिस इंसान ने पूरे जीवन हंसी, मजाक और जिंदादिली से जिया उसका यूं चले जाने न सिर्फ पत्रकारों के लिए दुखद हैं अपितु भारतीय खेल बिरादरी में एक सूनापन सा आ गया है। यूएनआई-वार्ता (यूनीवार्ता) के दिग्गज पत्रकार ने चार दशकों तक देश-विदेश के खिलाड़ियों को कवर किया, उनके उत्थान-पतन को बहुत करीब से देखा-परखा और उन्हें जमीन से उठाकर आसमान तक पहुंचाने का काम किया। हालांकि देश में और भी बहुत से खेल पत्रकार हैं लेकिन बेदी इसलिए हटकर थे क्योंकि वे कुछ अलग सोचते थे। उभरते खिलाड़ियों के लिए उनका प्लेटफॉर्म हमेशा खुला रहता। उन्होंने सैकड़ों खिलाड़ियों को स्टार बनते देखा, जिनमें से कई एक उनकी कलम के जादू को जानते थे। कोई भी खेल और खिलाड़ी उनसे अछूता नहीं था। वह हर एक को प्यार-दुलार और मजाकिया अंदाज से अपना बना लेते थे। खेलों से जुड़ा हर शख्स उन्हें जानता-पहचानता था। चाहे मिल्खा सिंह, जसदेव सिंह, पीटी उषा, सरदार बलबीर सिंह, अजितपाल सिंह, हरबिंदर, अशोक ध्यानचंद, सतपाल, करतार, विजेंद्र, सुशील, योगेश्वर, जरनैल सिंह, इंदर सिंह और ओलम्पिक चैम्पियन अभिनव बिंद्र व नीरज चोपड़ा हों या आईओए के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी, महासचिव राजा रणधीर सिंह, सभी उनकी व्यवहार कुशलता, मजाकिया अंदाज और जिंदादिली के कायल रहे।

   मुझे इस बात का फक्र हैं कि लगभग 30 साल तक उनके साथ कुछ राष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन कवर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शिवाजी स्टेडियम में नेहरू हॉकी एवं शास्त्री हॉकी, डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम में डीसीएम और डूरंड कप और अन्य खेल आयोजनों में उनकी उपस्थिति से आयोजक, खिलाड़ी, और साथी पत्रकार हर वक्त तरोताजा महसूस करते थे। सच्चाई यह है कि वह मैच कवर करने की बजाय पत्रकारों और आयोजकों के साथ हंसी मजाक में व्यस्त रहते थे और मैच खत्म होने पर पूछते “यार कौन जीता, स्कोर क्या रहा?” उनकी यह अदा सबको भाती थी। लेकिन अगले दिन सुबह तमाम अखबारों में यूएनआई की खबर सब पर छा जाती थी।

   बेशक, हरपाल बेदी खेल पत्रकारिता के शिखर पुरुष थे और खेल से जुड़े बड़े-छोटे हर शख्स को भाते थे। उनकी जिंदादिली को सलाम!

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