- लड़ते-भिड़ते विदा हुए इगोर स्टीमक की जगह अब स्पेन के मैनोलो मार्कुएज भारतीय फुटबॉल टीम के कोच होंगे
- इंडियन सॉकर लीग (आईएसएल) के सफल कोच मैनोलो एफसी गोवा के कोच हैं
- आमतौर पर गोरे कोचों की नियुक्ति, उनका मनमर्जी से काम करना, नकारा फेडरेशन पर दबाव बनाना और अंतत: आरोप लगाते हुए विदा होने की परंपरा सी रही है
- फेडरेशन की तकनीकी समिति के सदस्य बाईचुंग भूटिया ने नए कोच की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताया और सदस्यता से इस्तीफा देने का ऐलान कर बड़ा धमाका कर दिया है
- कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार चौबे कभी भी अच्छा खिलाड़ी नहीं रहा और अधिकारी के रूप में भी लगातार फेल हो रहा है
- सवाल यह पैदा हो रहा है कि हेड कोच की नियुक्ति के लिए गठित पैनल को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?
राजेंद्र सजवान
‘अंत भला, सब भला,’ पता नहीं यह कहावत भारतीय फुटबॉल के मामले में कहां तक ठीक है। लेकिन यह सही है कि भारतीय फुटबॉल में जो कुछ हो रहा है उसके बारे में दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हालांकि पिछले तीस-चालीस सालों से सब कुछ गलत हो रहा है। वरना क्या कारण है कि जो देश कभी एशिया में श्रेष्ठ था और ओलम्पिक में यूरोपीय देशों को टक्कर दे रहा था आज उसके पास एक अच्छा कोच तक नहीं है। ले-देकर अंतत: फिर एक गोरा कोच अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) को भा गया है। लड़ते-भिड़ते विदा हुए इगोर स्टीमक की जगह अब स्पेनिश कोच मैनोलो मार्कुएज ने ली है। इंडियन सॉकर लीग (आईएसएल) के सफल कोच मैनोलो एफसी गोवा के कोच हैं।
आमतौर पर गोरे कोचों की नियुक्ति, उनका मनमर्जी से काम करना, नकारा फेडरेशन पर दबाव बनाना और अंतत: आरोप लगाते हुए विदा होने की परंपरा सी रही है। लेकिन मार्कुएज का गृह प्रवेश ही विवाद के साथ हो रहा है। देश के जाने-माने फुटबॉलर और फेडरेशन की तकनीकी समिति के सदस्य बाईचुंग भूटिया ने नए कोच की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताया और सदस्यता से इस्तीफा देने का ऐलान कर बड़ा धमाका कर दिया है। इतना ही नहीं फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे कुछ और लोगों के निशाने पर भी आ गए हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार चौबे कभी भी अच्छा खिलाड़ी नहीं रहा और अधिकारी के रूप में भी लगातार फेल हो रहा है। सवाल यह पैदा हो रहा है कि हेड कोच की नियुक्ति के लिए गठित पैनल को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया? ऐसे तो फुटबॉल का कल्याण नहीं होगा चौबे जी!
तारीफ की बात यह है कि देश के एक बड़े अखबार ने मार्कुएज को कोच बनाए जाने को भारतीय फुटबॉल का ‘ट्रैक पर आना’ बताया है। भले ही अध्यक्ष कल्याण चौके के फैसले पर कुछ चारण-भाट खुशी जाहिर कर रहे हैं लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जो भारतीय फुटबॉल कभी फीफा रैंकिंग में सम्मानजनक स्थान पर थी, उसके गिरावट का क्रम लगातार जारी है। जैसी कि परंपरा रही है कि मार्कुएज ने राष्ट्रीय का हेड कोच बनाए जाने के बाद भारतीय फुटबॉल और एआईएफएफ का स्तुति गान शुरू कर दिया है। उन्हें भारत अपना दूसरा घर नजर आने लगा है। लेकिन इतना तय है कि अपनी विदाई पर वे भी उसी भाषा का इस्तेमाल करेंगे, जैसी इगोर और उनसे पहले के गोरे कोच करते आए हैं। शायद वे भी यह कहते हुए विदा होंगे, “भारतीय फुटबॉल कभी भी नहीं सुधर सकती।”