….चूंकि प्रतिभाओं के हत्यारे हावी हैं!

  • भारतीय ओलम्पिक दल की वापसी पर आयोजित सम्मान समारोह में प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी, ‘खेलों में कोई भी हारना नहीं सीखता है,’ देश के खिलाड़ी, खेल जानकार और खेलों के शीर्ष बैठे अवसरवादी अपने-अपने तरीके से ले रहे हैं
  • कुछ पूर्व खिलाड़ियों की राय में जिन्हें शुरुआती दौर में हार का सामना करना पड़ा, उनके पास सीखने का मौका नहीं बचा है जबकि तीन-चार ओलम्पिक खेल चुके और बढ़ती उम्र के खिलाड़ी अब और क्या सीख सकते हैं?
  • जरूरत इस बात की है कि उभरती प्रतिभाओं को मौका दिया जाए लेकिन उम्र की धोखाधड़ी और खेल महासंघों और उनकी राज्य इकाइयों में व्याप्त भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और अपने-अपनों को रेवड़ी बांटने के कारण असल प्रतिभाएं उभरने से पहले ही मर जाती हैं या फिर मैदान छोड़ देती हैं
  • भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान-सम्मान की क्षति हो रही है, क्योंकि 150 करोड़ की आबादी वाला देश पदक तालिका में 71वें नंबर पर आया और यह कहा जाए कि देशवासी खुश हैं और छह पदक जीतने पर खुशी मनाई जाए तो यह व्यवहार देश के खेलों के लिए ठीक नहीं होगा
  • जरूरत इस बात की है कि ग्रास रूट पर देश के खेलों और खिलाड़ियों की हत्या करने वालों को कड़ी सजा दी जाए लेकिन यदि गंभीरता से दिखाई जाए और छोटी उम्र के प्रतिभावान खिलाड़ियों को समुचित अवसर दिए जाएं तो सचमुच भारत खेल महाशक्ति बन सकता है
  • एक सर्वे से पता चलता है कि लगभग सभी खेलों में निर्धारित आयु सीमा से बड़े खिलाड़ी धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं और समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब खेल महासंघों और राज्य संघों के पदाधिकारियों और कार्यकारिणी सदस्यों के लाडले-लाडलियां सब-जूनियर, जूनियर और सीनियर राष्ट्रीय आयोजनों में जबरन घुसपैठ करते हैं
  • सभी खेलों में यह जंगल राज चल रहा है, जिसकी चपेट में आकर प्रतिभावान खिलाड़ी हार जाता है और यह सीखता है कि फिर कभी खेल-मैदान का रुख नहीं करेगा

राजेंद्र सजवान

पेरिस ओलम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया को खेल हलकों में अपने-अपने अंदाज में लिया जा रहा है। भारतीय ओलम्पिक दल की वापसी पर आयोजित सम्मान समारोह में प्रधानमंत्री ने खुलकर पदक विजेताओं की सराहना की और उन्हें आशीर्वाद दिया। लेकिन ‘खेलों में कोई भी हारना नहीं सीखता है,’ इस टिप्पणी को देश के खिलाड़ी, खेल जानकार और खेलों के शीर्ष बैठे अवसरवादी अपने-अपने तरीके से ले रहे हैं।

 

  मात्र छह पदकों के साथ लौटे भारी-भरकम दल की पीठ थपथपाना और यह कहना कि खेलों में कोई भी हारता नहीं है सीखता है, जैसी प्रतिक्रिया को कुछ हास्यास्पद कहा जा रहा है। कुछ पूर्व खिलाड़ियों की राय में जो पदक नहीं जीत पाए या जिन्हें शुरुआती दौर में हार का सामना करना पड़ा, उनके पास सीखने का मौका नहीं बचा है। तीन-चार ओलम्पिक खेल चुके और बढ़ती उम्र के खिलाड़ी अब और क्या सीख सकते हैं? उनकी सीखने की उम्र निकल चुकी है। जरूरत इस बात की है कि उभरती प्रतिभाओं को मौका दिया जाए। ऐसी प्रतिभाओं को जिनकी सीखने समझने की उम्र में ही खेल के मैदान से बेदखल कर दिया जाता है। इसलिए क्योंकि देश की शर्मनाक और पक्षपात पूर्ण खेल व्यवस्था में सुधार नहीं हो पा रहा है।

   कुछ व्यक्तिगत कौशल वाले खेलों को छोड़ दें तो टीम खेलों में हर तरफ निराशा और हताशा व्याप्त है। कारण, टीम खेलों के प्रतिभावान खिलाड़ियों को शुरुआत में ही मैदान छोड़ने पर विवश कर दिया जाता है। उम्र की धोखाधड़ी और खेल महासंघों और उनकी राज्य इकाइयों में व्याप्त भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और अपने-अपनों को रेवड़ी बांटने के कारण असल प्रतिभाएं उभरने से पहले ही मर जाती हैं या फिर मैदान छोड़ देती हैं।

   मामला बहुत गंभीर है। भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान-सम्मान की क्षति हो रही है। 150 करोड़ की आबादी वाला देश पदक तालिका में 71वें नंबर पर आया और यह कहा जाए कि देशवासी खुश हैं और छह पदक जीतने पर खुशी मनाई जाए और अकड़-धकड़ दिखाई जाए तो यह व्यवहार देश के खेलों के लिए ठीक नहीं होगा।

   जरूरत इस बात की है कि ग्रास रूट पर देश के खेलों और खिलाड़ियों की हत्या करने वालों को कड़ी सजा दी जाए। सरकार खिलाड़ियों को लाखों-करोड़ों रुपये दे रही है। पदक जीतने पर उन्हें ऊंचे-ऊंचे पद दिए जा रहे हैं। ऐसा चंद पदक जीतने पर हो रहा है। लेकिन यदि गंभीरता से दिखाई जाए और छोटी उम्र के प्रतिभावान खिलाड़ियों को समुचित अवसर दिए जाएं तो सचमुच भारत खेल महाशक्ति बन सकता है।    एक सर्वे से पता चलता है कि लगभग सभी खेलों में निर्धारित आयु सीमा से बड़े खिलाड़ी धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं। समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब खेल महासंघों और राज्य संघों के पदाधिकारियों और कार्यकारिणी सदस्यों के लाडले-लाडलियां सब-जूनियर, जूनियर और सीनियर राष्ट्रीय आयोजनों में जबरन घुसपैठ करते हैं। सभी खेलों में यह जंगल राज चल रहा है, जिसकी चपेट में आकर प्रतिभावान खिलाड़ी हार जाता है और यह सीखता है कि फिर कभी खेल-मैदान का रुख नहीं करेगा। क्या सरकार, खेल मंत्रालय और साई प्रतिभाओं के साथ हो रहे अन्याय की खबर लेंगे?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *