- सिर्फ खेलो इंडिया बोल देने से तो इंडिया खेलना शुरू नहीं कर देगा, जी हां अभी इंडिया ने खेलना शुरू नहीं किया है
- आज की स्थिति को देखें तो किसी भी खेल में हमारे पास एक भी ओलम्पिक चैंपियन नहीं है, क्योंकि आबादी 150 करोड़ की और खेलने के लिए पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के 150 मैदान मौजूद नहीं हैं
- शायद सरकार और उसकी एजेंसियों को भी पता नहीं होगा। हैरानी वाली बात यह है कि पेरिस ओलम्पिक में छह झुनझुने जीतने वाला देश ओलम्पिक की मेजबानी का दावा ठोकने जा रहा है
- ऐसा देश जिसके पास खेलो के प्रयाप्त संसाधन नहीं है, जिसकी करोड़ों की आबादी भूखे पेट सोने को बाध्य है लेकिन खेल महाशक्ति बनने का दावा कर रहा है
राजेंद्र सजवान
देश भर में ‘खेलो इंडिया, खेलो इंडिया’ का शोर मचा है। सरकार की खेलो इंडिया नामक खेल प्रोत्साहन और प्रशिक्षण स्कीम कितनी सफल है और कितने खिलाड़ी इस योजना से निकलकर देश का नाम रोशन कर रहे हैं, इस बारे में तो सरकार का खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण और भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे खेल महासंघ ही बता सकते हैं लेकिन देश का आम नागरिक खेलों की तरफ दौड़ते नौनिहाल और आम खिलाड़ी कहां खेले?
सिर्फ खेलो इंडिया बोल देने से तो इंडिया खेलना शुरू नहीं कर देगा। जी हां, अभी इंडिया ने खेलना शुरू नहीं किया है। आज की स्थिति को देखें तो किसी भी खेल में हमारे पास एक भी ओलम्पिक चैंपियन नहीं है। आबादी 150 करोड़ और खेलने के लिए पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के 150 मैदान मौजूद नहीं हैं। चंद क्रिकेट स्टेडियम और पांच-सात हॉकी टर्फ को छोड़ दें तो कितने खेलों के कितने स्तरीय मैदान हैं, शायद सरकार और उसकी एजेंसियों को भी पता नहीं होगा। हैरानी वाली बात यह है कि पेरिस ओलम्पिक में छह झुनझुने जीतने वाला देश ओलम्पिक की मेजबानी का दावा ठोकने जा रहा है। ऐसा देश जिसके पास खेलो के प्रयाप्त संसाधन नहीं है, जिसकी करोड़ों की आबादी भूखे पेट सोने को बाध्य है लेकिन खेल महाशक्ति बनने का दावा कर रहा है।
एक सर्वे के अनुसार लगभग 40 मान्यता प्राप्त लोकप्रिय खेलों के लिए देश भर में चार सौ मैदान और कोर्ट भी नहीं है। दिल्ली एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए बनाए गए चार-पांच स्टेडियम दम तोड़ने के कगार पर हैं। कोलकाता, मुम्बई, बेंगलुरू, हैदराबाद आदि शहरों में भी कुछ एक खेलों के लिए मैदान हो सकते हैं लेकिन तैराकी, जिम्नास्टिक, एथलेटिक्स के आधुनिक स्टेडियम खोजे नहीं मिलेंगे। नतीजन इन सबसे ज्यादा मेडल वाले खेलों में हम सबसे पिछड़े हैं।
इंडिया को खेलने के लिए पुकारने वाली और प्रोत्साहन करने वाली सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि खेलने के लिए साधन सुविधाओं से पहले मैदान, कोर्ट, रिंग, तरणताल और बड़े-छोटे स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनाने की जरूरत है। सिर्फ नारे लगाने से इंडिया खेल शक्ति नहीं बनने वाला।