ख्याल अच्छा है दिल बहलाने के लिए!

  • केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर घोषणा की कि आजादी के सौ साल पूरे होने भारत खेल उत्कृष्टता के मामले में दुनिया की पांचवीं ताकत बन जाएगी
  • खेल मंत्री जो चाहते हैं उसे पाने के लिए भारतीय खिलाड़ियों के पास 23 वर्षों का समय है और पांच ओलम्पिक खेलने के बाद भारत तमाम प्रमुख देशों को टक्कर देने की स्थिति में रहेगा
  • पेरिस ओलम्पिक में हम बिना स्वर्ण पदक के छह पदक जीतकर पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहे और यह प्रदर्शन सही मायने में 150 करोड़ की आबादी वाले देश की जगहंसाई जैसा है
  • पेरिस से पुन: पेरिस तक खेले गए 20 ओलम्पिक में भारत के खाते में दस गोल्ड, दस सिल्वर और 21 ब्रॉन्ज सहित कुल 41 पदक आए हैं

राजेंद्र सजवान

केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर देश के खेल प्रेमियों को गदगद करने वाली घोषणा करते हुए कहा कि आजादी के सौ साल पूरे होने भारत खेल उत्कृष्टता के मामले में दुनिया की पांचवीं ताकत बन जाएगी। बेशक, खेल मंत्री के उद्गार सुनकर भारतीय का सीना चौड़ा होगा। यदि सचमुच ऐसा होता है तो भारतीय खिलाड़ी पदक तालिका के दिग्गज देशों अमेरिका, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, नीदरलैंड्स, ब्रिटेन, साउथ कोरिया, इटली, जर्मनी, स्पेन आदि के बहुत करीब पहुंच सकते हैं।

  खेल मंत्री जो चाहते हैं उसे पाने के लिए भारतीय खिलाड़ियों के पास 23 वर्षों का समय है। अर्थात् पांच ओलम्पिक खेलने के बाद भारत तमाम प्रमुख देशों को टक्कर देने की स्थिति में रहेगा। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि जिस प्रकार से हमारे खेल और खिलाड़ी पिछले सौ वर्षों में चले हैं उसे देखते हुए खेल मंत्री और किसी भी भविष्यवाणी करने वाले का सपना महज ख्याली पुलाव लगता है।

 

   यह ना भूलें कि पेरिस ओलम्पिक में हम बिना स्वर्ण पदक के छह पदक जीतकर पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहे। सही मायने में 150 करोड़ की आबादी वाले देश की यह उपलब्धि जगहंसाई जैसी है। भले ही सरकारें और खेलों के ठेकेदार अपनी पीठ थपथपाएं लेकिन पेरिस से पुन: पेरिस तक खेले गए 20 ओलम्पिक में भारत के खाते में दस गोल्ड, दस सिल्वर और 21 ब्रॉन्ज सहित कुल 41 पदक आए हैं। यह प्रदर्शन किसी भी मायने में शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है।

   सवाल यह पैदा होता है कि अगले 23 सालों में भारतीय खेल कौन सा चमत्कार करने जा रहे हैं? क्या कोई जादुई चिराग हाथ लग गया है? खेल जानकारों, विशेषज्ञों और पूर्व खिलाड़ियों की राय में आने वाले साल भारतीय खेलों के लिए और ज्यादा मुश्किल भरे हो सकते हैं। कारण, आबादी बढ़ रही है, खिलाड़ी भी बढ़ रहे हैं लेकिन खेल मैदानों, साधन सुविधाओं और अच्छे कोचों की कमी है। टीम खेलों में सिर्फ हॉकी पर उम्मीदें टिकी रहती हैं। तैराकी और जिम्नास्टिक में जीरो से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मान लीजिए कि मुक्केबाजी, कुश्ती, निशानेबाजी, बैडमिंटन या वेटलिफ्टिंग में छुटपुट पदक जीत पाए तो भी शीर्ष 20 देशों के आस-पास भी नहीं पहुंच सकते है। देश के खेल आका, सरकार, खेल मंत्रालय और तमाम जिम्मेदार लोग यह तो बताए कि क्या पदकों का जखीरा लूटने वाले देश खेलना छोड़ रहे हैं? वैसे, ख्याल अच्छा है देशवासियों को बरगलाने के लिये!

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