- दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र 2036 में ओलम्पिक खेलों के आयोजन का दम भर रहा है लेकिन भारतीय ओलम्पिक संघ में जो बवाल चल रहा है उसे लेकर ना सिर्फ देश के खेल आका हैरान परेशान हैं, बल्कि आईओसी की नजरें भी भारतीय घटनाक्रम पर लगी हैं
- आईओए में एक बड़ा धड़ा अध्यक्ष पीटी उषा को अपदस्थ करने की जुगत लड़ा रहा है और देर सवेर उड़न परी पर मुसीबत का पहाड़ गिर सकता है
- उषा के विरुद्ध बहुत से ऐसे लोग खड़े जो कि वर्षों से भारतीय खेलों को दीमक की तरह चाट रहे हैं और भारत द्वारा पेरिस ओलम्पिक में छह पदक जीतने को महान उपलब्धि बता रहे हैं
- यदि आईओसी भारत को ‘अनुशासनहीन’ ओलम्पिक सदस्य मान लेती है तो ओलम्पिक आयोजन का खोखला नारा सिर्फ खयाली पुलाव बन कर रह जाएगा
राजेंद्र सजवान
पेरिस ओलम्पिक गेम्स में छह पदक जीतने वाला दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र 2036 में ओलम्पिक खेलों के आयोजन का दम भर रहा है। किसी भी देश को ओलम्पिक आयोजन पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) के सदस्य देशों का समर्थन पाना होता है। इस कसौटी पर भारत का दावा कहां तक खरा उतरता है यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन फिलहाल भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) में जो कुछ चल रहा है उसे लेकर ना सिर्फ देश के खेल आका हैरान परेशान हैं, बल्कि आईओसी की नजरें भी भारतीय घटनाक्रम पर लगी हैं।
पीटी उषा को आईओए के अध्यक्ष पद सौंपने और ओलम्पिक में दयनीय प्रदर्शन के बाद से उषा का पद पर रहना मुश्किल हो गया है। यह साफ हो गया है कि एक बड़ा धड़ा उषा को अपदस्थ करने की जुगत लड़ा रहा है और देर सवेर उड़न परी पर मुसीबत का पहाड़ गिर सकता है। क्योंकि उसके विरुद्ध बहुत से ऐसे लोग खड़े जो कि वर्षों से भारतीय खेलों को दीमक की तरह चाट रहे हैं। ये वही लोग हैं जो कि 150 करोड़ की आबादी वाले देश द्वारा छह-सात ओलम्पिक पदक जीतने को महान उपलब्धि बता रहे हैं।
खेल मंत्रालय, खेल महासंघों और राज्य खेल संघों को गुमराह करने वाले यही खेल आका देश में खेलों का माहौल खराब करते आए हैं। आईओए की लड़ाई खेल मंत्रालय और खेल संघों की पकड़ से बाहर चली गई है। पीटी उषा और अन्य के बीच का टकराव अब आईओसी की अदालत में पहुंच गया है, जहां ‘रहम’ ‘सेटिंग’ और ‘मिलीभगत’ जैसे शब्दों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। खुद आईओए के नंबरदार कह रहे हैं कि यदि पीटी उषा नहीं हटीं तो आईओसी कठोर फैसला सुना सकती है। यदि आईओसी भारत को ‘अनुशासनहीन’ ओलम्पिक सदस्य मान लेती है तो ओलम्पिक आयोजन का खोखला नारा सिर्फ खयाली पुलाव बन कर रह जाएगा।
आईओए की गुटबाजी का असर राज्य ओलम्पिक समितियों पर भी साफ देखा जा सकता है। अधिकतर इकाइयां सिर्फ कागजों पर चल रही हैं। उत्तराखंड में आयोजन होने वाले राष्ट्रीय खेलों पर भी ग्रहण लग गया है। आगे भी बहुत कुछ अशुभ होने के संकेत मिल रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पैरालंपिक खेलों ने देश की लाज बचा ली। लेकिन आईओए की अंतर्कलह देश के मान सम्मान पर भारी पड़ सकती है।