डीपीएल: हवा फुस्स, लंगड़ा कर चलने को मजबूर

  • दिल्ली प्रीमियर लीग का तीसरा संस्करण चलते-चलते यकायक लड़खड़ा गया है क्योंकि चार से आठ अक्टूबर तक दिल्ली स्थित डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम डीएसए की पकड़ से बाहर चला गया
  • जब लीग बमुश्किल शुरू हुई और रफ्तार पकड़ रही थी, तभी इस झटके से अचानक लोकल एसोसिएशन हैरान रह गई और राजधानी के 12 टॉप क्लब भी परेशान हो गए
  • अपना कोई मैदान नहीं होने के कारण डीएसए की फुटबॉल गतिविधियां बार-बार बाधित-प्रभावित होती रही हैं
  • डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम को भले ही डीएसए अपने बाप की जागीर समझे लेकिन यह साफ हो गया है कि दिल्ली की फुटबॉल को संचालित करने वाली इकाई के हाथ से डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम और अन्य फुटबाल मैदान पूरी तरह से निकल गए हैं
  • पूर्वी विनोद नगर, त्यागराज नगर और अन्य मैदान स्थानीय इकाई की पकड़ से या तो बाहर हो गए हैं या फिर ये मैदान खेलने लायक नहीं हैं

राजेंद्र सजवान

दिल्ली प्रीमियर लीग का तीसरा संस्करण चलते-चलते यकायक लड़खड़ा गया है। तीन अक्टूबर को दिल्ली एफसी और रॉयल रेंजर्स के बीच खेले गए अब तक के सबसे रोमांचक मुकाबले के बाद से डीपीएल को इसलिए रुकना पड़ा क्योंकि चार से आठ अक्टूबर तक दिल्ली स्थित डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) की पकड़ से बाहर चला गया। उस समय जबकि लीग बमुश्किल शुरू हुई और रफ्तार पकड़ रही थी, अचानक लगे इस झटके से ना सिर्फ लोकल एसोसिएशन को आघात पहुंचा है, अपितु भाग लेने वाले राजधानी के 12 टॉप क्लब भी हैरान-परेशान हैं।

   तमाम लड़ाई-झगड़ों, आरोपों-प्रत्यारोपों और विवादों से पार पाने के बाद लीग शुरू हुई, और रुक भी गई। भले ही पांच दिन मैच नहीं खेले गए लेकिन ‘रुकावट के लिए खेद है’, बोलकर काम नहीं चलने वाला। भाग लेने वाले क्लबों में से ज्यादातर इसलिए नाराज हैं क्योंकि उनके अधिकतर खिलाड़ी बाहरी प्रदेशों से हैं, जिन्हें बैठाकर खिलाना क्लबों को भारी पड़ रहा है। व्यवधान का सीधा मतलब है कि टीमों को नए सिरे से जोश बटोरना होगा और नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि नौ अक्टूबर से जब एक बार फिर लीग शुरू होगी तो फिर कोई व्यवधान पैदा नहीं होगा। डीपीएल के कार्यक्रम पर नजर डालें तो दो तीन मैचों के बाद रुकावट का सिलसिला चलता रहेगा। ज्यादातर क्लब दहशत में हैं। उन्हें नहीं लगता है कि डीपीएल के मुकाबले नियत समय पर समाप्त हो पाएंगे। दूसरा डर यह है कि पिछले सत्र की तरह ‘बी’, ‘सी’ डिवीजन और संस्थानिक लीग के मुकाबले भी शायद ही खेल जाएं।

   इसमें कोई शक नहीं है कि अपना कोई मैदान नहीं होने के कारण डीएसए की फुटबॉल गतिविधियां बार-बार बाधित-प्रभावित होती रही हैं। डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम को भले ही डीएसए अपने बाप की जागीर समझे लेकिन यह साफ हो गया है कि दिल्ली की फुटबॉल को संचालित करने वाली इकाई के हाथ से अम्बेडकर स्टेडियम और अन्य फुटबाल मैदान  पूरी तरह से निकल गए हैं। पूर्वी विनोद नगर, त्यागराज नगर और अन्य मैदान स्थानीय इकाई की पकड़ से या तो बाहर हो गए हैं या फिर ये मैदान खेलने लायक नहीं हैं।    डीएसए के लिए दूसरी बुरी खबर यह है कि दिल्ली की फुटबॉल देश भर में मैच फिक्सिंग को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई है। आरोप लगाया जा रहा है कि देश-विदेश के सट्टेबाज और फिक्सर राजधानी दिल्ली में डेरा डाले हैं। यदि सचमुच ऐसा है तो फुटबॉल की बर्बादी तय समझें। फिलहाल फुटबॉल ठप्प है या लंगड़ा कर चल रही है। बस गुटबाजी जोरों पर है।

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