- भारत की राजधानी में स्थित डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम की अनुपलब्धता के कारण दिल्ली प्रीमियर लीग का तीसरा संस्करण फिर से उपहास का पात्र बन गया है
- लीग शुरू हुए 19 दिन बीत गए हैं लेकिन दो मैच प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 22 मैच खेले जा सके हैं और इस हिसाब से डबल लेग मुकाबले दिसंबर अंत तक भी शायद ही पूरे हो पाए
- स्टेडियम और फुटबॉल मैदानों का उपलब्ध न होना फुटबॉल गतिविधियां जारी रखने में बड़ी बाधा बने हुए हैं
- जिस डॉ बीआर अम्बेडकर स्टेडियम को डीएसए अपनी जागीर बता रहा था, वह दो दिन के लिए उपलब्ध होता है और फिर चार दिन एमसीडी ठेंगा दिखा देता है
- यदि हालात नहीं सुधरे तो बाकी लीग कार्यक्रम भी मजाक बन सकते हैं और पता नहीं दिल्ली की फुटबॉल के कर्णधार कब समझेंगे?
राजेंद्र सजवान
भारत की राजधानी में स्थित डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम की अनुपलब्धता के चलते दिल्ली प्रीमियर लीग का तीसरा संस्करण एक बार फिर से उपहास का पात्र बन गया है। लीग शुरू हुए 19 दिन बीत गए हैं लेकिन दो मैच प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 22 मैच खेले जा सके हैं। फिलहाल, मौजूदा विजेता गढ़वाल हीरोज अंक तालिका में शीर्ष स्थान पर बने हुए हैं। अन्य टीमों में रॉयल रेंजर्स, सदेवा, दिल्ली एफसी, सीआईएसएफ प्रोटेक्टर्स आदि ठीक-ठाक प्रदर्शन कर रहे हैं।
जहां तक फुटबॉल प्रेमियों की बात है उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। चूंकि खेल का स्तर साल दर साल गिर रहा है इसलिए फुटबॉल के शौकीनों ने अम्बेडकर स्टेडियम का रुख करना बंद कर दिया है। सच तो यह है कि देश की राजधानी की फुटबॉल महज मजाक बन कर रह गई है क्योंकि फुटबॉल अपने कैलेंडर के हिसाब से नहीं चल रही। जहां एक ओर अन्य प्रदेशों में वार्षिक लीग मुकाबले लगभग समाप्त हो चुके हैं जिनके आधार पर संतोष ट्रॉफी के लिए खिलाड़ियों का चयन किया जाता है। लेकिन डीपीएल के डबल लेग मुकाबले दिसंबर अंत तक भी शायद ही निपटे।
इसमें दो राय नहीं कि दिल्ली की फुटबॉल में अच्छे और स्तरीय खिलाड़ियों की भरमार है। रजिस्टर्ड क्लब भी ठीक ठाक हैं। लेकिन स्टेडियम और फुटबॉल मैदानों का उपलब्ध न होना फुटबॉल गतिविधियां जारी रखने में बड़ी बाधा बने हुए हैं। जिस डॉ बीआर अम्बेडकर स्टेडियम को डीएसए अपनी जागीर बता रहा था, वह दो दिन के लिए उपलब्ध होता है और फिर चार दिन एमसीडी ठेंगा दिखा देता है। यदि हालात नहीं सुधरे तो बाकी लीग कार्यक्रम भी मजाक बन सकते हैं। पता नहीं देश की राजधानी की फुटबॉल के कर्णधार कब समझेंगे? लीग मुकाबले आयोजित कर पाना तो मुश्किल होता जा रहा है, आयोजन समिति, रेफरी और लाइनमैन पर आरोप लगाने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में दिल्ली की फुटबॉल का भला होता नजर नहीं आता।
Thanx Sir for apprising the factual position to the football lovers. Yes I absolutely agree with ur opinions. Association is totally depended on the MCD/SAI for allocations of ground, they have their own excuses. We had literally begged for lending the grounds in continuance of football activity but Senior Management of the MCD assured that due to Delhi Govt’s policies they can’t help but will resolve the issues soon. As discussed , Refereeing is a thankless job and are also a human beings. They are blamed for the teams loss but never appreciated in public forum for good performances. Delhi had a legacy of stalwart Match Officials and the young generation is following the footsteps . Young budding football players are evidently seen playing and bring laurels for Delhi lately, is definitely a good sign.
We all have to collectively work for making it possible to resolve issues by providing assistance to the Association . 🙏🌹
इस कारण भाग लेने वाली टीमों का बहुत बुरा हाल है क्योंकि हफ्ते में एक टीम सिर्फ 1 ही मैच खेल पा रही है। League sub committee ने नवंबर अंत तक league समाप्त होने का वायदा किया था जिस कारण खिलरियों का कंट्रैट भी नोवेम्बर तक ही किया गया था। इसी बीच संतोष ट्रॉफी होने के कारण भी लीग 10-15 दिन के लिए भी रोकनी पड़ेगी। यह लीग जनवरी तक जायेगी तौ बाकी लीग का क्या होगा जैसे कि पिछले साल 2-3 लीग नही हुई। इस साल हो सकता है कि 3-4 लीग नही हो पायेगी। इस और association को तुरंत ध्यान देना चाहिए और DPL को जल्दी से जल्दी समाप्त करनी चाहिए। आपकी चिंता का सम्मान करता हूँ लेकिन association को किसी प्रकार की चिंता नही है और वे दिल्ली राज्य की टीमों को भेजने में अपना स्वार्थ पूरा कर रहे हैं।