- ग्लास्गो 2026 के कॉमनवेल्थ खेल से भारत के लिए पदक की संभावना वाले खेलों – हॉकी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, निशानेबाजी और कुश्ती – को बाहर कर दिया है
- मेजबान शहर ग्लास्गो ने ‘कॉस्ट कटिंग’ के लिए इस बहुस्पर्धीय प्रतियोगिया में कुल नौ खेलों को आयोजित नहीं करने का फैसला लिया है
- एक हॉकी ओलम्पियन और विश्व विजेता टीम के अनुसार, “इन खेलों को देशों की प्रतियोगिता माना जाता है जो ब्रिटिश साम्राज्य के गुलाम रहे”
- खेल प्रेमी मानते हैं कि भारत को यदि खेल ‘महाशक्ति’ बनना है तो एशियाड और ओलम्पिक की बात को महत्व दिया जाना बेहतर होगा
राजेंद्र सजवान
खबर है कि भारतीय खेलों पर वर्षों से राज करने वाले और बार-बार पाला बदलने वाले कुछ अवसरवादी भारत सरकार और आईओए को कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए उकसा रहे हैं। इसलिए क्योंकि 2026 के कॉमनवेल्थ खेल आयोजक ग्लास्गो ने भारत के लिए पदक की संभावना वाले खेलों – हॉकी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, निशानेबाजी और कुश्ती – को आयोजन से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
बेशक, यह सरासर भारतीय खिलाड़ियों, खेल आकाओं और सरकार की खेल प्रोत्साहन योजना के विरुद्ध लिया गया फैसला है। मेजबान शहर ग्लास्गो ने ‘कॉस्ट कटिंग’ के लिए इन खेलों के साथ-साथ स्क्वैश, ट्रायथलॉन सहित नौ खेलों को आयोजन नहीं करने का फैसला लिया है। जैसा कि आप जानते हैं कि भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स के 12 आयोजनों में 203 स्वर्ण, 190 रजत और 171 कांस्य सहित कुल 564 पदक जीते हैं।
आयोजकों के एकतरफा फैसले से भारतीय खेलों में हड़कंप सा मच गया है। कुछ खिलाड़ी, कोच और खेल महासंघों के प्रमुख आयोजकों को भला-बुरा कह रहे हैं। मामला भारत सरकार की अदालत में भी पहुंच गया है और सरकार द्वारा बकायदा कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन और आयोजकों पर दबाव डालने का आश्वासन भी दिया जा चुका है।
“इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय खिलाड़ी इन खेलों में हमेशा अधिकाधिक पदक जीतते आए हैं। इसलिए क्योंकि इन खेलों को गुलाम रहे देशों की प्रतियोगिता माना जाता है। जो देश अंग्रेजों के गुलाम थे उनके लिए इन खेलों का आयोजन किया जाता है,” एक हॉकी ओलम्पियन और विश्व विजेता टीम के प्रमुख खिलाड़ी की यह प्रतिक्रिया है। एक पूर्व पहलवान के अनुसार, “हम ओलम्पिक आयोजित करने और प्रमुख खेल राष्ट्रों से टकराने का दम भरते हैं लेकिन कॉमनवेल्थ का स्तर तो एशियाड से भी बद्तर है, तो फिर चिल्ला पों किसलिए।”
पूरा देश और तमाम पदक विजेता यह भी जानते हैं कि 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के कारण देश में कैसा कोहराम मचा था। कुछ आयोजक जेल गए तो कुछ और पर तमाम धांधली के आरोप लगे थे। उनमें से कुछ आज भी भारतीय खेलों को दीमक की तरह चाट रहे हैं। देश में खेल प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि भारत को यदि खेल ‘महाशक्ति’ बनना है तो एशियाड और ओलम्पिक की बात को महत्व दिया जाना बेहतर होगा। कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेने से कुछ लोगों का भला तो हो सकता है लेकिन यह भी तय है कि इन खेलों का अंत निकट है।