- 125वें रैंक की भारतीय फुटबॉल टीम का अपने मैदान और दर्शकों के सामने 133वें पायदान पर खड़ी मलेशिया से हारते-हारते बची और 1-1 से ड्रा खेलने को मजबूर हुई
- भारत ने साल भर तक एक भी मैच नहीं जीतने का रिकॉर्ड कायम कर दिया है, जिसमें छह हार और पांच ड्रा शामिल हैं
- पिछली जीत भारत को 16 नवंबर 2023 वर्ल्ड कप क्वालीफायर में कुवैत पर एक गोल की जीत के बाद मिली थी
- पिछले चालीस सालों से फुटबॉल फेडरेशन झूठे आंकड़े परोस कर भारत के फुटबॉल प्रेमियों को सब्जबाग दिखाता आ रहा है और विदेशी कोचों पर भी करोड़ों रुपये खर्च करके भी प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं हुआ
राजेंद्र सजवान
भारतीय फुटबॉल टीम ने मलेशिया से ड्रा खेलकर एक और उपलब्धि अपने नाम कर ली है। मलेशिया के साथ दोस्ताना मुकाबले में 1-1 की बराबरी काबिले तारीफ तो नहीं है लेकिन 125वें रैंक की भारतीय टीम का अपने मैदान और दर्शकों के सामने 133वें पायदान पर खड़ी मलेशिया से हारते-हारते बचना इसलिए उपलब्धि कही जा रही है, क्योंकि भारत ने साल भर तक एक भी मैच नहीं जीतने का रिकॉर्ड कायम कर दिया है। कमजोर एवं फिसड्डी टीमों के सामने हार को वरण करने का रिकॉर्ड बनाने वाली भारतीय फुटबॉल टीम को कोसें, देश के फुटबॉल को संचालित करने वाली शीर्ष संस्था एआईएफएफ को भला-बुरा कहें या स्पेनिश कोच मैनोलो मार्कुएज को कसूरवार ठहराएं, कुछ भी समझ नहीं आ रहा।
खेल में हार-जीत स्वाभाविक है लेकिन जब कोई देश या टीम जीतना भूल जाए तो इस प्रकार के रिकॉर्ड को शर्मनाक ही कहा जा सकता है। जब साल भर तक कोई मैच नहीं जीतना तो ऐसे खेलने का क्या फायदा? क्यों देशवासियों की उम्मीदों पर पानी फेरा जा रहा है? मॉरीशस से बराबरी पर खेले, सीरिया से 0-3 से हारे और फिर वियतनाम से भी जीत नहीं पाए। जहां तक पिछली जीत की बात है तो 16 नवंबर 2023 वर्ल्ड कप क्वालीफायर में कुवैत पर एक गोल की जीत के बाद से भारतीय फुटबॉल ने जीत का मुंह नहीं देखा है। साल भर में छह हार और पांच ड्रा भारत के खाते में रहे। सरकारी सहायता प्राप्त खेलों में फुटबॉल उन खेलों में शामिल है, जिन पर देश के करदाताओं की खून-पसीने की सबसे ज्यादा कमाई खर्च होती है। पिछले चालीस सालों से फुटबॉल फेडरेशन देश के फुटबॉल प्रेमियों को सब्जबाग दिखाता आ रहा है। झूठे आंकड़े परोसने वाली फेडरेशन ने विदेशी कोचों पर भी करोड़ों रुपये खर्च किए लेकिन प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं हुआ। पड़ोसी देश नेपाल, अफगानिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश भी 150 करोड़ की आबादी वाले देश की फुटबॉल का मानमर्दन कर डालते हैं। तो सिर्फ हारने के लिए खेलना कहां की समझदारी है?