राजेंद्र सजवान
‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यूं-ज्यू दवा की’, भारतीय फुटबॉल पर यह कहावत एकदम फिट बैठती है। खासकर, पिछले पचास सालों से फुटबॉल उन निकम्मे खेलों में सबसे आगे की कतार पर है, जिन्होंने नहीं सुधरने की कसम खाई है। वरना क्या कारण है कि सरकार और प्रयोजकों की पर्याप्त मदद के बावजूद फुटबॉल नीचे और नीचे लुढ़कती जा रही है? और क्यों कल्याण चौबे का इस्तीफा मांगा जा रहा है?
वह दौर और था जब विश्व स्तर पर भारतीय फुटबॉल ने पहचान बना ली थी। एशियाड भी जीते, लेकिन अब गिरावट की तमाम हदें पार हो चुकी हैं। तमाम विदेशी कोचों को भी आजमा कर देख लिया लेकिन फीफा रैंकिंग में 126वें नंबर देश जनसंख्या बढ़ाने के अलावा कोई बड़ा तीर नहीं चला पाया है। हैरानी वाली बात यह है कि एक दौर वह भी था जब 15-20 टॉप भारतीय क्लब और संस्थानों के खिलाड़ियों से भारतीय फुटबॉल प्रेमी परिचित थे लेकिन आज अपनी फिसड्डी राष्ट्रीय टीम के चार खिलाड़ियों को भी बहुत कम जानते हैं।
भारत में फुटबॉल का पतन क्यों हो रहा है? क्यों हमारी राष्ट्रीय फुटबॉल टीम अपने महाफिसड्डी पड़ोसियों के आगे हथियार डाल देती है? क्यों आम भारतीय फुटबॉल प्रेमी अपनी फेडरेशन (एआईएफएफ) को सरेआम गालियां दे रहा है? क्यों सोशल मीडिया फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे को कोस रहा है? इसलिए चूंकि फेडरेशन के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। इसलिए क्योंकि कल्याण चौबे फुटबॉल की बजाय आईओए की गंदी और भ्रष्ट राजनीति में खेल रहे है, ऐसा देश के फुटबॉल क्लबों, खिलाड़ियों और फुटबॉल प्रेमियों का मानना है। उन्हें यह भी खबर नहीं कि देश की अधिकतर राज्य इकाइयों में फुटबॉल मर दब रही है। भ्रष्ट और स्वार्थी अध्यक्ष और पदाधिकारी दिन-रात भारतीय फुटबॉल का बलात्कार कर रहे हैं। संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप को मजाक बनाने वाली फेडरेशन के अध्यक्ष कल्याण चौबे हल्की-फुल्की फुटबॉल खेले हैं लेकिन ज्यादातर सदस्य इकाइयों के नब्बे फीसदी पदाधिकारियों पर उंगली उठ रही है, क्योंकि दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल को वही ज्यादा लूट रहे हैं। नतीजन चौबे से पद छोड़ने की मांग की जाने लगी है।