- भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष प्रियरंजन दासमुंशी ने 2006 तक वर्ल्ड कप खेलने का दावा किया था और तब से तत्पश्चात यह टारगेट आगे बढ़ता चला गया
- सीधा सा मतलब है कि भारतीय फुटबॉल के कर्णधार फिलहाल वर्ल्ड कप खेलने की बजाय फीफा रैंकिंग सुधारने पर ध्यान दे रहे हैं
- भारत के खेल मंत्री मनसुख मांडविया कह रहे है कि एआईएफएफ को अगले दस 50वीं रैंकिंग का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए
- सीनियर राष्ट्रीय टीम का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है और साल दर साल और दिन पर दिन की गिरावट के चलते बेहतर की उम्मीद छलावा लगती है
- फेडरेशन सालों से सरकारों, खिलाड़ियों और अभिभावकों को झूठ परोस रही है
राजेंद्र सजवान
दो दशक से ज्यादा समय बीत गया। भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष प्रियरंजन दासमुंशी ने 2006 तक वर्ल्ड कप खेलने का दावा किया था। तत्पश्चात यह टारगेट आगे बढ़ता चला गया और आज भारत के खेल मंत्री मनसुख मांडविया कह रहे है कि एआईएफएफ को अगले दस 50वीं रैंकिंग का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। सीधा सा मतलब है कि भारतीय फुटबॉल के कर्णधार फिलहाल वर्ल्ड कप खेलने की बजाय फीफा रैंकिंग सुधारने पर ध्यान दे रहे हैं।
अच्छी बात यह है कि भारत के खेल मंत्री फुटबॉल की महानता को समझते है और यह भी जान गए है कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल में ऊंचाई पर पहुंचना कितना कठिन है। लेकिन क्या ऐसा संभव है कि विश्व फुटबॉल के फिसड्डी देशों में शामिल भारत कभी शीर्ष 50 देशों में जगह बना पाएगा? जो काम 100 सालों में नहीं कर पाए उसे करने का दम भर रहे हैं। खेल मंत्री को देश के खेलों की स्थिति की कितनी जानकारी है, कहना मुश्किल है। लेकिन फेडरेशन के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने उन्हें जो तस्वीर दिखाई है उसे लेकर मंत्री जी का उत्साहित होना स्वाभाविक है। चौबे ने उन्हें सब्जबाग दिखाए हैं और आईएसएस, आई-लीग आदि आयोजनों का हवाला देते हुए यह जतलाने का प्रयास किया है कि भारतीय फुटबॉल सही दिशा की ओर बढ़ रही है।
लेकिन अंडर 13, 15 और 17 के उभरते खिलाड़ियों की अकादमियां कितनी कारगर है, यह बताने की जरूरत नहीं है। सालों से अकादमियों के नाम जंगल राज चल रहा है। बड़ी उम्र के खिलाड़ी सही उम्र वालों को कुचल रहे हैं। नतीजा यह रहा है कि भारतीय फुटबॉल में अच्छे और स्तरीय खिलाड़ी उभर कर नहीं आ रहे हैं। जहां तक सीनियर राष्ट्रीय टीम की बात है तो उसका प्रदर्शन लगातार गिर रहा है। साल दर साल और दिन पर दिन की गिरावट के चलते बेहतर की उम्मीद छलावा लगती है। फेडरेशन सालों से सरकारों, खिलाड़ियों और अभिभावकों को झूठ परोस रही है। ऐसे में बेहतर यह होगा कि खेल मंत्री और मंत्रालय एआईएफएफ के झूठ को फूंक-फूंक कर परखे और तत्पश्चात भरोसा करें।