हॉकी आयोजनों का गिरता ग्राफ राष्ट्रीय खेल के लिए घातक

  • 1975 वर्ल्ड कप विजेता अशोक ध्यानचंद दिल्ली और देश में हॉकी आयोजनों के गिरते ग्राफ को चिंताजनक मानते हैं, जिनमे देश के छोटे-बड़े खिलाड़ी, संस्थान और अन्य टीमें भाग लेती थीं
  • ओलम्पियन अशोक कहते हैं कि उनके जमाने में स्कूल और कॉलेज स्तर के आयोजन अधिकाधिक होते थे और देश की कॉलेज टीम के श्रेष्ठ खिलाड़ियों में से राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी चुने जाते थे लेकिन आज यह परम्परा समाप्त हो गई है
  • कुछ साल पहले तक दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम और मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम में अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजन हुआ करते थे
  • नेहरू हॉकी, शास्त्री हॉकी, महाराजा रणजीत सिंह हॉकी, दिल्ली हॉकी लीग, संस्थानिक हॉकी टूर्नामेंट और अन्य आयोजन राष्ट्रीय हॉकी में खासे चर्चित थे

राजेंद्र सजवान

कुछ साल पहले तक दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम और मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम में अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजन हुआ करते थे, जिनमे देश के छोटे-बड़े खिलाड़ी, संस्थान और अन्य टीमें भाग लेती थीं। नेहरू हॉकी, शास्त्री हॉकी, महाराजा रणजीत सिंह हॉकी, दिल्ली हॉकी लीग, संस्थानिक हॉकी टूर्नामेंट और अन्य आयोजन राष्ट्रीय हॉकी में खासे चर्चित थे। लेकिन आज आलम यह है कि तमाम आयोजन कहीं गुम हो गए हैं या फिर महज खाना पूरी रह गए हैं। हॉकी टूर्नामेंट के नाम पर बस श्याम लाल इंटर कॉलेज हॉकी टूर्नामेंट बचा है, जिसमें राजधानी के टॉप हॉकी कॉलेज भाग लेते हैं।

   देश के नामी हॉकी खिलाड़ी रहे और 1975 वर्ल्ड कप विजेता अशोक ध्यानचंद दिल्ली और देश में हॉकी आयोजनों के गिरते ग्राफ को चिंताजनक मानते हैं। श्यामलाल कॉलेज में पद्मश्री श्यामलाल हॉकी टूर्नामेंट के उदघाटन अवसर पर अशोक ने एक साक्षात्कार में माना कि भारतीय हॉकी की वापसी की सम्भावना बढ़ी है लेकिन हॉकी टूर्नामेंट लगातार घट रहे हैं। ज्यादातर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों का एक-दो राज्यों तक सीमित किया जाना भी वे घातक मानते हैं। अशोक कहते हैं कि उनके जमाने में स्कूल और कॉलेज स्तर के आयोजन अधिकाधिक होते थे। देश की कॉलेज टीम के श्रेष्ठ खिलाड़ियों में से राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी चुने जाते थे। लेकिन आज यह परम्परा समाप्त हो गई है। यह सही है कि भारत ने बैक-टू-बैक दो ओलम्पिक कांस्य जीते हैं लेकिन देशभर में हॉकी सिमटती जा रही है। होना यह चाहिए कि सभी प्रदेशों में खेल के लिए माहौल बनाया जाए। ठीक वैसे ही जैसे कि दिल्ली में पद्मश्री श्यामलाल मेमोरियल हॉकी टूर्नामेंट आयोजित किया जा रहा है।

  • भारतीय खिलाड़ी पहले विज्ञापन में:-

इस अवसर पर अशोक ने एक बड़ा रहस्योदघाटन करते हुए कहा कि 1932 की ओलम्पिक गोल्ड विजेता भारतीय टीम ने चाय पत्ती विक्रेता बेन-हर (Ben-Hur) के विज्ञापन के लिए काम किया था, जिसे भारतीय खेलों का पहला अधिकृत विज्ञापन माना जाता है। विज्ञापन में ध्यानचंद के छोटे भाई रूप सिंह, मोहम्मद जफ्फर, गुरमीत और अन्य खिलाड़ी भी शामिल थे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *