बीमार फुटबॉल अब महामारी की चपेट में!

  • दास मुंशी के फेडरेशन अध्यक्ष बनने के बाद से गिरावट में तेजी आई और प्रफुल्ल पटेल के फेडरेशन अध्यक्ष बनने और हटने तक हमारी फुटबॉल की हवा फुस्स हो चुकी थी
  • अब कल्याण चौबे मृतवत फुटबॉल को ढो रहे हैं और उनको पता है कि भारतीय फुटबॉल की बीमारी लाइलाज है फिर भी पिछले अध्यक्ष की तरह झूठे ख्वाब परोस रहे हैं
  • भारत वर्ल्ड फीफा रैंकिंग के पहले सौ देशों में भी स्थान नहीं रखता और निरंतर पिछड़ रहा है
  • इस बारे में कुछ जाने-माने पूर्व खिलाड़ियों से बात हुई तो अधिकतर ने सारे फसाद कि जड़ फेडरेशन में व्याप्त भ्रष्टाचार को बताया

राजेंद्र सजवान

भारत फीफा वर्ल्ड कप में कब खेलेगा? यह सवाल सालों से जस का तस खड़ा है और भारतीय फुटबॉल प्रेमियों को मुंह चिढ़ा रहा है। लगभग साठ साल पहले जब यही सवाल पूछा जाता था तो भारतीय फुटबॉल के कर्णधार कहते थे कि इक्कीसवीं सदी शुरू होने से पहले भारतीय फुटबॉल पूरी तरह बदल जाएगी और एशिया की बड़ी ताकत बनने के साथ-साथ वर्ल्ड कप खेलने का सपना भी पूरा हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। नई सदी में भारत बीमार फुटबॉल राष्ट्र के रूप में प्रविष्ट हुआ और धीरे-धीरे बीमारी महामारी बन गई।

   दास मुंशी के फेडरेशन अध्यक्ष बनने के बाद से गिरावट में तेजी आई और प्रफुल्ल पटेल के फेडरेशन अध्यक्ष बनने और हटने तक हमारी फुटबॉल की हवा फुस्स हो चुकी थी। अब कल्याण चौबे मृतवत फुटबॉल को ढो रहे हैं। चौबे को पता है कि भारतीय फुटबॉल की बीमारी लाइलाज है फिर भी पिछले अध्यक्ष की तरह झूठे ख्वाब परोस रहे हैं। भारत विश्व के पहले सौ देशों में भी स्थान नहीं रखता और निरंतर पिछड़ रहा है। क्या कभी वापसी हो पाएगी? यदि नहीं तो क्यों? इस बारे में कुछ जाने-माने पूर्व खिलाड़ियों से बात हुई तो अधिकतर ने सारे फसाद कि जड़ फेडरेशन में व्याप्त भ्रष्टाचार को बताया और निराशाजनक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय फुटबॉल के सुधरने के मौके बहुत कम नज़र आते है।

   दिल्ली और देश कि फुटबॉल में बड़े हस्ताक्षर रहे वेटरन खिलाड़ी भीम सिंह भंडारी, हरेंद्र नेगी, अवतारी, कमल किशोर जदली, रविन्द्र रावत गुड्डू, माइकल राज, वीरेन्द मालकोटी, चन्दन रावत के अनुसार पिछले पचास सालों से भारतीय फुटबॉल उल्टी चाल चल रही है। एशिया, अफ्रीका और यूरोप के पिद्दी-पिद्दी देश छलांग लगाकर टॉप पर पहुंच गए हैं और भारतीय फुटबॉल लगभग दम तोड़ चुकी है। पूर्व चैंपियनों इन्दर सिंह, मगन सिंह, परमिन्दर सिंह और प्रसून बनर्जी को भी वापसी की कोई उम्मीद नजर नहीं आती।  खिलाड़ियों के बड़े वर्ग के अनुसार फुटबॉल आज के दौर में रोजी-रोटी कमाने, नौकरी पाने, सट्टेबाजी और फिक्सिंग के लिए कुख्यात हो गई है और आईएसएल, आई-लीग और अन्य आयोजन बस खानापूरी रह गए हैं।

   खुद पूर्व कोच कहते हैं कि कोचिंग के फर्ज़ीवाड़े ने पूरे सिस्टम को बिगाड़ कर रख दिया है। ऐसे अवसरवादी कोच बन रहे हैं जिन्होंने शायद ही कभी फुटबॉल खेली हो या जो कभी अच्छे खिलाड़ी नहीं रहे। एक और बड़ी बीमारी चयन की है। स्कूल, कॉलेज, प्रदेश और देश की टीमों में ऊंची पहुंच वालों का चयन भारतीय फुटबॉल का अभिशाप बन रहा है।

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