छेत्री अपनी कमाई पर पानी फेर रहा है!
- हॉन्ग कॉन्ग के हाथों हुई हार के बाद से एआईएफएफ अध्यक्ष, कोच, खिलाड़ियों और खासकर पूर्व कप्तान सुनील छेत्री को लेकर बहुत कुछ बुरा-भला कहा जा रहा है
- फुटबॉल प्रेमियों और पूर्व खिलाड़ियों का ऐसा आक्रोश शायद ही पहले कभी देखने सुनने को मिला होगा
- यह सही है कि एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे और कोच मैनेलो मार्कुएज से सवाल किए जाने चाहिए लेकिन सुनील छेत्री को कोसना कहां तक ठीक है
- राष्ट्रीय टीम के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद उसे टीम से बाहर करने की मांग जोरों पर है
- कोई कह रहा है कि वह टीम पर बोझ बन गया है तो कोई इल्जाम लगा रहा है कि वह उभरते खिलाड़ियों के लिए बाधा है और कुछ एक की राय में वह अपनी कमाई पर पानी फेर रहा है
- सुनील छेत्री को बुरा भला कहना शायद न्याय संगत नहीं है क्योंकि उसने भारतीय फुटबॉल के लिए बड़ा योगदान दिया है
- सुनील छेत्री के उत्थान को राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे इस पत्रकार ने करीब से देखा परखा है
राजेंद्र सजवान
हॉन्ग कॉन्ग के हाथों हुई हार के बाद से भारतीय फुटबॉल प्रेमियों का गुस्सा सातवें स्थान पर पहुंच गया है। ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ), फेडरेशन अध्यक्ष, कोच, खिलाड़ियों और खासकर पूर्व कप्तान सुनील छेत्री को लेकर बहुत कुछ बुरा-भला कहा जा रहा है। फुटबॉल प्रेमियों और पूर्व खिलाड़ियों का ऐसा आक्रोश शायद ही पहले कभी देखने सुनने को मिला होगा। यह सही है कि फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे और कोच मैनेलो मार्कुएज से सवाल किए जाने चाहिए लेकिन सुनील छेत्री को कोसना कहां तक ठीक है?
संयोग से यह पत्रकार छेत्री को बहुत करीब से जानता पहचानता है। आर्मी पब्लिक स्कूल धौलाकुआं से निकलकर यह स्टार खिलाड़ी सुब्रतो फुटबाल विजेता दिल्ली के ममता मॉडर्न स्कूल में पहुंचा और तत्पश्चात भारतीय स्कूल टीम के लिए खेला और ऊंचाइयां लांधता चला गया। स्कूल स्तर में सुनील को तब बड़ी पहचान मिली जब वह आर्मी स्कूल के लिए दिल्ली के नामी कोच रमेश चंद्र देवरानी के मेमोरियल टूर्नामेंट में खेलने उतरा। देवरानी टूर्नामेंट का प्रमुख आयोजक होने का सौभाग्य इस पत्रकार को प्राप्त था, जिसके आयोजक सचिव मोती बाग स्कूल के नामी कोच पीएस पुरी थे। छेत्री के बारे यह सब इसलिए बताया जा रहा है क्योंकि उसके उत्थान को राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे इस पत्रकार ने करीब से देखा परखा है।
बेशक़, भारतीय फुटबॉल की बदहाली से देश के फुटबॉल प्रेमी दुखी हैं। मीडिया, सोशल मीडिया और पूर्व खिलाड़ी नाराज हैं और फेडरेशन, टीम, कोच और चयनकर्ताओं को धक्के मार कर बाहर करने की मांग की जा रही है। लेकिन सुनील छेत्री को बुरा भला कहना शायद न्याय संगत नहीं है। इसलिए क्योंकि उसने भारतीय फुटबाल के लिए बड़ा योगदान दिया है। कुछ महीने पहले तक उसे गोल मशीन कहा जाता रहा लेकिन अब उसे टीम से बाहर करने की मांग की जाने लगी है। ऐसा खिलाड़ी जिसका नाम मेस्सी और रोनाल्डो के साथ जोड़ा जाने लगा था उसे अब बुरा भला कहा जा रहा है। राष्ट्रीय टीम के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद उसे टीम से बाहर करने की मांग जोरों पर है। कोई कह रहा है कि वह टीम पर बोझ बन गया है तो कोई इल्जाम लगा रहा है कि वह उभरते खिलाड़ियों के लिए बाधा है। कुछ एक की राय में वह अपनी कमाई पर पानी फेर रहा है।
फुटबॉल जानकारों और विशेषज्ञों की माने तो भारतीय फुटबॉल की मौत हो चुकी है। आज भारत ऐसी टीम बनकर रह गई है जो किसी से भी पिट सकती है। एक भी खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के लायक नहीं बचा है। यही कारण है कि छेत्री को बुरा-भला कहा जाने लगा है। ऐसे में यही सही होगा कि वह तुरत-फुरत में टीम से हट जाए और अपनी रही-सही साख बचा ले। वरना उसका नाम भी भारतीय फुटबॉल को बर्बाद करने वालों में जुड़ सकता है और शायद उसे भी खलनायक के रूप में याद किया जाएगा।