August 26, 2025

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फुटबॉल का फेल बजट

  • फुटबॉल से जुड़े पूर्व खिलाड़ियों, क्लब अधिकारियों, कोचों, खिलाड़ियों, सोशल मीडिया में सक्रिय मित्रों से बात की तो पाया कि सभी एआईएफएफ को दोषी मान रहे हैं, जो कि फुटबॉल के उत्थान के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है
  • फुटबॉल को बढ़ावा देने वाले पूर्व खिलाड़ी और कोच नरेन थापा छेत्री की राय में जो अध्यक्ष (कल्याण चौबे) खेल के बजट का सदुपयोग नहीं कर सकता है उसे तुरंत पद से हट जाना चाहिए
  • उनकी राय में बजट को फुटबॉल डेवलपमेंट पर खर्च किया जा सकता है क्योंकि छोटी उम्र के खिलाड़ियों को सिखाने-पढ़ाने और खेल मैदानों के रख-रखाव की बेहद जरूरत है

राजेंद्र सजवान

अक्सर देखा गया है कि कुछ राष्ट्रीय खेल फेडरेशन सरकारी ग्रांट नहीं मिलने के कारण सरकार पर आरोप-प्रत्यारो लगाते हैं लेकिन वर्ष 2024-25 में विभिन्न फेडरेशनों ने उन्हें अलॉट किए गए फंड का बहुत कम हिस्सा खर्च किया, जिनमें ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) भी शामिल है। हालांकि मुक्केबाजी, रोइंग, तीरंदाजी, योगासन, शतरंज, एथलेटिक्स, हॉकी, बैडमिंटन आदि खेलों को नियंत्रित करने वाली फेडरेशन भी आधा-अधूरा या बहुत कम खर्च करने वालों में शामिल हैं लेकिन फुटबॉल को लेकर मीडिया और तमाम खेल हलकों में हंगामा मचा है। कोई फेडरेशन को कोस रहा है तो कुछ एक खेल मंत्रालय पर भी उंगली उठा रहे हैं और फेडरेशन अधिकारियों पर कड़ी कारवाई की मांग कर रहे हैं।

   इस पत्रकार ने जब फुटबॉल से जुड़े पूर्व खिलाड़ियों, क्लब अधिकारियों, कोचों, खिलाड़ियों, सोशल मीडिया में सक्रिय मित्रों से बात की तो पाया कि सभी एआईएफएफ को दोषी मान रहे हैं, जो कि फुटबॉल के उत्थान के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है। अधिकतर ने फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे को खेल में गिरावट को दोषी माना है। फुटबॉल को बढ़ावा देने वाले पूर्व खिलाड़ी और कोच नरेन थापा छेत्री की राय में जो अध्यक्ष खेल के बजट का सदुपयोग नहीं कर सकता है उसे तुरंत पद से हट जाना चाहिए। पत्रकार माही कौशिक ने कटाक्ष किया, “जो फेडरेशन सरकारी बजट का आधा भी खर्च नहीं कर सकती है उसे अपने खिलाड़ियों से आधे प्रदर्शन की उम्मीद ही करनी चाहिए और यही हो रहा है।”

  ‘फेसबुक फ्रेंड्स’ मोंटी शर्मा, पिंटू पाल, राकेश कोचर, भास्कर बिष्ट, रविंद्र वाजपेई, हेम चंद, पूर्व खिलाड़ी सुभाशीष दत्ता, संतोष राठी, राजेश वर्मा, बॉबी अरोड़ा आदि को फेडरेशन की उदासीनता पर हैरानी है। जाने-माने डीपीआई और खेल समीक्षक मुकेश कोहली, महावीर रावत, राजिंदर गुप्ता, नामी कोच नवीन कंडवाल, फुटबॉल प्रशासक राजीव गुप्ता में से ज्यादातर को एआईएफएफ भ्रष्ट संस्था नजर आती है। उनकी राय में बजट को फुटबॉल डेवलपमेंट पर खर्च किया जा सकता है। खासकर छोटी उम्र के खिलाड़ियों को सिखाने-पढ़ाने और खेल मैदानों के रख-रखाव के लिए, जिसकी बेहद जरूरत है।     पूर्व खिलाड़ियों, कोचों और फुटबॉल प्रशासकों की राय में कल्याण चौबे को बेहतर सलाहकारों की जरूरत है। बेहतर होगा कि अपने इर्द-गिर्द बैठे चाटुकारों से छुटकारा पाए और खेल के प्रचार-प्रसार के लिए काम करें, जिसके लिए उपलब्ध बजट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं किया तो भविष्य में सरकारी खजाने से कुछ भी नहीं मिल पाएगा।

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