क्रिकेट खेलेंगे: बंदूक दिखाओ, चाहे राफेल गिराओ
राजेंद्र सजवान
‘खेल और राजनीति एक साथ नहीं चल सकते,’ सालों पहले इस प्रकार की हास्यपद और बे सिर-पैर की बाते सुना करते थे लेकिन जब से क्रिकेट नाम का खेल भारतीय जनमानस के सिर चढ़कर बोलने लगा है तब से खेल बिना राजनीति के खेलना दूभर हो गया है। भले ही बाकी खेलों में गंदी राजनीति का दखल कुछ कम हो लेकिन भारत और पाकिस्तान के बिगड़ते रिश्तों के बाद क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ राजनीति बन कर रह गया है और कमजोर कूटनीति के चलते शायद भारत हलका पड़ गया है।
हालांकि भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड जैसी है। लेकिन फर्क इतना है कि ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड ने अपनी प्रतिद्वंद्विता को मैदान से बाहर कम ही निकलने दिया। लेकिन भारत-पाक तो जैसे हर क्षेत्र में एक-दूसरे को नीचा दिखाने और लड़ने-भिड़ने के लिए बने हैं। पिछले कुछ सालों में सीमा विवाद के साथ-साथ क्रिकेट विवादों की भी जैसे बाढ़ आ गई है। पहले एक-दूसरे के अंपायरों को कोसते थे तो अब आलम यह है कि क्रिकेट खेलते हैं पर खेल भावना को एक तरफ रखकर। जैसा कि एशिया कप में देखने को मिला। खिलाड़ियों ने हाथ नहीं मिलाए। एक-दूसरे से बात नहीं की लेकिन कुछ भारतीय क्रिकेट से जुड़े लोग पाकिस्तानी क्रिकेटरों से बतियाते और हंसी-ठिठोली करते दिखे गए, जिनमें सरकार के कुछ गणमान्य नेता और क्रिकेट की गंदी राजनीति करने के लिए कुख्यात लोग भी शामिल थे। लेकिन हद तब हो गई जब पाकिस्तानी खिलाड़ी शाहबजादा फरहान ने बल्ले को एके-47 की तरह तान दिया। यह कृत्य पहलगाम में मारे गए 26 भारतीय मासूमों के प्रति घृणित कृत्य था तो एक अन्य पाकिस्तानी ने राफेल को कैसे गिराया बकायदा एक्शन से बताया और भारतीय क्रिकेट प्रेमियों, बीसीसीआई के अधिकारियों और भारत सरकार को चिढ़ाया।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट और खेल संबंधों को लेकर सरकार ने हमेशा लचर रवैया अपनाया है, ऐसा देश के कुछ पूर्व खिलाड़ियों का मानना है। हाल के प्रकरण बताते हैं कि भले ही पाकिस्तान मैदान में कमजोर है लेकिन अपने नेताओं की तरह उसके खिलाड़ी भी नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूक रहे। दूसरी तरफ हम अपना बड़प्पन दिखाने और क्रिकेट खेलने के लिए देशवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान के साथ खेलने या नहीं खेलने के लिए हमारा देश एक राय नहीं है।