क्रिकेट बिजनेस है, तो बाकी खेल?
राजेंद्र सजवान
“क्रिकेट में अब खेल जैसा कुछ नहीं है। यह खेल अब बिजनेस बन गया है,” हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी जहां एक तरफ क्रिकेट के आदम कद और उसकी लोकप्रियता को दर्शाती है तो साथ ही यह भी साफ हो गया है कि अब बाकी खेलों की क्रिकेट के सामने कोई हैसियत नहीं रह गई है। हालांकि पिछले पांच दशकों से क्रिकेट की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ रहा है लेकिन आज क्रिकेट वहां पहुंच गई है जहां से तमाम खेल बेहद बौने नजर आते हैं। ऐसा क्यों हुआ है? जवाब खोजने के लिए ज्यादा दूर की जरूरत नहीं है।
हाल ही में संपन्न हुए एशिया कप में भारत-पाक मैचों को लेकर जिस प्रकार का माहौल बना उसे देखते हुए यह तो साफ हो गया है कि दोनों देशों के बीच हॉकी को लेकर जैसी प्रतिस्पर्धा देखी जाती थी, क्रिकेट ने उसके भी रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं। कारण, रुपये-डालरों से क्रिकेट की कामयाबी को आंका जाने लगा है। पागलपन की तमाम हदें पार हो गई है और क्रिकेट की दीवानगी लगातार बढ़ रही है। यही कारण है कि क्रिकेट का पलड़ा देश के तमाम खेलों के मुकाबले बहुत भारी हो गया है। इसलिए क्योंकि देश के तमाम धनाढय, बैंक, बीमा कंपनियां और अग्रणी उद्योग सिर्फ और सिर्फ क्रिकेटरों पर पैसा लगा रहे हैं, लुटा रहे हैं और बाकी खेलों के हिस्से जूठन भी नहीं आती।
हालांकि माननीय कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अब खेलों पर टिप्पणी करने का समय पीछे छूट गया है क्योंकि खेल अब बिजनेस बन गए हैं। लेकिन क्रिकेट इस दौड़ में बहुत आगे निकल गया है जिसकी शुरुआत संभवत: 1983 में विश्व कप जीत के साथ हुई थी। आज आलम यह है कि कपिल और गावस्कर जैसे चैंपियनों ने जितना धन अपने पूरे जीवन में नहीं कमाया, उतना आज के क्रिकेटर स्थानीय लीग, आईपीएल और अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में प्रति वर्ष कमा रहे हैं।
बेशक़, क्रिकेट का धनाढय रुतबा अन्य खेलों को चुभता है जिसके लिए बाकी खेल खुद जिम्मेदारी हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार, नेताओं और मंत्रियों के बेटे बेटियां आईपीएल, स्थानीय इकाइयों, बीसीसीआई और आईसीसी के उच्च पदों को तलाश रहे हैं और कुछ एक शीर्ष पर बैठे हैं। इसलिए क्योंकि क्रिकेट हर हाल में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है। दूसरी तरफ, बाकी खेल अपनी ओछी हरकतों, अपनों से लूट और खेल से खिलवाड़ के कारण गर्त में जा रहे हैं। यही कारण है कि देश की की सर्वोच्च अदालत ने क्रिकेट को बिजनेस कहा है। यही कारण है कि इस बिजनेस में हर अभिभावक जुड़ना चाहता है। हर मां-बाप अपने बच्चे को क्रिकेटर बनाना चाहता है। तो फिर बाकी खेलों का क्या होगा?