हॉकी: पचास साल यूं ही बर्बाद किए!
- आठ ओलम्पिक गोल्ड और एक विश्व कप जीत दर्ज करने वाले पुरुष खिलाड़ियों को अपनी उपलब्धियों पर गर्व हो सकता है
- महिला खिलाड़ी फिलहाल कोई ओलम्पिक या विश्व कप नहीं जीत पाई है और उन्हें अभी किसी बड़ी जीत का इन्तजार है
राजेंद्र सजवान
भारतीय हॉकी ने अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर लिए हैं। हॉकी फेडरेशन से हॉकी इंडिया का चोला धारण करने वाली भारतीय हॉकी की शीर्ष इकाई भले ही अपनी उपलब्धियों पर गर्व करे, अपनी पीठ थपथपाये लेकिन आजादी से पहले और बाद के कुछ सालों तक हॉकी जगत को हैरान करने वाला भारतीय प्रदर्शन अब कहीं नज़र नहीं आता। आठ ओलम्पिक गोल्ड और एक विश्व कप जीत दर्ज करने वाले पुरुष खिलाड़ियों को अपनी उपलब्धियों पर गर्व हो सकता है लेकिन महिला खिलाड़ी फिलहाल कोई ओलम्पिक या विश्व कप नहीं जीत पाई है। उन्हें अभी किसी बड़ी जीत का इन्तजार है।

जहां तक उपलब्धियों की बात है तो पुरुषों की तुलना में महिला खिलाड़ियों के हाथ फिलहाल 1982 का एशियाड गोल्ड और 2002 में कॉमनवेल्थ खेलों का गोल्ड ही आया है। ओलम्पिक और वर्ल्ड कप में महिला टीम विफल साबित हुई है। पुरुषों में मेजर ध्यानचंद, रूप सिंह, बलबीर सीनियर, हरबिंदर सिंह, अजित पाल, अशोक कुमार और दर्जनों अन्य महान खिलाडियों ने भारतीय हॉकी को गौरवान्वित किया लेकिन महिला हॉकी में राजबीर कौर राय, सीता गोसाईं मेहता, प्रीतम ठाकरान जैसी प्रतिभावान खिलाड़ी बहुत कम हुई हैं। यही कारण है कि हमारी महिला टीम ओलम्पिक और वर्ल्ड कप में बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर पाई है। वर्ल्ड रैंकिंग में भारतीय पुरुष हॉकी सातवें स्थान पर है तो महिलाएं शीर्ष आठ से बाहर हैं।

अर्थात पुरुष हॉकी शिखर चूमने के बाद लड़खड़ाते हुए फिर से खड़े होने का प्रयास कर रही है तो महिलाएं सही ढंग से चलना सीख रही हैं। खासकर पिछले पचास सालों से किसी बड़ी उपलब्धि का इन्तजार है। ऐसे में सौ सालों की उपलब्धि का बखान करते हुए यह भी ध्यान रखना होगा कि पिछले पचास साल फिर से सम्भलने में खर्च हुए हैं।
