क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
What makes Shimla Youngs all time great?
अक्सर जब दिल्ली के प्रमुख फुटबाल क्लबों की बात चलती है तो गढ़वाल हीरोज, सिटी, यंगस्टर,नेशनल, मुगल्स, यंगमैन, एंडी हीरोज का नाम लिया जाता है।
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि देश की राजधानी का श्रेष्ठ क्लब शिमला यंग्स था, जिसने लगभग तीस साल तक दिल्ली की फुटबाल पर ना सिर्फ़ राज किया अपितु देशभर के टाप क्लबों से लोहा लेकर दिल्ली की फुटबाल को गौरवान्वित भी किया।
1974 के डूरंड कप के उस सेमी फाइनल को शायद ही कोई फुटबाल प्रेमी भूल पाया होगा, जिसमें स्थानीय क्लब शिमला यंग्स ने कोलकाता के दिग्गज ईस्ट बंगाल को पहले दिन बराबरी पर रोक कर देश भर के समाचार पत्रों में सुर्खियाँ बटोरी थीं।
भले ही अगले दिन फिर से खेले गए मुक़ाबले में शिमला यंग्स को बड़ी हार झेलनी पड़ी लेकिन किसी भी स्थानीय टीम का यह आज तक का सबसे सराहनीय प्रदर्शन है।
कई बार दिल्ली लीग खिताब जीतने वाले क्लब ने 1972 और 74 में डूरंड कप के सेमी फाइनल तक का सफ़र तय किया । 1974-75 में मोहम्मडन स्पोर्टिंग को हरा कर बोकारो स्टील कप जीतना शानदार रहा। यह उपलब्धि आज तक कोई भी स्थानीय क्लब अर्जित नहीं कर पाया है।
देश के पेशेवर कलबों को फुटबाल का पाठ पढ़ाने वाला यह क्लब इस कदर गैर पेशेवर था कि कोई स्पांसर नहीं होने के बावजूद हर खिलाड़ी का पहला सपना शिमला यंग्स के लिए खेलना होता था, जोकि दिल्ली टीम के लिए खेलने से भी मुश्किल होता था।
शिमला यंग्स पर आगे लिखने से पहले यह बता दें कि यह क्लब अन्य क्लबों से कुछ हट कर रहा, क्योंकि इस क्लब का पहरेदार बहादुर सिंह चौहान नामका एक अनुशासित, गुस्सैल और दूरदर्शी सिपाही था, जिसने कभी भी किसी खिलाड़ी का ना तो पक्ष लिया और ना ही किसी असामाजिक तत्व को क्लब के आस पास फटकने दिया।
नेहरू पार्क के एकदम सामने स्थित केंद्रीय सचिवालय मैदान शिमला यंग्स का घरू मैदान कैसे बना यह भी चौहान ही जानते थे। उनका रुतबा इतना उँचा था कि रेफ़री देवी सिंह बिष्ट, टीम के रक्षा पंक्ति के खिलाड़ी आरके पुरी और कुछ एक अन्य सीनियर खिलाड़ियों के अलावा कोई कुछ भी नहीं जानता था।
ऐसा इसलिए क्योंकि चौहान साहब से आँख मिलाने और सवाल जवाब की हिम्मत किसी में नहीं थी। शायद इसी अनुशासन ने शिमला यंग्स को दिल्ली का सर्वश्रेष्ठ और देश का दिग्गज क्लब बनाया।
चौहान खुद अच्छे खिलाड़ी, एनआईएस कोच और अंतरराष्ट्रीय रेफ़री थे। उन्होंने फुटबाल को चरित्र निर्माण का माध्यम बनाया।
तब क्लब कीतरफ से किसी प्रकार की सहायता नहीं दी जाती थी लेकिन शिमला यंग्स की जर्सी पहनना किस कदर सुखद था, यह वही जानते हैं जिन्होने बहादुर सिंह चौहान के जमाने में शिमला यंग्स को सेवाएँ दी हैं।
1960 के आस पास शुरू हुआ सफ़र नब्बे के दशक में धीमा पड़ा और अब तो शिमला यंग्स की बस यादें ही बची हैं। कुछ गैर जिम्मेदार लोगों ने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते क्लब की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया है।
चौहान साहब के बहुत करीबी और विश्वसनीय रहे आरके पुरी और कमल किशोर जदली से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि स्वर्गीय चौहान ने कभी भी दिल्ली की फुटबाल के श्रेष्ठ पद की आकांक्षा नहीं रखी।
हालाँकि किंग मेकर वही रहे, इसलिए क्योंकि उनमें दम था। उन्हें सिर्फ़ अपने क्लब से मतलब था। जो टीम ईस्ट बंगाल, मोहन बागान, डेम्पो, ओरके मिल्स, सालगांवकर, पंजाब पुलिस, सीमा सुरक्षा बल, पंजाब बिजली बोर्ड और तमाम टीमों के पसीने छुड़ा देती हो उसके हंटर मास्टर को भला दिल्ली की फुटबाल की गंदी राजनीति से क्या लेना देना।
शिमला यंग्स का कद इतना बड़ा था कि जब कभी भारतीय राष्ट्रीय फुटबाल टीम का कैंप दिल्ली में लगता था, उसके तैयारी मैच शिमला यंग्स के विरुद्ध खेले जाते थे।
डूरंड और डीसीएम खेलने वाले चैम्पियन क्लब भी सचिवालय मैदान पर शिमला यंग्स से खेलने को प्राथमिकता देते थे। कारण, उन्हें टक्कर देने वाला एक ही क्लब था। कई बार तो शिमला यंग्ज़ ने राष्ट्रीय टीम को भी हैरान किया।
क्लब के दर्जनों खिलाड़ियों को देश के बड़े क्लबों ने अनुबंधित किया, तो सैकड़ों ने दिल्ली की टीम को सेवाएँ दीं, जिनमें देवी सिंह बिष्ट, एसएल शाह, हरि सिंह, चंदर दर्शन सिंह रावत, अरूणेश शर्मा, अशोक धीर, सुरेंद्र कुमार, मातबीर सिंह बिष्ट, सतीश रावत, हक़ीकत सिंह, दलीप सिंह, बचन सिंह नेगी, रईस, दलीप, नरेन्द्र कालिया , राकेश पुरी, अशोक बरुआ, गुमान सिंह रावत, भीम सिंह भंडारी, विलियम, परमजीत सिंह, बीएस छेत्री, माइकल जेम्स, मुन्नी लाल, जी बर्नाड, आर मेसी, जीवा नंद, अरविंद बनर्जी, चमन भंडारी, अवतार सिंह रावत,कमल किशोर,दिलीप घोष, अरुण और तरुण राय बंधु, बीर बहादुर, अमर चन्द, जनक बहादुर, हरेन्द्र नेगी, दलीप कुमार,दलजीत रावत, रवीन्द्र रावत गुड्डू, सेमसन मेसी, राजन, माइकल राज, दलजीत, पीटर, सेबेस्टियन, सुब्रमण्यम, आदि खिलाड़ियों ने क्लब को सेवाएँ दीं और नाम कमाने के बाद अन्य क्लबों के लिए भी खेले।
शिमला यंग्स के बारे में विस्तृत जानकारी देने और दुर्लभ चित्र उपलब्ध कराने के लिए श्री राकेश पुरी, कमल किशोर और भीम भंडारी जी का धन्यवाद।