क्रिकेट का कल सुधरा; बाकी खेल गर्त में !

राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड

कुछ दिन पहले तक भारतीय क्रिकेट असमंजस में थी। दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध करारी हार के बाद लगने लगा था कि शायद अब टीम इंडिया के अच्छे दिन लद गए हैं। कप्तान बदला लेकिन टीम के प्रदर्शन को लेकर चिंता जस की तस बनी हुई थी कि उभरते खिलाडियों ने विश्व कप जीत कर भारतीय क्रिकेट बोर्ड, टीम प्रबंधन और क्रिकेट प्रेमियों को बेफिक्र रहने का सन्देश दे दिया है।

जो खिलाडी अब तक भारतीय टीम की यश कीर्ति को बढ़ाते आ रहे थे उन्होंने जूनियर स्तर के शानदार प्रदर्शन के बाद नाम कमाया था। यश और उनकी कप्तानी में विश्व कप जीतने वाले खिलाडियों के लिए भी अब सीनियर टीम के दरवाजे खुल चुके हैं। हो सकता है कुछ जूनियर सीनियरों कि जगह खा जाएं।

ज़ाहिर है विराट कोहली के हाथों रोहित शर्मा तक पहुंची टीम के खिलाडियों के हौंसले डगमगा रहे होंगे। लेकिन यही भरतीय क्रिकेट की खूबसूरती रही है।

भले ही भारतीय क्रिकेट में कई खिलाडी सालों साल जमे रहते हैं लेकिन अब पर्तिस्पर्धा बढ़ी है तो किसी भी खिलाडी का स्थान पूरी तरह सुरक्षित नहीं माना जा सकता। दूसरी तरफ बाकी भारतीय खेलों में ऐसा कम ही देखने को मिला है।

यह बात अलग है की कोई पहलवान, मुक्केबाज, एथलीट, बैडमिंटन या टेनिस खिलाडी अपने प्रदर्शन के दम पर देश के लिए खेलता रहे लेकिन टीम खेलों में ऐसा कम ही देखने को मिला है।

भारतीय हॉकी और फुटबाल टीमों के उदाहरण सामने हैं| क्रिकेट के पास स्टार खिलाडी विराट कोहली और रोहित शर्मा के विकल्प तैयार खड़े हैं लेकिन भारतीय फुटबाल टीम को यह गम खाए जा रहा है कि सुनील क्षेत्री के बाद कौन? ठीक वैसे ही जैसे भारतीय हॉकी टीम को आज तक ध्यान चंद, केडी बाबू, बलबीर सिंह, अजित पाल, अशोक ध्यान चंद, मोहमद शाहिद जैसे चैम्पियन नहीं मिल पाए।

बास्केट बाल, हैण्ड बाल, वॉली बाल और तमाम टीम खेलों में भारत के पास गर्व करने लायक कुछ भी नहीं है। जानते हैं क्यों? इसलिए क्योंकि इन खेलों कि दूकान अवसरवादी और ज्यादातर भ्र्ष्ट लोगों के हाथों में है।

भारतीय फुटबाल तो कब की पंचर पड़ी है और बाकी खेलों का हाल भी बेहद खराब है। सिर्फ हॉकी में ही कभी कभार जूनियर खिलाडी करिश्मा कर जाते हैं लेकिन सीनियर वर्ग में पहुँचते ही उन्हें पता नहीं क्या हो जाता है।

देश के पूर्व ओलम्पियन और वर्ल्ड चैम्पियन कहते हैं कि देश भर में एज फ्राड कि बीमारी दीमक का काम कर रही है। लेकिन ऐसा क्रिकेट में कहीं ज्यादा हो रहा है। यह जरुरी नहीं कि जो युवा वर्ल्ड चैम्पियन बने हैं, सभी निर्धारित आयु सीमा के हों।

क्रिकेट की एक और बड़ी खूबसूरती यह भी है कि उसने वक्त के साथ चलना सीख लिया है। प्रतिभा के लिए उसने आईपीएल नाम का प्लेटफार्म तैयार कर अपने उभरते खिलाडी को सुरक्षा और अभयदान दिया है। लेकिन अन्य भारतीय खेलों का हाल यह है कि उनकी लीग गलत दिशा में चल रही हैं। उनके पास क्रिकेट जैस दिमाग नहीं और ना ही उनके काम में ईमानदारी नज़र आती है। यही कारण है कि सभी खेल बर्बादी कि तरफ बढ़ रहे हैं।

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