क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
भारतीय खेलों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि सरकार द्वारा करोड़ों खर्च किए जाने के बावजूद भी हमारे खिलाड़ी अपेक्षित सफलता अर्जित नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि देश में खिलाड़ियों के शिक्षण प्रशिक्षण के लिए कारगर व्यवस्था चलन में नहीं है। लेकिन अपने खिलाड़ियों की सबसे बड़ी चिंता जिम कल्चर के फैलाव को माना जा रहा है। एक सर्वे से पता चला है कि शरीर बनाने के चक्कर में युवा और खिलाड़ी कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे जिमों और हेल्थ क्लबों की शरण ले रहे हैं और अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। हैरानी तब होती है जब कुश्ती, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि खेलों से जुड़े खिलाड़ी भी जिम मालिकों और ट्रेनरों के जाल में फंस रहे हैं।
आम तौर पर लगभग सभी खेलों के बड़े छोटे खिलाड़ी जिम जाते हैं लेकिन जब उन्हें जिम मालिक शरीर बनाने और रातों-रात मांस पेशियां विकसित करने का लुभावना झाँसा देते हैं तो यहीं से किसी युवा और खिलाड़ी की बर्बादी की कहानी शुरू हो जाती है। हालात तब बद से बदतर हो जाते हैं जब युवाओं को बॉडी-बिल्डिंग और पॉवर लिफ्टिंग में चैंपियन बनाने के सब्ज बाग दिखाए जाते हैं। उन्हें मनोहर आइच और प्रेम चंद डेगरा जैसे मिस्टर यूनिवर्स बनाने और नाम-सम्मान पाने के सपने दिखाए जाते हैं।
देखने में आया है कि बॉडी-बिल्डिंग और पॉवर लिफ्टिंग से जुड़े युवाओं के साथ-साथ अन्य खिलाड़ी भी गलत राह पकड़ लेते हैं और फ़ूड सप्लीमेंट्स के नाम पर ज़हर का सेवन करते हैं। या तो वे डोप टेस्ट में धर दबोचे जाते हैं या गंभीर बीमारी की चपेट में आकर जान तक गंवाते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष हजारों युवा प्रतिबंधित और जहरीले सप्लिमेंट खाकर विकलांग हो रहे हैं, उनका शारीरिक संतुलन गड़बड़ा रहा है या जान गंवा रहे हैं।
मौत के बाजार में डब्बे बंद सप्लिमेंट धड़ले के साथ बिक रहे हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार, यह उद्योग खूब फल-फूल रहा है। कहीं कोई रोक-टोक नहीं। चूंकि बड़े औद्योगिक घराने और कम्पनियाँ मौत की खुराक बेच रहे हैं इसलिए डर काहे का! उन पर कोई आसानी से हाथ नहीं डाल सकता। यह हाल तब है जबकि भारतीय बॉडी बिल्डिंग और पॉवर लिफ्टिंग फेडरेशन को खेल मंत्रालय की मान्यता प्राप्त नहीं है। बॉडी बिल्डिंग में राष्ट्रीय स्तर पर तीन चार फेडरेशन अपना झंडा लिए खड़ी हैं। हर कोई खुद को असल बताता है। पॉवरलिफ्टिंग की हालत तो और भी खराब है। देश भर में हजारों बॉडी बिल्डर और पॉवर लिफ्टर नशे की चपेट में हैं। जब मन किया विदेश दौरे कर रहे हैं और खुद को विश्व और कॉमनवेल्थ चैंपियन बताते हैं। यहां तक पता चला है कि कुछ शातिर मेडल ट्रॉफी साथ ले जाते हैं और स्वदेश वापसी पर बिकाऊ मीडिया में खबरें छपवा कर वाह-वाह लूटते हैं।
जिन खेलों को ओलंम्पिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ में मान्यता नहीं और जिन्हें खेल मंत्रालय अमान्य करार दे चुका है, उनको लूट का जानलेवा लाइसेन्स कौन दे रहा है?
हैरानी वाली बात यह है कि जिम से जुड़ी महिलाएं भी इस खेल में बराबर की भागीदार बनी हैं और अपनी और अपनी भावी पीढ़ी की जान जोखिम में डाल रही हैं।