….क्या शिवाजी स्टेडियम पर फिर लौट पाएगी हॉकी की रौनक?

  • हैरानी वाली बात है कि जिस मैदान की घास और कृत्रिम टर्फ पर खेल कर सैकड़ों खिलाड़ी स्टार बने उसकी कोई सुध क्यों नहीं लेता?
  • क्यों देश की हॉकी की शान कहा जाने वाला नेहरू हॉकी टूर्नामेंट अंतिम सांसें ले रहा है?
  • जिसने बीसवीं सदी के आखिरी चार दशकों में शिवाजी स्टेडियम पर हॉकी के नजारे देखे हैं उसे तो एनडीएमसी के इस स्टेडियम का सूनापन जरा भी नहीं भाता होगा
  • नेहरू हॉकी, शास्त्री हॉकी टूर्नामेंट सोसायटी और अन्य आयोजक शिवाजी स्टेडियम को फिर से आबाद कर सकते हैं
  • शिवाजी स्टेडियम पर हॉकी की पहले जैसी रौनक लाने में एनडीएमसी, हॉकी इंडिया और हॉकी दिल्ली बड़ी और सकारात्मक भूमिका निभाएं और दिल्ली सरकार सहयोग करे तो हॉकी के गौरवशाली दिन फिर लौट सकते हैं

राजेंद्र सजवान

जिस शिवाजी स्टेडियम में कभी हॉकी के मेले लगते थे, जिसे भारतीय हॉकी की शरणगाह कहा जाता था वह पिछले कई सालों से वीरान पड़ा है। जिस स्टेडियम में देश के तमाम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कभी न कभी हॉकी को गौरवान्वित करने और खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने आते थे, उसे जैसे भारतीय हॉकी की अवैध संतान की तरह दुत्कार दिया गया है। हैरानी वाली बात है कि जिस मैदान की घास और कृत्रिम टर्फ पर खेल कर सैकड़ों खिलाड़ी स्टार बने उसकी कोई सुध क्यों नहीं लेता? क्यों देश की हॉकी की शान कहा जाने वाला नेहरू हॉकी टूर्नामेंट अंतिम सांसें ले रहा है?

 

  भले ही हॉकी बदल रही है और इस बदलाव का असर खिलाड़ियों और खेल मैदानों पर भी पड़ा है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जो शिवाजी स्टेडियम देश के सैकड़ों हजारों खिलाड़ियों के दिल दिमाग में रचा बसा है उसे यूं ही भुला दिया जाए। जिस किसी ने बीसवीं सदी के आखिरी चार दशकों में दिल्ली का दिल कहे जाने वाले शिवाजी स्टेडियम पर हॉकी के नजारे देखे हैं उसे तो नई दिल्ली नगर पालिका के इस स्टेडियम का सूनापन जरा भी नहीं भाता होगा। कारण कई हैं लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय हॉकी के पतन के चलते उसके महान खिलाड़ियों, आयोजकों, हॉकी प्रेमियों और हॉकी से जुड़े समर्पितों को  भुला दिया गया है।

 

  यह सही है कि देश के कुछ अन्य राज्यों, बड़े छोटे शहरों में आधुनिक हॉकी को विकसित किया जा रहा है। कुछ सरकारें और उद्योगपति हॉकी पर लाखों करोड़ों खर्च कर रहे हैं लेकिन दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से सटे शिवाजी स्टेडियम में भारतीय हॉकी की आत्मा बसती है। स्वर्गीय दद्दा ध्यान चंद, स्व बलबीर सिंह, चरणजीत सिंह, पृथीपाल, केडी बाबू, शंकर लक्ष्मण, अजीत पाल, अशोक ध्यानचंद, जफर इकबाल, असलम शेर खान, धनराज पिल्लै और तमाम महान खिलाड़ियों के दिलों-दिमाग में शिवाजी स्टेडियम की मखमली घास पर खेले जाने वाले और सालों से आयोजित हो रहे नेहरू हॉकी टूर्नामेंट की सुनहरी यादें रची बसी रहीं।

 

  बेशक, नेहरू हॉकी सोसायटी में अब शिव कुमार वर्मा, केजी कक्कड़, एचसी सरीन, हमीद, नंदी सिंह, वाईआर खट्टर, केएन शर्मा, कुलानंद शर्मा जैसे समर्पित पदाधिकारी नहीं रहे लेकिन कुक्कू वालिया की वर्तमान टीम संगठित प्रयासों से नेहरू हॉकी को फिर से जिंदा कर सकती है। इसी प्रकार शास्त्री हॉकी टूर्नामेंट सोसायटी और अन्य आयोजक शिवाजी स्टेडियम को फिर से आबाद कर सकते हैं। शिवाजी स्टेडियम पर हॉकी की पहले जैसी वापसी में एनडीएमसी, हॉकी इंडिया और हॉकी दिल्ली बड़ी और सकारात्मक भूमिका निभाएं और दिल्ली सरकार सहयोग  करे तो हॉकी के गौरवशाली दिन फिर लौट सकते हैं।

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