अजय नैथानी
भले ही दद्दा हॉकी के जादूगर कहलाते हो, उनकी स्टिक के साथ कलाकारी का कायल हिटलर जैसे तानाशाह समेत पूरी दुनिया के खेल प्रेमी रहे हो, उनके खेल का जादू बीसवीं शताब्दी में गुलाम भारत और आजादी के बाद खेल प्रेमियों के सिर चढ़कर बोला हो लेकिन हॉकी के महानतम खिलाड़ी रहे मेजर ध्यानचंद का जादू आजाद भारत की सरकारों पर नहीं चल सका। यही कारण है कि कई दशकों से बार-बार अभियान चलाए जाने के बाद हॉकी के जादूगर को ना तो जीते-जी और ना ही मरणोपरांत भारत रत्न से नहीं नवाजा गया जबकि मौजूदा केंद्र सरकार इस प्रतिष्ठित अवार्ड को रेवड़ियों की तरह राजनीतिक नेताओं को बांटती फिर रही है। वैसे, मेजर ध्यानंद का कद किसी भी मायने इन नेताओं और अवार्ड पाने वाले एकमात्र खिलाड़ी (सचिन तेंदुलकर) से कम नहीं है, वह बीस ही होंगे, उन्नीस नहीं। लेकिन ध्यानचंद के समर्थकों की तुच्छ राजनीतिक हैसियत और वोट की चोट करने की लगभग शून्य क्षमता इस महान हॉकी खिलाड़ी को सर्वोच्च सम्मान दिलाने का सामर्थ्य नहीं रखती है।
- जब जर्मन तानाशाह हिटलर ने पहचानी थी प्रतिभा
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने भले ही पूरी दुनिया पर राज करने की लालसा के कारण विश्व को दूसरे महायुद्ध में धकेल दिया था, उसके अंदर तमाम दुर्गुण रहे हो लेकिन वह एक पारखी था। वह प्रतिभा का कद्रदान था, क्योंकि वह 1936 के बर्लिन ओलम्पिक गेम्स के दौरान ध्यानचंद की हॉकी से इस कदर प्रभावित हो गया था कि उसने दद्दा को जर्मनी में रह जाने और अपनी सेना में बड़े पद का प्रस्ताव दे दिया था। इस तरह प्रतिभाओं को पहचाने के मामले में हिटलर भारत के लोकतांत्रिक शासकों से बेहतर निकाला। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि हॉकी के जादूगर ने बड़ी ही विनम्रता के साथ जर्मन तानाशाह हिटलर के उस आकर्षक ऑफ को ठुकरा दिया था।
- अब तक क्यों नहीं मिला भारत रत्न
ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग आज से नहीं उठ रही है, यह कई दशकों से उनके जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस से ठीक पहले हर साल उठती रही है, लेकिन हर बार हमारे शासक इसे नजरअंदाज कर देते हैं, क्योंकि उनको पता है कि हॉकी के जादूगर को सम्मानित करके न तो उनको वोट मिलेंगे और ना ही सत्ता। इसका मतलब यह है कि सत्ता की कुंजी उन उत्साही समर्थकों के पास नहीं है, जो हर बार प्रयास करते हैं और नाकाम होते हैं।
- इस साल थोक के भाव बांटने की घोषणा
जैसा कि सभी को मालूम होगा कि इस साल केंद्र सरकार ने भारत अवार्ड थोक के भाव बांटने की घोषणा की है, जिसके तहत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और कृषि विशेषज्ञ एमएस स्वामीनाथन (एकमात्र गैर-राजनीतिक शख्सियत) को देश का यह सर्वोच्च सम्मान मिलेगा। हालांकि यह ना तो सरकार के इस फैसले से विरोध है और ना ही उपरोक्त प्राप्तकर्ताओं को लेकर किसी तरह की खिलाफत। लेकिन सरकारों की मंशा पर तो सवाल उठता ही है, क्योंकि इस बार यह सम्मान लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक लाभ के इरादे से दिए जा रहे है। वैसे, सम्मान देना सरकारों का विशेषाधिकार होता लेकिन सत्ता पर बैठे लोगों को इस तथ्य का भी ध्यान रखना चाहिए कौन इसका ज्यादा हकदार है।
- तो फिर कैसे मिल सकता है दद्दा को सर्वोच्च सम्मान?
अब सवाल यह है कि दद्दा को कैसे सर्वोच्च सम्मान (मरणोपरांत) दिलाया जा सकता है? जैसा कि अब पता चल चुका है कि भारत रत्न कैसे मिलता है तो मेजर ध्यानचंद को एक राजनीतिक और वोट बटोरने वाली शख्सियत के रूप में प्रस्तुत करना होगा। उनके तमाम समर्थकों को अपनी राजनीतिक वफादारियां (तमाम दल के प्रति), आपसी द्वेष छोड़कर एकजुट-एकमुठ होकर सरकार को यह समझाना होगा कि अगर वो दद्दा को भारत रत्न नहीं देती है, तो उसे वोट नहीं मिलेंगे और बड़ी संख्या में विधानसभा की सीटों और आठ-दस लोकसभा सीटों का नुकसान होगा। अगर हॉकी प्रेमी ऐसा करने में कामयाब हुए, तो दद्दा को सर्वोच्च सम्मान मिलना तय है, वर्ना यह बहुत दूर की कौड़ी है….
- एक नजर ध्यानचंद की उपलब्धियों पर
इस हॉकी दिग्गज ने तीन ओलम्पिक गोल्ड मेडल – 1928 में एम्सटर्डम, 1932 में लॉस एंजलस और 1936 में बर्लिन – जीत हैं। वह 1926 से लेकर 1949 तक बतौर खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय हॉकी में सक्रिय रहे। गेंद पर अपने जबर्दस्त नियंत्रण के लिए विश्व-विख्यात हॉकी जादूगर ने भारत के लिए खेले 185 मैचों में 570 गोल किए हैं। अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर उनके नाम कुल एक हजार से ज्यादा गोल हैं। 1956 में पद्म विभूषण (भारत का तीसरा नागरिक सम्मान) से सम्मानित ध्यानचंद का जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके नाम पर भारत का सर्वोच्च खेल पुरस्कार मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड दिया जाता है।