क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध पहले टेस्ट में मिली शर्मनाक हार पर भारतीय मीडिया ने ज्ञान बांटना शुरू कर दिया हैं। गलती कहाँ हुई, किससे हुई और कौन सबसे बड़ा गुनहगार है, जैसे सवालों की बौछार शुरू हो गई है। कोई कह रहा है कि दूसरी पारी में भारत को सही ओपनिंग नहीं मिली, कोई कैच टपकाने को बड़ा कारण बता रहा है तो कोई कह रहा है कि विराट कोहली की कप्तानी असरदार नहीं रही। टेस्ट क्रिकेट में न्यूनतम स्कोर बनाने वाली टीम को चौतरफा बुरा भला कहा जा रहा है।
लेकिन बवंडर खड़ा करने वाला हमारा मीडिया क्रिकेट टीम की ऐसी तैसी क्यों कर रहा है? क्रिकेट में मिली हार पर हाय तौबा ठीक है लेकिन बाकी खेलों में क्या चल रहा है, इस बात की किसी को खबर है? जानकार और विशेषज्ञ कह रहे हैं कि धैर्य धारण करें, ऐसा कभी कभार हो जाता है। लेकिन देश का खेल मीडिया कोहली की टीम की हार पर बे मतलब हुड़दंग मचा रहा है।
36 का आंकड़ा:
पहली पारी में बड़ा स्कोर बनाने वाली टीम जब दूसरी पारे में 36 पर ढेर हुई तो तो देश के कुछ तथाकथित क्रिकेट एक्सपर्ट यहां तक कहने लगे हैं कि टीम इंडिया में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों के बीच संबंध अच्छे नहीं हैं। टीम प्रबंधन और कप्तान के बीच के संबंधों को लेकर भी उंगली उठाई जा रही है।
जीत जाओ तो सब ठीक और एक हार पर बवाल मचाने वाले हमारे विशेषज्ञ पत्रकारों ने जितना हो हुल्लड़ क्रिकेट टीम की हार पर मचाया है उसका एक प्रतिशत योगदान बाकी खेलों पर न्योछावर कर पाते तो आज भारत एक बड़ी खेल शक्ति बन जाता, एक जाने माने ओलंपियन के अनुसार भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक में इसलिए भी पिछड़े हैं क्योंकि मीडिया उनकी और उनके खेलों की ख़बर नहीं लेता।
फ्लॉप खेल पत्रकारिता:
कुछ माह पहले जब क्लीन बोल्ड ने देश के जाने माने ओलम्पियनों से जानना चाहा कि भारत ओलंपिक में क्यों पिछड़ा है? जवाब में उन्होंने सवाल दाग दिया और पूछा, देश के पत्रकार यह सब पूछने के हकदार क्यों हैं? उन्हें बाकी खेलों की याद तब ही आती है जब क्रिकेट से ऊब जाते हैं या जब ऑलंपिक या एशियाड नजदीक आते हैं। कुछ जाने माने खिलाड़ियों ने तो यहां तक आरोप लगा दिए कि भारतीय मीडिया को ओलंपिक खेलों को समझने और कवर करने की तमीज तक नहीं है।
मदारी भये पत्रकार:
देश के कई नामी खिलाड़ी उन मीडियाकर्मियों और खेल पत्रकारों से बेहद नाराज हैं जोकि साल के ग्यारह महीने क्रिकेट की चाकरी करते हैं और पंद्रह दिन ओलंपिक खेलों को देने की एवज में ढेरों पदकों की उम्मीद की जाती है। एक जाने माने मुक्केबाज के अनुसार भारत में खेल पत्रकारिता के मायने सिर्फ क्रिकेट का स्तुति गान है।
जीते तो पागलों सा व्यवहार करते हैं और हार गए तो जैसे किसी अपने का मातम मना रहे हों। ऐसा इसलिए है क्योंकि खेलों को कवर करने वालों में से ज्यादातर ने कभी कोई खेल नहीं खेला होता। उन्हें ओलंपिक खेलों का दर्द कहां से पता चलेगा? वे तो मदारी की तरह डुग डुगी बजा कर बाकी खेलों को नचाने पर लगे हैं और डोर क्रिकेट को थमा रखी है।
टोक्यो की खबर तक नहीं:
क्रिकेट का गुणगान करने वाले मीडिया से ओलंपिक खेलों में शामिल खेल यह जानना चाहते हैं कि टोक्यो ओलंपिक के लिए वह कितना तैयार है। यह सही है कि भारतीय खेल बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। खेलों को संचालित करने वाली फेडरेशन, भारतीय ओलंपिक संघ और खेल मंत्रालय की तैयारी भी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन यदि मीडिया तैयार होता और क्रिकेट की तरह अन्य खेलों की भी खबर लेता तो शायद भारत ओलंपिक में बड़ी ताकत बन सकता था। यह न भूलें कि स्थगित ओलंपिक खेलों के आयोजन।के लिए चंद महीने बचे हैं।
सभी देशों के खिलाड़ी जोर शोर से तैयारी में लग गए हैं लेकिन भारतीय खिलाड़ियों और अधिकारियों की तरह मीडिया को भी फुरसत नहीं है। उसे क्रिकेट टीम की हार पर चीरफाड़ भी तो करनी है। लेकिन क्रिकेट का मातम मनाने वालों को ओलंपिक खेलों के लिए कुछ घड़ियाली आंसू बचा कर रखने होंगे। कुछ महीने बाद टोक्यो में भी न्यूनतम स्कोर (पदक) वाली कहानी दोहराई जा सकती है।
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