क्लीन बोल्ड /राजेंद्र सजवान
देर से ही सही केडी जाधव से शुरू हुई ओलम्पिक पदक जीतने की परम्परा का भारतीय कुश्ती बखूबी निर्वाह कार्रही है। 2008 के बीजिंग खेलों में सुशील कुमार ने कांस्य पदक जीत कर भारत को फिर से कुश्ती मानचित्र पर उतारा और तब से लगातार चार ओलम्पिक में भारतीय पहलवान पदक जीत रहे हैं। ओलम्पिक की कामयाबी के नजरिए से भारतीय कुश्ती सही दिशा में बढ़ रही है फिरभी किसी अनिष्ट और बड़े खतरे की आहट बार बार सुनाई पड़ रही है| ऐसा क्यों है?
खेल प्रेमी जानते हैं की पहलवान हमेशा से देश के जाने माने अखाड़ों की देन रहे हैं। आज़ादी पूर्व से आज तक जितने भी नामी गिरामी पहलवान हुए किसी न किसी अखाड़े से निकल कर देश के लिए खेले। इन अखाड़ों में दिल्ली का गुरु हनुमान अखाडा, मास्टर चन्दगी राम अखाड़ा, कैप्टन चाँद रूप अखाड़ा, जसराम अखाडा , बद्री अखाडा मशहूर रहे।
खासकर, गुरु हनुमान अखाड़े और तत्पश्चात छत्रसाल अखाड़े ने भारतीय कुश्ती में बढ़ चढ़ कर योगदान दिया और भारत आज कुश्ती में जहाँ हैं इन अखाड़ों की मेहनत से है। पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, यूपी, एमपी आदि प्रदेशों के अखाड़ों और गुरु खलीफाओं की भूमिका भी बढ़ चढ़ कर रही है। लेकिन अब कुछ अखाड़े पहलवानों की खेती के नाम पर असामाजिक तत्वों, गुंडे बदमाशों और हत्यारों की शरणगाह बनते जा रहे हैं। यह स्थिति न सिर्फ कुश्ती की लोकप्रियता को चोट पहुंचाने वाली है अपितु हाल के वर्षों में मिली कामयाबी पर पूर्ण विराम भी लग सकता है।
इसमें दो राय नहीं की हरियाणा अधिकांश खेलों में पदक विजेता तैयार कर रहा है। टोक्यो ओलम्पिकमें भाग लेने गए कुल खिलाडियों में से तीस फ़ीसदी हरियाणा से थे जबकि पदक विजेताओं के सत्तर फ़ीसदी से भी ज्यादा ने हरियाणा के प्रतिनिधि के रूप में पदक जीते, जिनमें पहलवान रवि दहिया और बजरंग भी शामिल हैं। गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा और कुछ हॉकी खिलाडी भी इसी प्रदेश से हैं। इतना सब होने के बावजूद भी देश की कुश्ती को बदनाम करने वाले भी ज्यादातर हरियाणा ही पैदा कर रहा है जोकि नितांत चिंता का विषय है।
सोनीपत के दो अखाड़ों में हुआ नरसंहार न सिर्फ कुश्ती को बदनाम करने वाली शर्मनाक घटनाएं हैं अपितु यह सबक भी है कि अखाड़े शीघ्र अति शीघ्र अपने पाक साफ़ होने का प्रमाण दें। सोनीपत और हलालपुर के हत्यकांड अंतरर्राष्ट्रीय मीडिया में बड़ी खबर बन चुके हैं। दोनों ही अखाड़ों का घटनाक्रम बताता है की कुछ भटके हुए पहलवान, कोच और अखाड़ा प्रशासन से जुड़े लोग अखाड़ा हथियाने या महिला पहलवानों के साथ जोर जबर्दश्ती करते हैं, गोलियां चलती हैं और कई परिवार उजड़ जाते हैं।
चूँकि यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है इसलिए कुश्ती फेडरेशन, पहलवानों और फेडरेशन से जुड़े औद्योगिक घरानों की चिंता स्वाभाविक है।
कुछ साल पहले तक पहलवानों को नेताओं का लठैत और अखाड़ों को गुंडागिर्दी का अड्डा माना जाता था लेकिन भारतीय पहलवानों की अंतर्राष्ट्रीय कामयाबी के बाद इस सोच में बदलाव आए और पहलवानी एक आदर्श खेल के रूप में देखी जाने लगी। लेकिन फिर से कुश्ती की शैतानी ताकतें सर उठाने लगी हैं जिसे तुरंत काट गिराने में ही भलाई है।