राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड
महामारी जाते जाते वापस लौट रही है। कब तक पीछा छोड़ेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। डाक्टर,वैज्ञानिक और तमाम विशेषज्ञ हैरान परेशान हैं। दूसरी तरफ देश के कुछ जाने माने योग गुरु, खिलाडी और खेल विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जो फिट होगा वही हिट होगा। शायद “survival of the fittest ” की थ्योरी भी यही कहती है। वैसे भी खिलाडी से बेहतर इम्म्युनिटी भला किसकी हो सकती है।
बेशक, फिट रहने के लिए योग, व्यायाम, खेल और अन्य शारीरिक- मानसिक गतिविधियां जरुरी हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि खेलें तो कहाँ? देश के कुछ बड़े छोटे, ओलम्पियन और आम खिलाडियों से बात चीत के बाद पता चला है कि देश के तमाम युवा, खिलाडी और खेल प्रेमी सरकारों के खेल विरोधी रवैये से बेहद खफा हैं। वे खेलना चाहते हैं लेकिन कहां खेलें?
एक तरफ तो सरकारें खेलने और फिट रहने का आह्वान करती हैं, खेलों इंडिया जैसे नारे उछाले जा रहे हैं तो दूसरी तरफ आलम यह है कि देशभर में खेल मैदान खिलाडियों की पकड़ से दूर होते जा रहे हैं।
लगभग पांच दशक पहले तक भारत के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबाल के जाने माने खिलाडी सोमेश बग्गा को इस बात का अफ़सोस है कि हरियाणा में खेलने के लिए फुटबाल मैदान कम पड़ रहे हैं। लम्बे चौड़े खेत खलिहानों के प्रदेश में फुटबाल चौपट हो गई है। हरियाणा बिजली बोर्ड के खेल अधिकारी पद से रिटायर हुए सोमेश कहते हैं कि फुटबाल से बड़ा व्यायाम और फिटनेस का माध्यम कोई दूसरा खेल नहीं हो सकता। सत्तर-अस्सी के दशक में गोल जमाने के माहिर यह खिलाडी अपने खेल कि बदहाली को युवाओं के लिए बड़ा आघात मानते हैं।
प्रदेश के नामी वॉलीबॉल खिलाडी ओम प्रकाश इसलिए दुखी हैं क्योंकि उनका खेल मैदान की बजाय कोर्ट कचहरी में खेला जा रहा है। दो गुट खेल पर अपना दबदबा बनाना चाहते हैं। नतीजन खेल गतिविधियां ठप्प पड़ी हैं। पूर्व अंतर्राष्ट्रीय खिलाडी के अनुसार उनका खेल छोटे से कोर्ट में खेला जा सकता है। गांव देहात में यह खेल फिट रहने का सस्ता और आसान माध्यम है।
विश्व प्रसिद्ध हॉकी सितारे अशोक ध्यान चंद सरकार और हॉकी संचालकों से इसलिए नाराज हैं क्योंकि उन्हें खेल और खिलाडियों की कोई चिंता नहीं है। नकली घास के मैदान कम हैं और घास के मैदान सिमट चुके हैं तो फिर युवा पीढ़ी कहाँ खेले, कैसे स्वस्थ रहे? कुछ इसी प्रकार की प्रतिक्रिया विश्व कप 1975 के हीरो असलम शेर खान की भी है।
द्रोणाचार्य और महिला हॉकी के महानतम कोच बलदेव सिंह भी घटते मैदानों को बुरा संकेत मानते हैं। उन्हें लगता है कि महामारी के दौर में खेल ही आम बच्चे और युवा को फिट रख सकते हैं लेकिन सरकारों का ध्यान इस ओर कदापि नहीं है।
कुश्ती द्रोणाचार्य रामफल, जगमिंदर, महा सिंह राव, जूडो द्रोणाचार्य गुरचरण गोगी, कबड्डी द्रोणाचार्य बलवान, ओलम्पियन मुक्केबाज धर्मेंद्र यादव दुनिया में फैली महामारी को खिलाडियों को इसलिए ज्यादा घातक नहीं मानते क्योंकि वे शारीरिक तौर पर लड़ने कि क्षमता रखते हैंऔर मानसिक मजबूती लिए होते हैं।
लेकिन खेल के मैदान , अखाड़े और रिंग पर्याप्त नहीं हैं। सभी नामी खिलाडी और गुरु चाहते हैं कि सरकारें खेलने के अधिकाधिक मैदान और स्टेडियम उपलब्ध कराएं ताकि देश स्वस्थ रहे।